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12.6.13

अधखुले ओंठों में बंद अरमान - निम्मी

अधखुले ओंठों में बंद अरमान - निम्मी 

जन्म - 18 फरवरी, 1933 

कमनीय काया, ठिगना कद, गोल चेहरा, घुँघराले बाल, उनींदी-स्वप्निल आँखें, कमान की तरह तराशी गई भौंहें, पल-पल झलकती पलकें – ये सब सौंदर्य विशेषण गुजरे जमाने की अभिनेत्री निम्मी के लिए व्यक्त किया जा रहे हैं। इन विशेषताओं को देखकर हर दर्शक मासूम निम्मी को मुग्ध-भाव देखता था। नाम भी निम्मी जो निमेष (पलकों) से ध्वनि-साम्य रखने वाला। उनका वास्तविक नाम तो नवाब बानो था, लेकिन युवा राजकपूर ने उन्हें अपनी फिल्म ‘बरसात’ (1949) में पेश करते हुए निम्मी बना दिया था। निम्मी का जन्म 1933 में आगरा के निकट फतेहाबाद गाँव में क रईस खानदान में हुआ था। उनके पिता अब्दुल हाकिम रावलपिण्ड़ी में सेना के ठेकेदार थे। निम्मी को बचपन में बहुत लाड़ प्यार मिला। उनकी माँ वहीदन बाई गायिका थीं और बड़े शौक से फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किया करती थीं। चाची ज्योति भी फिल्म में गायन और अभिनय करती थीं। सन् 47 के आसपास निम्मी चौदह साल की उम्र में अपनी चाची ज्योति के घर पहुँची। छुट्टियों के दिन थे। समय बिताने के लिए निम्मी मेहबूब स्टूडियो में जाकर शूटिंग देखा करती। उन दिनों मेहबूब दिलीपकुमार, राजकपूर और नरगिस को लेकर अपनी प्रसिद्ध फिल्म ‘अंदाज’ बना रहे थे। यहीं राजकपूर ने, जो स्वयं भी ‘बरसात’ बनाने की तैयारियों में लगे थे, निम्मी को नजदीक से देखा। 

राजकपूर को बरसात के ट्रैजिक राल के लिए निम्मी जँच गई, इसलिए निम्मी को बड़ी आसानी से फिल्मों में प्रवेश मिल गया। ‘बरसात’ में निम्मी पर शीर्षक-गीत ‘बरसात में हम से मिले तुम रे सजन’ फिल्माया गया था, जो लता मंगेशवर के जादू का शुरुआती गाना था, इसलिए भी निम्मी अपनी पहली ही फिल्म से एकदम लाइम-लाइट में आ गई। बरसात के बाद निम्मी को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। उनकी अभिनय यात्रा निरापद रही। उस जमाने की भावनाप्रधान फिल्मों के लिए निम्मी एकदम उपयुक्त थीं, क्योंकि उनका सलोना मुखड़ा भावाभिव्यक्ति का खज़ाना था। कैमरे का सामने वे नैसर्गिक रूप से पात्र की काया में उतर जातीं और फटाफट काम पूरा कर देतीं । 

अपने सोलह साल के करियर में निम्मी ने 45 फिल्में कीं, जिनमें से आधी कामयाब रहीं। निम्मी ने अभिनय का कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन उर्दू पर उनकी अच्छी पकड़ होने से संवाद अदायगी साफ और लयात्मक थी। उसमें सेकस-अपील भी थी, जबकि उस समय फिल्मी-आलोचना में इस तरह का शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता था। ‘आन’ फिल्म के लंदन में प्रीमियर के अवसर पर वहाँ के अखबारों ने उसे ‘अनकिस्ड-गर्ल ऑफ इंडियन स्क्रीन’ लिखा था। निम्मी ने अपने दौर में सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया। वह सीन को अपनी दिशा में मोड़ने में माहिर थी, इसलिए कुछ कलाकार उनके साथ काम करने से घबराते भी थे। 


अधखुले ओंठों में बंद अरमान - निम्मी 


दिलीपकुमार के साथ उन्होंने ‘दीदार’ (51), ‘आन’ एवं ‘दाग’ (52) ‘अमर’ (54) और ‘उड़न-खटोला’ (55) में काम किया। ‘बुजदिल’, ‘सजा’ और ‘आँधियां’ में वे देवआनंद की नायिका रही। आँधियाँ फिल्म कॉन फेल्टिवल में दिखाई गई थी । चेतन आनंद द्वारा बुद्ध के जीवन पर बनाई गई फिल्म ‘अंजलि’ में भी वे थीं। अशोककुमार और किशोरकुमार के साथ ‘भाई-भाई’ (56) में आई। उन्हें सोहराब मोदी, जयराज, भारतभूषण, राजकुमार, राजेन्द्रकुमार, संजीवकुमार और धर्मेद्र के साथ फिल्में करने के अवसर भी हाथ लगे। ‘बसंत-बहार’ और ‘चार दिल चार राहें’ भी उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं। ‘मेरे महबूब’ (1963) उनकी अंतिम फिल्म थी। उसके बाद उन्होंने फिल्मों से संन्यास की घोषणा कर दी। संवाद लेखन अली रजा से विवाह के बाद वे माँ बनना चाहती थी, लेकिन यह मुराद पूरी नहीं हुई। 

सन् 1987 में के.आसिफ की फिल्म ‘लव एंड गॉड’ में दर्शकों ने उन्हें अंतिम बार परदे पर देखा। यह फिल्म आसिफ अधूरी छोड़ गए थे, जो उनके निधन के पश्चात प्रदर्शित की गई।

4 comments:

Shri Sitaram Rasoi said...

दोस्तों,
आदरणीय श्रीराम ताम्रकर जो मेरे बड़े भाई की तरह हैं। जब मैं कुछ महीनों पहले इंदौर गया था तो इन्होंने मुझे इनकी नई पुस्तक "बीते कल के सितारे" भैंट की थी। इस पुस्तक में इन्होंने पुराने जमाने के फिल्मी सितारों के जीवन की दुर्लभ जानकारियां उपलब्ध करवाई हैं। उस जमाने में जब न टीवी होता था, और न ही इतनी फिल्मी पत्रिकाएं मिलती थी। फिर भी इतनी जानकारियां इकट्ठी करना श्रीराम ताम्रकर साहब के ही बूते की बात है। इस पुस्तक की रोचकता का अंदाजा आप इसी बात से लगा लें कि मैंने इतनी मोटी किताब मैंने लौटते समय ट्रेन में ही पढ़ डाली। मैं आपको इस पुस्तक के महत्वपूर्ण अंश नियमित रूप से शेयर करता रहूँगा। इसमें बहुत मेहनत होगी इसलिए मैं चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ें। आपको अच्छे लगे तो पत्र लिख कर श्रीराम ताम्रकर साहब को बतलायें। मैं एक बार पुनः श्रीराम ताम्रकर साहब को इस महान रचना के लिए बधाई देता हूँ। ये जानकारियां उन्हें बहुत पसंद आयेंगी जो फिल्में देखते हैं और उनके बारे जानना चाहते हैं।

ये जानकारियां आपको हमारे कोलावरी डी पेज पर मिलेंगी ..... http://www.facebook.com/pages/Kolaveri-di/326086184086177?ref=hl (3 photos)

Shri Sitaram Rasoi said...

ग़लत निर्णय
निम्मी ने उस दौर में जोखिम भी लिए और कुछ ग़लतियाँ भी कीं। वे फ़िल्म 'चार दिल चार राहें' (1959) में एक वेश्या के रूप में नज़र आईं, जबकि बी. आर. चोपड़ा की 'साधना' (1958) को उन्होंने खारिज कर दिया। वर्ष 1963 में 'वो कौन थी' निम्मी ने ठुकरा दी। 'साधना' फ़िल्म ने वैजयंती माला को चमकाया और 'वो कौन थी' ने साधना को प्रसिद्धि दिलवाई। दोनों बार निम्मी साधना से हारीं। एक बार 'साधना' फ़िल्म से तो दूसरी बार साधना अभिनेत्री से। निम्मी ने फिर से एक ग़लत फैसला लिया। मौक़ा था हरनाम सिंह रवैल की फ़िल्म 'मेरे महबूब' का। यह बड़े बजट की और मुस्लिम विषय पर बनने वाली रंगीन फिल्म थी। 'मेरे महबूब' में जो रोल साधना ने निभाया, वह पहले निम्मी को मिला था। निम्मी का रोल बीना राय को मिला। निम्मी फिर चुक गयीं।[3]

Shri Sitaram Rasoi said...

'आन' में निम्मी की मौत और नृत्य लोकप्रिय थे। यह पहली हिन्दी फ़िल्म थी, जिसका अत्यंत भव्य प्रीमियर लंदन में हुआ था। यहाँ निम्मी भी मौजूद थीं। फ़िल्म 'आन' का अंग्रेज़ी संस्करण 'सेवेज प्रिंसेज' था। निम्मी ने ऐरल फ़्लिन सहित कई पश्चिमी फ़िल्मी हस्तियों से मुलाकात की। जब फ़्लिन ने निम्मी के हाथ पर चुंबन करने का प्रयास किया, तब उन्होंने हाथ दूर खींच लिया, और कहा- "मैं एक भारतीय लड़की हूँ, तुम चुंबन नहीं कर सकते हो।" यह घटना सुर्खियों में आ गयी और लन्दन के प्रेस ने "भारत की अनकिस्ड लड़की" के रूप में निम्मी को पेश किया। 'आन' की कामयाबी के बाद महबूब ख़ान ने अपनी अगली फ़िल्म 'अमर' (1954) में निम्मी को लिया।

Shri Sitaram Rasoi said...

श्रीराम ताम्रकर का परिचय
9 नवम्बर 1938
एम.ए., बी.एड., विद्यावाचस्पति,
विशारद, एफ.ए. (FTII)

अध्यापन
विख्याता, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महू-इन्दौर, प्राचार्य पद से सेवा निवृत्त (2000)
पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला एवं अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर (दो शतक से अनवरत)
विशेष व्याख्यान
माइका (अहमदाबाद)
भारत भवन (भोपाल)
जयपुर विश्वविद्यालय
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि. (भोपाल)
फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप-सेमीनार
भारत भवन भोपाल (2006)
म.प्र.फिल्म विकास निगम द्वारा संचालित, इन्दौर (1990)
डी.ए.वी.वी. में पाँच सप्ताह की कार्यशाला (1993)
संस्कृति विभाग (भोपाल) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार-सिनेमा और समाज (2005)
सम्पादन
नई दुनिया (इन्दौर) के लिए आठ फिल्म कलेक्टर्स इश्यु की परिकल्पना एवं सम्पादन
फिल्म संस्कृति के 43 अंको की परिकल्पना एवं सम्पादन
म.प्र. फिल्म विकास निगम (भोपाल) के लिए तीन फिल्म वार्षिकी की परिकल्पना एवं सम्पादन
राज कपूर पर मोनोग्राफ
फिल्म स्तम्भ का लेखन-सम्पादन
नई दुनिया (इन्दौर-भोपाल), दैनिक भास्कर (इंदौर-ग्वालियर) और स्वदेश
पुरस्कार-मान-सम्मान
दादा साहेब फालके अकादमी, मुम्बई द्वारा वर्ष्ठ फिल्म पत्रका सम्मान (2010)
म.प्र.शासन के संस्कृति विभाग द्वारा बेस्ट फिल्म क्रिटिक का पटकथा अवार्ड (1992)
मधुबन भोपाल का कलागुरू सम्मान (1999)
मालवा लोककला एवं संस्कृति संस्थान उज्जैन द्वारा भेराजी सम्मान (2010)
मालव शिक्षा अलंकरण
अहिल्या सम्मान खरगोन (2002)
इन्दौर नगर निगम/लायंस/रोटरी/बैंक आफ पटियाला/स्टेट बैंक आफ इन्दौर के विविध सम्मान
अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह
भारत में आयोजित समारोहों में 1976 से 2003 तक नियमित सहभागिता
मामी (मुम्बई), पुणे और उदयपुर में सहभागिता
फिल्म सोसाइटी आंदोलन
इन्दौर में 1973 से 1993 तक फिल्म सोसाइटी का सफल संचालन
सम्प्रति सिनेविजन की अध्यक्षता
इन्दौर-भोपाल-जबलपुर में राष्ट्रीय फिल्म समारोहों का आयोजन-संचालन
प्रसारण
इन्दौर भोपाल दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर वार्ता साक्षात्कारों का नियमित प्रसारण
सहारा समय पर फिल्म समीक्षा का लाइव प्रसारण
वेबदुनिया (हिन्दी) पोर्टल पर बॉलीवुड सेक्शन के कंटेंट का आनलाइन प्रजेंटेशन
जूरी
विश्व के प्रथम जनजातीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह 2008
ग्लोबल सिनेमा फेस्टीवल इन्दौर (आयोजित समिति)
लता अलंकरण एवं किशोर कुमार सम्मान अनेक बार
फिल्मी हस्तयों के विशिष्ट साक्षात्कार
लता मंगेशकर, आशा भोंसले, राज कपूर, असोक कुमार, दिलीप कुमार, शबाना आज़मी, माधुरी दीक्षित, काजोल, राजेश खन्ना, अनिल कपूर, श्याम बेनेगल, अमोल पालेकर,अक्षय कुमार, विजया मेहता, केतन मेहता, कुमार शाहनी, दीप्ति नवल, ओम पुरी, बासु भट्टाचार्य, गुलज़ार, शशि कपूर, तलत मेहमूद, निर्मल पांडे, जॉनी वाकर, खय्याम, प्रकाश झा, महेश भट्ट, सुनील दत्त, मनोज कुमार, डेविड, सुभाष घई, गोविंद निहलानी और नाना पाटेकर।
विशिष्ट लेखन
धर्मयुग, माधुरी, दिनमान, साप्ताहिक एवं दैनिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, राजस्थान पत्रिका, दैनिक ट्रिब्यून, लोकमत समाचार, आउटलुक, समझ झरोखा, सरिता और मुक्ता।



बीते कल के सितारे
सिनेमा की आधी सदी का सफर
प्रकाशक
लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रेकार्ड संग्रहालय

सम्पर्क सूत्र
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सचिव,
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ग्राम- पिडडम्बर
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