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23.6.13

तालाब, पार्क नहीं यहां तो नदी पर हो गया है अतिक्रमण

तालाब, पार्क नहीं यहां तो नदी पर हो गया है अतिक्रमण



  • मोरवा नदी के करीब 300 मीटर क्षेत्र पर कर लिया गया है कब्जा, 
  • जिलाधिकारी आवास के बाउंड्री से होकर गुजरी है मोरवा नदी, 
  • करीब एक दशक पूर्व हुआ था डीएम आवास का निर्माण, 
  • कार्यदायी संस्था व इंजीनियरों के कार्य पर सवाल

तालाबो पर कब्जे की बात तो आपको अखबारों में पढ़ने को मिल जाती हो लेकिन किसी नदी पर कब्जे की बात शायद किसी ने सुनी हो ,लेकिन उत्तर प्रदेश के  भदोही में कुछ ऐसा ही वाकया  सामना आया है।  देश में अपने तरह का पहला मामला है जब नदी को ही अपनी चहारदीवारी के अन्दर कर लिया गया है, 1994 में भदोही को जिला बनने के बाद जनपद में जिलाधिकारी के लिए एक बड़े आवास  की जरूरत पड़ी मुख्यालय के बगल में ही इसका निर्माण कराया गया,  उसी के पास से प्रवाहित हो रही मोरवा नदी को जिला अधिकारी के अवास के अन्दर ले लिया गया हालांकि यह कार्यदायी संस्थायो ने लगभग 10 वर्ष पूर्व किया होगा तबसे से लेकर अब तक  15 से अधिक जिला अधिकारी उस आवास में रह चुके हैं लेकिन किसी का ध्यान  भी इस ओर नहीं गया  मोरवा नदी सरपतहां आदि गांव से होते हुए आगे जाकर वरूणा नदी में मिल गई है। सरपतहां तक तो मोरवा नदी स्वच्छंद रूप में गुजरी है। लेकिन आगे जाकर जिलाधिकारी आवास के चहारदीवारी में कैद कर ली गई है। करीब 300 मीटर से अधिक लंबा नदी का क्षेत्र डीएम आवास की चहारदीवारी में कैद है। चहारदीवारी से होते हुए हुए नदी बाहर निकलती है।
   भारतीय संविधान और केन्द्रीय रिवर बोर्ड अधिनियम कहता है कि किसी भी प्राकृतिक संपदा नदी, तालाब आदि पर कब्जा नहीं किया जा सकता है। बावजूद जबकि कानून किसी भी नदी के क्षेत्र को किसी आवास के चहारदीवारी के अंदर नहीं मिलाया जा सकता है। जिस कार्य संस्था और इंजीनियरों की टीम ने आवास का निर्माण कराया, उन्होनें आखिरकार कानून का ख्याल क्यों नहीं रखा। यही नहीं अब तक कई जिलाधिकारी जिले में आए और गए। उनकी भी नजर आवासीय परिसर में कैद नदी पर नहीं पड़ी।
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    इसी  जनपद के उगापुर गांव के वाद पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय से पुरे देश में तालाबो ,पोखरांे आदि के संरक्षण में तेजी आई इस निर्णय ने देश के तालाबो पोखरों को जल संरक्षण का आधार  माना उसे संरक्षित करने उसे बचाने  का आदेश सरकार को दिया ,इस निर्णय ने तालाब पोखरों पार्कों पर अवैध कब्जा हटाने का अधिकार भी दे दिया ,लेकिन इसी से लगभग आठ किलोमीटर दूर जनपद की प्रमुख नदी मोरवा पर ही कब्जा कर लिया गया , कब्जा भी जिसने किया उसी को सरकार ने इसके संरक्षण की  करने की जिम्मेदारी भी सौंप रखी थी
पिचले 10 वर्षों  से ज्यादा समय से यही स्थिति बनी रही किसी सरकारी संस्थान की नजर इस ओर नहीं गया न ही पर्यावरणविद को नदी जल संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनो पर नजर  रखने के लिए अनेक सरकारी संस्थाए काम  करती हैं, लेकिन किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई ये सरकारी कार्यप्रणाली का इससे अच्छा सबुत नहीं हो सकता है हालांकि कुछ लोग मानते है की मामला जिलाधिकारी आवास से जुड़ा हुआ है इसलिए किसी संगठन खबरनवीस , सरकारी अधिकारी की हिम्मत नहीं पड़ी हो , उप जिलाधिकारी ज्ञानपुर रत्नाकर मिश्रा का
 यहाँ बयांन  भी आपने आप पुष्टि करता है जब उनसे नदी कब्जे की बात पर वह इसे गलत बताते है लेकीन  जब जिलाधिकारी आवास की बात बताई गयी तो उनके बयान किस तरह से बदला गए  


जिलाधिकारी के रूप में तैनात हुए चंद्रकांत पाण्डेय से

अभी हाल में ही जनपद में जिलाधिकारी के रूप में तैनात हुए चंद्रकांत पाण्डेय से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया और कहा उन्हें आये एक-दो दिन ही हुए और इस मामले को  देखंेगे  नवागत जिलाधिकारी ने नदी अतिक्रमण को लेकर कार्रवाई के प्रति अपनाने की बात दिखाई पड़ती है।


वरुण बचाओ अभियान के संयोजक व्योमेश इस-

 पर अपनी टिप्पणी दी की नदी, तालाब आदि के संरक्षण के लिए सरकारें व न्यायालय विशेष सख्ती बरत रही है। बावजूद इसके अतिक्रमण जारी है। तालाब व पार्कों पर तो अतिक्रमण व अवैध कब्जा की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। लेकिन किसी नदी पर कब्जा कर लिया गया हो, ऐसा मामला अभी तक सामने नहीं आया था।


           जनपद के ओमप्रकाश पाल का कहना है

कि इस आवास और इसकी जमीन अधिगृहित कर पूरे निर्माण के दौरान स्वीकृति के लिए तमाम रास्ते तय किए होंगे। तमाम वरिष्ठ अधिकारी और शासन के स्तर से  आवास के लिए नक्शा आदि की भी स्वीकृति ली गई होगी ऐसे में इस प्रकार नदी को कब्जे में लिया गया वो लचर सरकारी कार्य प्रणाली का सबसे बड़ा सबूत


सामाजिक सरोकारों से रूचि रखने वाले पर्यावरण मामलों के जानकर और अधिवक्ता संतोष गुप्ता-
 

का का कहना है नदी, तालाब सार्वजनिक संपत्ति है। इस पर किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा कब्जा नहीं किया जा सकता है। इस पर कब्जा करने या इसे बाउंड्री में मिलाने का अधिकार किसी को नहीं है। भारतीय संविधान में इस बात का उल्लेख है कि किसी भी प्राकृतिक संपत्ति पर कोई भी व्यक्ति या संस्था कब्जा नहीं कर सकता है। राज्य सरकार को संपत्तियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। 133 सीपीआरसी में उल्लेख है कि जिलाधिकारी व मजिस्ट्रेट प्राकृतिक संपत्ति की सुरक्षा करें। अगर कब्जा व अतिक्रमण की जानकारी मिले तो कार्रवाई करें।




क्या कहते हैं एसडीएम

इस संबंध में उपजिलाधिकारी ज्ञानपुर रत्नाकर मिश्र से पूछा गया तो उन्होनें ने कहा किसी नदी, तालाब या जलाशय पर कब्जा नहीं किया जा सकता है। उसे अपने बाउंड्री के अंदर नहीं मिलाया जा सकता है। लेकिन जिलाधिकारी आवास के बाउंड्री से होकर बुजरी मोरवा नदी के बारे में पूछने पर गोलमोल जवाब दिया। कहा कि बाउंड्री के अंदर नदी भले है, लेकिन उसके स्वरूप वही है। स्वरूप् से छेड़छाड़ नहीं हुआ है। इसलिए बाउंड्री के अंदर मिलाया जा सकता है।


वरुणा  नदी 

वरुणा  नदी भदोही जनपद की ३२ किलोमीटर लम्बाई  तय करती वाराणसी के छोर से इलाहबाद के सीमा तक सफर तय करती है  जनपद के 155 वर्ग किमी परिक्षेत्र में फैली है यह नदी वरुण और गंगा की सहायक नदी है मोरवा नदी कारी गांव से निकली है जो कसिदहां, नथईपुर,मूसी, जोगीपुर, सरपतहां आदि गांव से होते हुए आगे जाकर वरूणा नदी में मिल गई है।

क्या कहता है कानून

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51क के तहत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक संपदा नदी ,तालाब आदि का संरक्षण करे।
2. अनुच्छेद 48क के तहत राज्य का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक संपदा की रक्षा करे।
3. 133 सीआरपीसी के तहत जिलाधिकारी व मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदान की गई है कि उन्हें सूचना मिले या वे निरीक्षण के दौरान किसी नदी, तालाब पर कब्जा है तो उसे तत्काल हटवाएं। डीएम व मजिस्ट्रेट को अतिक्रमण हटवाने का पूरा अधिकार है।
4. नदी के धारा या भूमि पर कोई ऐसा अवरोध नहीं लगाया जा सकता जिससे उसका उपयोग करने में जन सामान्य को परेशानी हो।
5. चहारदीवारी बनाकर किसी नदी के जल को अवरूद्ध नहीं किया जा सकता है।
6. नदी या तालाब का निजी तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।


फोटो गूगल मैप कर रहा है पुष्टि 

ग्ूगल मैप में देखने में साफ-साफ पता चल रहा कि मोरवा नदी को लिाधिकारी आवास परिसर में कैद किया गया है। नदी आवास के बाउंड्री के अंदर से गुजरी है। स्थिति स्पष्ट हो सके, इसके लिए तस्वीर को ग्राफिक्स के जरिए स्पष्ट किया गया है। लाल रंग की दिख रही लाइन मोरवा नदी है। वहीं नीले रंग की लाइन जिलाधिकारी आवास की बाउंड्री है। ग्राफिक्स देखने के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि मोरवा नदी का कितना लंबा क्षेत्र जिलाधिकारी आवास के परिसर से गुजरा है।

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