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9.6.13

इंसानियत

इंसानियत 

एक व्यक्ति समाज में बढ़ रहे पाप और अनाचार से दुखी होकर भगवान् के मंदिर गया और
भगवान से प्रार्थना करके बोला -प्रभु ,इस धरती पर पाप और अनाचार बहुत बढ़ गये हैं कृपा
करके संसार से पाप और अनाचार को हटाने के लिए देवता भेज दो।

भगवान् ने कहा -पुत्र ,इस पृथ्वी पर मैं जन्म तो देवताओं को ही देता हूँ परन्तु स्वार्थ और
मोह के वशीभूत मानव के संग में आकर वो देवपन भूल जाते हैं और पाप और अनाचार में
लिप्त हो जाते हैं।

भगवान का उत्तर सुन वह व्यक्ति वहां से चला गया।रास्ते में थोडा ही चल पाया था कि उसे
एक दूसरा मंदिर दिखाई दिया।वह व्यक्ति उस मंदिर में गया वहां दुर्गा की मूर्ति थी।वह
व्यक्ति माँ दुर्गा से प्रार्थना करते हुए बोला -माँ ,इस पृथ्वी पर पाप और अनाचार बढ़ गए हैं
आप करुणा करके इस पृथ्वी पर शक्ति की स्थापना करो ताकि पाप का नाश किया जा सके।

दुर्गा बोली -वत्स, तुम ठीक कह रहे हो परन्तु जब -जब भी मेने शक्ति को भेजने की कोशिश
कि तब तुम मनुष्यों ने उसे या तो कोख में मार दिया या वासना की पुतली समझ कर कुचल
दिया।

दुर्गा का उत्तर सुन वह व्यक्ति पुन:रास्ते की ओर बढ़ गया।कुछ दूर जाकर उसने देखा कि
एक सन्यासी घायल सूअर के घावों पर मरहम लगा रहा है।कुछ देर तक वह संत के क्रिया-
कलाप को देखता रहा और फिर समीप जाकर बोला -पूज्यवर,आप यहाँ इस निकृष्ट प्राणी
के घाव पर मरहम कर रहे हैं जबकि आप जानते हैं कि पृथ्वी पर घोर अनाचार फैल रहा है
आपको गाँव -गाँव जाकर पाप और अनाचार के खिलाप जागरूकता फैलानी चाहिए।

सन्यासी ने सूअर के मरहम लगाते हुए पूछा -क्या तुम गधे हो?

वह व्यक्ति बोला -आप क्या कह रहे हैं ,क्या मैं आपको इंसान नहीं दिख रहा हूँ ?

सन्यासी बोला-......तो फिर इंसानियत सीख ,पाप और अनाचार खुद ब खुद ख़त्म हो जाएगा।           

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