उममीद
वक़्त की तल्ख़ धुप में तपता रहा हूँ उम्र भर
कुछ इधर, कुछ उधर दौड़ता रहूँ उम्र भर
दिल ने मुझको बारहा फेका है प्यार की खाई में
क्यूँकि मैंने ही हर बार चुना था उसको रहबर
ज़िन्दगी कि मुफलिसी कैसे बयान करूँ मैं दोस्तों
ज़िन्दगी से ज्यादा प्यार में खाया है ठोकर
मौत ने एक बार हमको भी लिया था आगोश में
क्यूंकि मई था उस वक़्त ज़िन्दगी से बेखबर
बस यही आखिरी उम्मीद हैं मुझको मौत से
मैं रहूँ या ना रहूँ, मगर जिंदा रहे मेरा हमसफ़र।
10.2.11
उम्मीद
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