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14.6.13

हिन्दी सिनेमा की सिण्ड्रेला - सुरैया

हिन्दी सिनेमा की सिण्ड्रेला - सुरैया 

लेखक 
श्रीराम ताम्रकर 
एम.ए., बी.एड., विद्यावाचस्पति, 
विशारद, एफ.ए. (FTII) इन्दौर, म.प्र. 

सुरैया का अर्थ होता है कृतिका, ज्योतिष में प्रयुक्त अट्ठाईस नक्षत्र समूहों में तीसरा। सुरैया 1940 और 50 के दशक में हिन्दी फिल्म जगत का एक चमचमाता नक्षत्र थी । इन दो दशकों में कुछ बरस तो वह अपनी समकालीन नायिकाओं – नरगिस / मधुबाला / मीनाकुमारी / गीताबाली / नलिनी जयवंत / निम्मी और बीना राय से ज्यादा लोकप्रिय रही । अभिनय का उसका अंदाज निराला था और साथ ही वह एक सुंकठ गायिका भी थी, जो लता मंगेशकर के अवतरण के बावजूद अपनी जगह पर कायम रही। इस कालखंड में उसने पाकिस्तान चली गई नूरजहाँ और खुर्शीद की अदाकारी का अंदाज कायम रखा। वह पुरानी और नई पीढ़ी के गायक-अभिनेताओं के. एल. सहगल, सुरेन्द्र, मुकेश और तलत महमूद के साथ तो पर्दे पर आई बल्कि पृथ्वीराज, जयराज और मोतीलाल जैसे वरिष्ठ नायकों की नायिका भी बनी। सुरैया की व्यावसायिक सफलता का आलम यह था कि निर्माता-निर्देशक द्वितीय श्रेणी के अभिनेताओं को लेकर भी सुरैया के सहारे अपनी फिल्म को सफलता की वैतरणी पार करा दिया करते थे। सुरैया की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि फिल्म-उद्योग में और उद्योग से बाहर उसे चाहने वाले और अपना बनाने के इच्छुक लोगों की संख्या बेशुमार थी। लेकिन भाग्य की विडम्बना देखिए कि उसे एक सिण्ड्रेला (चिर प्रतीक्षारत कुमारिका) का जीवन जीना पड़ा। देवआंनद और ग्रेगरी पेक सारी सहानुभूति के बावजूद भी उसे साथ न दे सके। 

सुरैया चिरकुमारी रहने के लिए अभिशप्त थी, जबकि उसके कई आशिक बारात लेकर उसके दरवाजे पर आ गए थे।

                 जन्म - 15 जून 1929 

निधन - 31 जनवरी 2004
सुरैया के नाज-ओ-अंदाज में उत्तर भारतीय मुस्लिम आभिजात्य वैसी ही झलक थी, जैसी उनकी पूर्ववर्ती गायिका-अभिनेत्रियों नूरजहाँ और खुर्शीद में थी। अनेक ऐतिहासिक (पीरियड) फिल्मों में काम कर उसने इस अदाकारी का भरपूर प्रदर्शन किया और अपने तौर-तरीकों से दर्शकों को लुभाया। देवआंनद की ‘अफसर’, ‘जीत’, ‘शायर’ जैसी फिल्मों में उसने प्रगतिशील स्त्री की भूमिकाएँ कर स्त्री-पुरूष दोनों को प्रभावित किया। उसकी अंग-भंगिमाओं और सुरीली आवाज में मानों सिंक्रोनाइजेशन था। उसका एक गीत है “तेरी आँखों ने चोरी किया, मेरा छोटा सा जिया” (प्यार की जीत)। वास्तव में यह शरारत स्वंय ने अपने चाहने वालें के साथ की थी। सुरैया का एक प्रेमी शहजादा इफ्तिखार सुरैया से शादी की मांग को लेकर उसके घर के सामने धरने पर बैठ गया। सुरैया ने उसे समझाया कि अगर तुम्हारा प्यार सच्चा है, तो मेरे लिए अनशन समाप्त कर दो। वह समझ गया। वह अभिनेत्री वीणा का भाई था। पाकिस्तान से सुरैया का एक प्रेमी बाकायदा बारात लेकर उसके घर पर आ धमका था, जो पुलिस द्वारा धमकाये जाने के बाद लौटा। एक अन्य आशिक सुरैया की झलक पाने के लिए वर्षों मेरीन ड्राइव की रेत पर तपता रहा। सुरैया एक मशहूर दीवाने का नाम धर्मेन्द्र है, जो उसकी फिल्म ‘दिल्लगी’ (1949) देखने के लिए चालीस बार अपने गाँव से शहर तक गया था। 

सुरैया, लता मंगेशकर की हम-उम्र है। सुरैया को सहगल के साथ तीन फिल्मों में अभिनय और गायन का अवसर मिला, लेकिन लता इससे वंचित रही, जबकि वहसहगल के साथ गाने और उनसे बहुत सारी बातें करने के लिए लालायित थी। लता की इस वंचना का कारण सहगल का आकस्मिक अवसान रहा। सुरैया को सहगल का साथ इसलिए हासिल हो सका, क्योंकि उसे बहुत छोटी उम्र में गायिका-अभिनेत्री खुर्शीद के पद-चिन्हों पर चलने के लिए फिल्मों में उतार दिया गया। सुरैया 1929 में 15 जून को जन्मी थी और लता 28 सितंबर को। लोगों को इन दोनों गायिकाओं के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा की कपोल-कल्पित बातें करने का बड़ा शौक था। लेकिन दर हकीकत ऐसी कोई बात नहीं थी। दोनों अपनी-अपनी जगह ठोस आधार पर टिकी गायिकाएँ थीं। भारतीय स्वतंत्रता का वर्ष 1947 लता मंगेशकर का उदय-काल है, पर सुरैया का पदार्पण पार्श्र्व गायिका और बाल कलाकार के रूप में 1941 में ही हो गया था। हिन्दी-फिल्मों में गायिका-अभिनेत्री नस्ल की वह अंतिम प्रतिनिधि थी, जिस तरह पुरुषों में किशोर कुमार थे। 

गायक अभिनेता सहगल के साथ सुरैया ‘तदबीर’ (1945), ‘उमर खय्याम’ (1946), और ‘परवाना’ (1947), में आई। सुरेन्द्र के साथ मेहबूब की ‘अनमोल घड़ी’ (1946), में सुरैया के अलावा गायिका नूरजहाँ भी थी और रतन के बाद यह नौशाद के संगीत से सजी दूसरी हिट फिल्म थी, जिसके गाने सदाबहार की सूची में आते हैं। मुकेश के साथ सुरैया ने फिल्म ‘माशूक’ (1954)में आई और तलत महमूद के साथ भी उसने दो फिल्मे की – ‘वारिस’ (1954), और ‘मालिक’ (1958)। 

बाल कलाकारों के रूप में प्रवेश लेकर सुरैया ने बाइस साल के फिल्मी जीवन में सड़सठ फिल्मों में नायिका-गायिकाके रोल निभाए।




राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सोहराब मोदी की फिल्म ‘मिर्जा गालिब’ (1954), में तलत ने सुरैया के साथ जो गाना
गाया – “दिले नादा तुझे हुआ क्या है”, यह सदैव श्रवणीय बना रहेगा। लेकिन इस गीत पर होंठ हिलाने का सौभाग्य भारतभूषण को मिला था, जिन्होंने फिल्म में गालिब की भूमिका की थी। फिल्म में सुरैया ने गालिब की प्रेमिका के रूप में उनकी गज़ल भी एक खास अंदाज में गाई थीं। “ये न थी हमारी किस्मत के बिसाले यार होता” और “नुक्ताचीं है गमे दिन” गजलें सुरैया की आवाज में जैसी चमत्कारिक लगती हैं, वैसी किसी अन्य स्वर में नहीं। वह सुरैया की प्रतिष्ठा का चरम क्षण था, जब गायन और अभिनय के लिए पुरस्कृत हुई सुरैया से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था – लड़की तुमने तो गालिब की रूह को जिंदा कर दिया। सुरैया इससे पहले सन् 1950 में भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुकी थी । 


सुरैया की प्रमुख फिल्में 
बाल कलाकार के रूप में– 
‘ताजमहल’ (1941),‘स्टेशन मास्टर’, ‘तमन्ना’ (1942) और ‘हमारी बात’ (1943)। 
नायिका के रूप में – 
‘इशारा’ (1943),‘मैं क्या करूँ’,‘फूल’, ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘तदबीर’, ‘यतीम’ (1945), ‘अनमोल घड़ी’ (1957),‘हसरत’, ‘जगबीती’, ‘उमर खय्याम’, ‘उर्वशी’ (1946), ‘आकाशदीप’, ‘डाक बंगला’, ‘दर्द’, ‘दो दिल’, ‘नाटक’, ‘परवाना’ (1947), ‘आज की रात’, ‘गज़रे’, ‘काजल’, ‘रगंमहल’, ‘प्यार की जीत’, ‘शक्ति,‘विद्या’ (1948),‘अमर कहानी’,‘बड़ी बहन’, ‘बालम’, ‘चार दिन’,‘दिल्लगी’,‘दुनिया’, ‘जीत’,‘लेख’, ‘नाच’, ‘शायर’ (1949), ‘अफसर’,‘दास्तान’,‘कमल के फूल’, ‘खिलाड़ी’, ‘नीली’, ‘शान’, (1950),‘दो सितारे’, ‘राजपूत’, ‘शोखियाँ,‘सनम’ (1951),‘खूबसुरत’,‘गूँज’,‘दीवाना’,‘मोती महल’,‘लाल कुँवर’(1952), ‘माशूका’ (1953),‘बिल्व’,‘मंगल’, ‘मिर्जा गालिब’, ‘वारिस,‘शमा परवाना’ (1954), ‘इनाम’, ‘कंचन (1955), ‘मिस्टर लम्बू’ (1956),‘मालिक’,‘ट्रोली’,‘ड्राइवर’,‘मिस’ 1958 (1958), ‘शमा’ (1961) और ‘रूस्तम सोहराब’ (1963) 



सुरैया ने   कपूर  खानदान  के   तीन   पुरुषों  के  साथ नायिका का रोल अदा किया।  यह   संयोग  ही है  कि  नायिका के रूप में सुरैया की  पहली   फिल्म  ‘इशारा’ (1943)    और   अंतिम    फिल्म    ‘रूस्तम-सोहराब’ (1963) के नायक पापा पृथ्वीराज कपूर ही थे,  जबकि फिल्म    ‘दास्तान’   (1950),    और   ‘शमा-परवाना’    (1954 )     में    उसके    नायक    क्रमशः   राजकपूर      और        शम्मी कपूर     थे।   वास्तविक    जीवन   में   सुरैया राजकपूर की बाल मित्र   थी।   सुरैया    आर्थिक    सफलता     और लोकप्रियता की  सीढ़ियाँ  लड़की होने के कारण जल्दी-जल्दी चढ़ गई, परन्तु राजकपूर को अपनी राह खोजने में थोड़ा वक्त लगा। 

राजकपूर ने आजादी के वर्ष में फिल्में बनाने के लिए कमर कसी और वह अपनी पहली फिल्म ‘आग’ (1946) की नायिका सुरैया को ही बनाना चाहते थे, जिसे बचपन में वे काली कलूटी कहकर चिढ़ाया करते थे। सुरैया की नानी को जो सुरैया के व्यवसायिक कार्यों के बारे में सारे निर्णय करती थी, युवा राजकपूर के प्रोजेक्ट के प्रति संदेह था और उसने बड़ा आया फिल्लम बनाने वाला कहकर राजकपूर को दफा दिया था। राजकपूर की ‘आग’ और ‘बरसात’ फिल्म की सफलता के बाद ‘दास्तान’ के सेट पर राजकपूर ने सुरैया से पूछा था, अब क्या राय है मेरे बारे में। ऐसे वक्त पर सुरैया अपना होठ दाँत से काटने के सिवाय क्या कर सकती थी। अभिनेत्री नरगिस का उदय अवश्यंभावी था, इसलिए नियति ने सुरैया को राजकपूर के प्रोजेक्ट से दूर रखा। 

सुरैया, मधुबाला और मीनाकुमारी के फिल्मों में आने की पृष्ठभूमि एक सी है। तीनों के परिवार को बेटी की कमाई की दरकार थी। इतनी अधिक की बचपन में ही इन्हें सेट पर धकेल दिया गया । 1941 में नानाभाई भट्ट को अपनी फिल्म ताजमहल में मुमताज के बचपन के रोल के लिए एक बालिका की जरूरत थी। तब बेबी सुरैया अपने मामा जहूर के साथ स्टूडियो जाया करती थी। नानाभाई ने सुरैया को देखा तो वह उन्हें अपनी फिल्म के लिए उपयुक्त जान पड़ी। मामा ने भी कमाई का एक नया रास्ता खुलने की खुशी में हाँ कर दी। इससे पहले उनकी बहन मुमताज (यानी सुरैया की माता) को भी मेहबूब ने अपनी फिल्म में हीरोइन बनाना चाहा था, मगर सुरैया के पिता ने इंकार कर दिया था। मुमताज बेगम एक सलोने व्यक्तित्व की स्वाभिमानी थी, जिसकी झलक बाद में लोगों ने युवा सुरैया के रूप में देखी। यहीं नहीं, मुमताज गायिका-अभिमेत्री खुर्शीद की अच्छी दोस्त थी। इसी दोस्ती की वजह से सुरैया ने खुर्शीद को अपना आदर्श मान लिया। लता मेगेशकर की आदर्श नूरजहाँ थी। 



हिन्दी फिल्मों में  40 से 50 का दशक सुरैया के   नाम कहा जा सकता है।  उनकी लोकप्रियता का आलम  यह था  कि  उनकी  एक  झलक पाने के   लिए उनके प्रशंसक मुंबई में उनके घर के  सामने घंटों खड़े रहते थे और यातायात जाम हो जाता था।

मिर्जा गालिब में सुरैया का रोल देखकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था  - लड़की तुमने कमाल कर दिया। 





सुरैया का जन्म लाहौर में हुआ था, लेकिन डेढ़ साल की उम्र में वह अपने माता-पिता के साथ मुम्बई में आ गई थी। उनके मामा जहूर स्टूडियो में स्टंट खलनायक थे। सुरैया के पिता जमाल शेख आर्किटेक्ट थे, लेकिन अपने खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें समय से पहले घर बैठना पड़ा। इसलिए सुरैया को पैसा कमाने के लिए फिल्मों में काम करना पड़ा। उसके लिए किस्मत के दरवाजे एक के बाद एक खुलते चले गये। इधर ‘ताजमहल’ में काम मिला, उधर नौशाद ने अपनी कुछ फिल्मों में पाश्वगायन कराने के लिए बुलाना शुरू किया। सुरैया ने सबसे पहले ‘नईदुनिया’ (1942) में नौशाद के लिए गाया और फिर ‘शारदा’, ‘कानून’ , ‘संजोग’, ‘जीवन’, ‘शमा’ आदि फिल्मों के लिए। इन फिल्मों की नायिका सोहराब मोदी की पत्नी मेहताब थी। शुरू में तो वह नौशाद साहब से चिढ़ गई कि इतनी छोटी बच्ची से मेरे लिए गाना गवा रहे हो, पर बाद में जब गाने सफल रहे तो वे सुरैया को बहुत चाहने लगी। कहते हैं कि मेहताब, सुरैया को अपने लिए गाने के लिए दुगने पैसे देने को तैयार थी, बशर्ते सुरैया गाने की रिकार्डों पर अपना नाम न दे, ताकि लोगों का यह भ्रम बना पहे कि इन गानों की गायिका मेहताब ही है। 

देवआनंद ने सुरैया को सगाई की अँगूठी दी, तो नानी ने उसे समुद्र में फेंक दिया।


With  old and strict Nani 
मोहन पिक्चर्स की ताजमहल के बाद सुरैया ने ‘स्टेशन मास्टर’, ‘तमन्ना’ औरबॉम्बे टॉकीजकी‘हमारी बात’ फिल्म में भी बाल-कलाकार की भूमिकाएँ निभाई। ‘हमारी बात’ (1943) के नायक-नायिका जयराज-देविकारानी थे। इसमें सुरैया ने मुमताज अली (मेहमूद के पिता) के साथ दो नृत्य-गीतों में भाग लिया था। इस फिल्म के समय सुरैया पाँछ वर्षों के लिए बॉम्बे टॉकीज से अनुबंधित थी। पर के. आसिफ ने फिल्म ‘फूल’ में काम करने के लिए सुरैया को चालीस हजार रुपए देने की पेशकश की, तो बादशाह बेगम ने देविकारानी पर दबाव बनाकर सुरैया को अनुबंध से मुक्त कर दिया और सुरैया स्वतंत्र कलाकार रूप में विभिन्न फिल्मों के लिए काम करने लगी और गायिका-नायिका के रूप में उसकी फिल्मों का मीटर तेजी से चलने लगा। नायिका के रूप में उसकी पहली फिल्म ‘इशारा’ 1943, में आई थी। 1945 में उसकी पाँच फिल्में प्रदर्शित हुई। 1946-47 में उसकी छः फिल्में आई, जबकि 1948 में सात और 1949 में दस। 1950 में भी उसकी आधा दर्जन फिल्में रिलीज हुई। इसके बाद साल-दर-साल उसके फिल्मों की संख्या घटती गई। इसका कारण था 
देवआनंद के साथ उसके प्रेम का चक्कर। काम का अधिक बोझ और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव। नानी और मामा के दबाव के बादजूद उसने स्वास्थ्य के आधार पर फिल्मों के प्रस्ताव अस्वीकार करने शुरू कर दिए थे। देवआंनद के साथ सुरैया ने 1948 से 51 के बीच कुल सात फिल्में की। फिल्में आर्थिक दृष्टि से बहुत सफल नहीं हुई, लेकिन राज नरगिस के साथ समानांतर देव आंनद-सुरैया के प्रेम की अनेक कहानियों ने जन्म लिया । सुरैया ‘विद्या’ (1948) के बाद ‘जीत’, ‘शायर’, ‘अफसर’, ‘नीली’, ‘दो सितारे’ और ‘सनम’ फिल्मों में देव आनंद के साथ आई। देव ने सुरैया को सगाई की अँगूठी भी दी थी, जिसे उसकी नानी ने गुरूदत्त के सामने देखते-देखते समुद्र में फेंक दिया था। एस. डी. बर्मन, दुर्गा खोटे, चेतन आनंद कोई भी बादशाह बेगम को सुरैया-देव की शादी के लिए राजी न कर सके। दूसरी तरफ उनके साथकाम करने पर भी पाबंदी लग गई। देव आनंद ने 1954 में कल्पना कार्तिक को अपनी जीवन संगिनी बना कर इस प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया। 

कहा जाता है कि हिन्दी फिल्मों में नायिका के करने के लिए कुछ नहीं रहता, इसलिए स्टारडम भी उनसे दूर ही रहती है। यह बात बीते दौर की कलाकार सुरैया के मामले में गलत साबित हो जाती है, क्योंकि 1948 से 1951 तक केवल तीन वर्ष के दौरान सुरैया ही ऐसी महिला कलाकार थीं, जिन्हें बॉलीवुड में सर्वाधिक पारिश्रमिक दिया जाता था।

आजादी के आस पास के दौर में सुरैया के पोस्टर साइज फोटो काँच की फ्रेंम में देश के 5 स्टार होटलों में शान से लगाए जाते थे। ग्रामोफोन पर उसके रिकॉर्ड दिनभर बजते थे।

फिल्म इंडस्ट्री में ही सुरैया के कुछ और आशिक थे, रहमान, सुरेश और एम. सादिक। 1948-49 में रहमान-सुरैया की दो फिल्में (‘प्यार की जीत’ और ‘बड़ी बहन’) हिट रही थी। रहमान की तरह सुरेश ने भी सुरैया के साथ चार फिल्में की थी और वह भी मानते थे कि सुरैया से शादी करने के वास्तविक दावेदार वे ही हैं। एम. सादिक ने भी सुरैया को चार फिल्मों में निर्देशित किया था। दिलीप कुमार ने भी सुरैया को के आसिफ की ‘जानवर’ फिल्म के माध्यम से अपने फंदे में उलझाने की कौशिश की। जब सुरैया को उसकी नीयत पर संदेह हुआ तो उसने फिल्म ही छोड़ दी। के. आसिफ इस फिल्म को फिर कभी पूरी नहीं कर पाये। इसलिए हम पाते हैं कि सुरैया की 67 फिल्में की सूची में एक भी फिल्म में दिलीप कुमार नहीं है। (उनके भाई नासिर खान के साथ अवश्य सुरैया ने तीन फिल्में की)। सुरैया वास्तविक जीवन में अपनी नानी के विरूद्ध नहीं जा सकी और उसके माता-पिता भी सीधे स्वभाव के थे, इसलिए सुरैया के लिए सिण्ड्रेला (कुमारिका) बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसके 1963 में फिल्मों से संन्यास लिया था और चरित्र अभिनेत्री या पाश्रगायिका के रूप में इस मायावी दुनिया में लौटना कबूल नहीं किया। उसकी इस तरह की जिंदगी को देखकर लोग इसे ग्रेटा गार्बो कहने लगे थे। 

हॉलीवुड की अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो (1905-90) भी युवावस्था में फिल्मों से संन्यास लेने के बाद शेष जीवन रहस्यमय एकांत में गुजारा। लेकिन जैसा कि सुरैया का एक गाना है “ये कैसी अजब दास्तां हो गई, छुपाते-छुपाते बयां हो गई है”, सुरैया ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में रहस्य को अनावृत करना शुरू कर दिया था। कुछ वर्षों से वह सभा-समारोहों में भाग लेने लगी थी और कभी-कभार पत्रकारों से भी बातचीत कर लेती थी। उसके जीवन का सत्य यह है कि उसकी नानी मामा जहूर के कहने से चलती थी और जहूर का एकमात्र लक्ष्य सुरैया को सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी के रूप में कायम रखना थ। सुरैया न तो मनमाफिक खा पी सकती थी, न सो सकती थी। फिल्म ‘मिर्जा गालिब’ के प्रर्दशन के बाद उसे लो-ब्लडप्रेशर हो गया था और वह काम करते-करते फिल्मों के सेट पर बेहोश हो जाया करती थी। वह फिल्मों में सिर्फ 22 वर्ष सक्रिय रही। 34 वर्ष की उम्र में वह स्वेच्छा से मायवी दुनिया से हट गई थी। सन् 2004 में सुरैया का निधन हुआ। 

सुरैया बॉलीवुड की सबसे सुंदर और पसंदीदा अभिनेत्री 

बॉलीवुड के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष में इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी और "सेवन ईस्ट" द्वारा पहले छः महीने से कर रहे एक सर्वेक्षण में बॉलीवुड सुंदरी की श्रेणी में सबसे ज्यादा वोट दिवंगत गायिका और अभिनेत्री "सुरैया" को मिली है । 

यह सर्वेक्षण सेवन ईस्ट ने अपने ग्राहकों से स्टोर में लगाई गई 100 अभिनेत्रियों की तस्वीरों के संग्रह में से सबसे पसंदीदा अभिनेत्री को चुनने को कहा। उन्हें इनमें से शीर्ष सात का चुनाव करने को कहा गया इसमे 6,000 ग्राहकों ने हिस्सा लिया। 

सुरैया और ग्रेगरी पैक की मुलाकात 

लोग सुबह-शाम सुरैया की एक झलक देखने की खातिर उसके घर के बाहर भीड़ लगाए खड़े रहते थे। कभी-कभी तो भीड़ इतनी बढ़ जाती थी कि पुलिस को बुलाना पड़ता था और जिस सुरैया के चाहने वालों का यह आलम रहा हो, वही खुद हॉलीवुड के ग्रेगरी पैक की दीवानी हो जाएं, तो यह किस्सा कितना दिलचस्प होगा। 

वही ग्रेगरी पैक एक दिन अचानक सुरैया के ड्राइंग रूम में बैठे उनके आने का इंतजार कर रहे थे। खबर सुनी, तो पहले सुरैया को यकीन ही नहीं हुआ। जब तस्दीक हो गई कि उनके सपनों के हीरो ड्राइंग रूम में उनकी आमद में पलकें बिछाए बैठे हैं, तो खुशी के मारे पूरा घर घूमने लगा। ऐसा महसूस हुआ सुरैया को।  रात साढ़े बारह बजे उनका दरवाजा खटखटाया गया। सुरैया की मम्मी ने दरवाजा खोला, तो सामने अभिनेता अल नासिर खड़े थे। उनके साथ दो लोग और भी थे। अल नासिर ने मम्मी को बताया, "ग्रेगरी पैक को लेकर आया हूं। सुरैया को फौरन बुलाओ।" सुनकर मम्मी भी बदहवास हो गईं, लेकिन यह समय ज्यादा आश्चर्य में डूबकर गंवाने का नहीं था। भागकर मम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं, जो उस वक्त गहरी नींद के आगोश में समा चुकी थीं। 





मम्मी ने झकझोरते हुए कहा "जल्दी उठो बेटी। देखो ग्रेगरी तुमसे मिलने घर आए हैं। तुझे यकीन नहीं हो रहा है मेरी बात का। अल नासिर लेकर आए हैं। जल्दी से तैयार होकर आ जाओ।" सुरैया के तो मानो हाथ-पांव ही फूल गए। किसी बात का उन्हें होश ही न रहा। जल्दी-जल्दी उन्होंने कपड़े बदले और धड़कते हुए दिल के साथ ड्राइंग रूम में दाखिल हुई, तो अपनी आंखों पर पलभर के लिए विश्वास ही नहीं कर पाई। 

विश्वास तो उनको यह सोचकर अपनी किस्मत पर भी नहीं हुआ कि जिस ग्रेगरी पैक को देखने के लिए वह न जाने कब से तरस रही थी, वह खुद चलकर उनके घर आए हुए हैं। दरअसल हुआ यह था कि ग्रेगरी पैक के लिए कोई पार्टी सुरैया के घर के बिल्कुल पास होटल एम्बेसेडर में हो रही थी। उस पार्टी में अभिनेता अल नासिर भी आमंत्रित थे। 

वह बहुत आकर्षक नाक-नक्शे के थे। शराब पीने के शौकीन अल नासिर पूरी महफिल में सबसे बेखबर एक कोने में खड़े अकेले शराब पी रहे थे कि ग्रेगरी की नजर उन पर पड़ी, तो वह उनकी तरफ बस देखते ही रह गए। उन्होंने किसी से फुसफुसा कर पूछा, "यह आकर्षक मेहमान कौन है?" तो पता चला, यह मूक फिल्मों के हीरो अल नासिर हैं। यह सुनकर ग्रेगरी खुद को रोक नहीं पाए। वह अल नासिर के पास पहुंचे और अपना परिचय दिया। 

 परिचय पाते ही अल नासिर को सुरैया का ध्यान आया कि किस तरह वह उनके नाम की दीवानी हैं। उन्होंने ग्रेगरी से बिना झिझक कहा, "सुरैया के तुम मनपसंद हीरो हो अगर चल सको, तो उसे तुमसे मिलकर बड़ी खुशी होगी।" ग्रेगरी ने फौरन अल नासिर की बात मान ली और पार्टी छोड़कर वहीं से सुरैया के घर के लिए चल पड़े।

2 comments:

vinay-joshi said...

ati sunder lekh lekha hai apne

VK JOSHI

vinay-joshi said...

ati sunder