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21.9.11

कैसे रोकती तुम्हे ?

आज अपने मिजाज से हटकर एक कविता लिखी है .एक प्रेम कहानी पढने के बाद ये कविता मन में आई ,इसका रंग रूप मेरी सारी पुरानी कविताओं से अलग है पर शायद कई प्रेम कहानियां एसे ही दम तोड़ देती होंगी ...कही ना कहीं....

किस्मत ने हमें मिलवा तो दिया पर मिला ना पाई
तुम आए और चले गए कही दूर और में तुम्हे रोक भी ना पाई

कैसे रोकती तुम्हे ?मेरा गाव बड़ा छोटा है
यहाँ के घर बड़े है ,दालान बड़े है ,कमरे बड़े है
पर दिल बड़े छोटे है....
हमारे जज्बातों के लिए इन छोटे  दिलों में कोई जगह नहीं

यहाँ की खिडकियों से झांकती आँखें बड़ी तेज है
हमें चीर देती बीच सड़क पर ,जड़ कर देती बीच बाजार मै हमें
हमारे पैरों को जकड लेती ये सांप की तरह....
और उसका दर्द मेरे -तुम्हारे घर वालों की झुकी नजरों में दिखता
तुम्ही बताओ कैसे रोकती तुम्हे....
पूरी कविता पढने के लिए क्लिक करें 

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