उत्तराखंड
में जलप्रलय के बाद मचा तांडव हमारे अतीत के साथ ही भविष्य को भी बहा ले गया है।
कहर की विनाशकता को पूरा देश दुनिया जान चुकी है, मदद को हाथ उठने लगे हैं, सहायता
देने वालों के दिल और दरवाजे हर तरफ खुल गए हैं। मगर अफसोस कि अभी तक हरसाल योग के
नाम पर विदेशियों से लाखों कमाने वाले बाबा, पर्यावरण संरक्षण और निर्मल गंगा के
नाम पर लफ्फाजियां भरी बैठकों का आयोजन करने वाले बाबा, गंगा की छाती पर अतिक्रमण
करने वाले बाबा, सरकारी जमीनों और मदद की फिराक में रहने वाले बाबा, पीले वस्त्रधारी
संस्कृत छात्रों के बीच चमकने वाले बाबा, कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। आखिर वह अब हैं
कहां.. क्यों नहीं आए वह अब तक त्रासदी के दर्द को कम करने के लिए, क्यों नहीं
खुले अब तक उनके खजाने, क्यों नहीं भेजी उन्होंने अब तक अपनी (तथाकथित) गंगा
बचाओ अभियान की फौज मदद के लिए, क्यों शोक जताने के लिए सिर्फ एक पेड़ लगाकर इतिश्री
कर ली उन्होंने, कहां चला गया उनका विभिन्न 'टी' वाला प्रोग्राम। कोई अब भी इनके
आभामंडल में घिरा रहे तो अफसोस ही जताया जा सकता है।
बंधुओं बात सिर्फ किसी एक बाबा कि नहीं, बल्कि उत्तराखंड की धरती से हरसाल मठ मंदिरों में जमकर, तीर्थों में जमीन कब्जाने वाले, गद्दियों के लिए लड़ने वाले, आलीशान और फाइव स्टार जैसी सुविधाओं वाले आश्रमों और धर्मशालाओं में रहकर अंधभक्तों की गाढ़ी कमाई बटोरने वाले बाबा भी दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। उनके सदावर्त चलने वाले भंडारे भी कहीं गायब हो गए हैं। आम आदमी भी मदद को हजार पांच सौ का चेक राहत कोष को दे रहा है, मगर इनके खजाने की चाबी जाने कहां गुम हो गई है।
क्या इनके अंधभक्तों की अब भी आंखें नहीं खुलेंगी। या फिर वे बाबा के चमत्कारों के भ्रम में ही खुद को ठगाते रहेंगे। शहरी विकास मंत्री जी अपनी गंगोत्री के घाव भरने के लिए ही मांग लीजिए इन बाबाओं से जिनकी आप अब तक आराधना करते आए हैं। सीएम साहब आप तो बाबाओं के धोरे जाकर हमेशा रिचार्ज होने की बातें कहते रहे हैं, अब इन्हें भी समझाईए कि इन अभागे पहाड़ों को भी कुछ रिचार्ज कर दें। जो इस देवभूमि की बदौलत उन्होंने बटोरा है।
बंधुओं बात सिर्फ किसी एक बाबा कि नहीं, बल्कि उत्तराखंड की धरती से हरसाल मठ मंदिरों में जमकर, तीर्थों में जमीन कब्जाने वाले, गद्दियों के लिए लड़ने वाले, आलीशान और फाइव स्टार जैसी सुविधाओं वाले आश्रमों और धर्मशालाओं में रहकर अंधभक्तों की गाढ़ी कमाई बटोरने वाले बाबा भी दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। उनके सदावर्त चलने वाले भंडारे भी कहीं गायब हो गए हैं। आम आदमी भी मदद को हजार पांच सौ का चेक राहत कोष को दे रहा है, मगर इनके खजाने की चाबी जाने कहां गुम हो गई है।
क्या इनके अंधभक्तों की अब भी आंखें नहीं खुलेंगी। या फिर वे बाबा के चमत्कारों के भ्रम में ही खुद को ठगाते रहेंगे। शहरी विकास मंत्री जी अपनी गंगोत्री के घाव भरने के लिए ही मांग लीजिए इन बाबाओं से जिनकी आप अब तक आराधना करते आए हैं। सीएम साहब आप तो बाबाओं के धोरे जाकर हमेशा रिचार्ज होने की बातें कहते रहे हैं, अब इन्हें भी समझाईए कि इन अभागे पहाड़ों को भी कुछ रिचार्ज कर दें। जो इस देवभूमि की बदौलत उन्होंने बटोरा है।
2 comments:
बहुत कुछ सोचने पे विवश करती सार्थक रचना
aapki agayanta par hasi aati hai. Media jo na dikhaye uska kya koi astitva nahi.
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