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10.2.11

प्यार का पागलपन


प्यार का पागलपन

जीवान के हसीं सफ़र में हमसब की मुलाकात बहुत से चेहरों से होती है। लेकिन इन सभी चेहरों से अलग चेहरा जो दिल में धड़कन की तरह उतर जाता है और साड़ी दुनियां आँखों में यूँ ही सिमट जाती है। उस चेहरे का ख्याल बराबर दिल और दिमाग में बना रहता है, दिल उसे हमेशा तलाशता रहता है। पहली बार की मुलाकात अन्जाने में होती है, दूसरी मुलाकात इत्तेफाक से। मुलाकातों का सिलसिला दो दिलों को पुराने यादों के साथ हौले से जगा देती हैं। बहके-बहके क़दमों का अचानक रुकना, पलकों का उठाना-गिरना शायद प्यार का अंदेशा और मुस्कान प्यार का सन्देश दे जाती है। मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता है, दूरियां नजदीकियों में तब्दील हो जाती हैं। बरबस चीजों से प्यार बढ़ता है। रंग, खुशबु, मौसम में रूहानियत मिलती है। अंततः हम प्यार के गहरे समंदर में गोते खाने लगते हैं। यही वजह है कि लोग प्यार को ज़िन्दगी और ज़िन्दगी को प्यार समझ बैठते हैं। फिर हम अपने प्यार के जज्बातों को इतना बढ़ावा देते हैं कि माँ-बाप, दोस्तों के एहसासों को भुला बैठतें हैं और प्यार के पागल पन में खोकर वैल्न्टाइन-डे मानते हैं।
देश, संस्कृति और सभ्यता को अंगूठा दिखाकर किसी बार, रेस्टुरेंट या लान में प्यार के इजहार के नाम पर किस करते हैं, गुलाब थमाते हैं और कहते हैं हैप्पी वैल्न्टाइन-डे।

शायद यही यही है प्यार का पागलपन और खुमार।

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