अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
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18.9.11
कैसा-कैसा बोझ ये जख्मी दिल ढोता है बेचारा
मीत मिले,मिलकर बिछड़े,बेबस दिल जाता मारा
सदियों का ये खेल कुंवर,आज नयी कोई बात नहीं
मुंह,आंखें,जज्बात के चलते दिल हरदम हारा-हारा
कुंवर प्रीतम
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