कब तक धर्म के नाम पर राजनीति का बोझ उठाएंगें भारतीय ....?
यह देश सभी धर्मावलम्बियों को साथ लेकर चलता आया है और यही कारण है कि हम अपनी
संस्कृति पर गर्व करते आये हैं।जिस तरह अनेकों नदियाँ अलग-अलग भू भाग से बह कर सागर
में आकर एक हो जाती है उसी तरह संसार के अनेक धर्म भारत की भूमि पर आकर विश्व बंधुत्व
के सागर में एक होते आये हैं और होते रहेंगे ,क्योंकि हिंदुत्व प्राणी मात्र में समभाव समदृष्टि के
सिद्धांत पर ही बना है।
इस देश का दोहन अंग्रेजों ने किया और अपने स्वार्थ के लिए दौ धर्मो के बीच खाई भी बनाई ,
उन्होंने जो भी किया उसे उनके देश के हित के अनुकूल किया होगा लेकिन 1947 के बाद अब तक
हमारे ही नेताओं ने क्या किया ?
इस देश की सभी राजनैतिक पार्टियाँ भी भारतीयों के साथ वही खेल चला रही है जो आजादी के
पहले अंग्रेजों का था।सभी पार्टियाँ अल्पसंख्यक समाज को वोट बेंक मानती है और उन्हें
काल्पनिक भय बहुसंख्यकों का दिखाती है।यह एक कटु सच्चाई है कि इस देश में सभी अल्प
संख्यक धर्मावलम्बी किसी पार्टी विशेष की नीतियों के कारण सुरक्षित नहीं है ...नहीं है। वे इस
देश के बहुसंख्यकों की विश्व बंधुत्व और सब में एक ही तत्व ( एक ही ईश्वर )है इस मूल सिद्धांत
से ही सुरक्षित हैं और वे यह भावना जब तक जिन्दा है तब तक सुरक्षित भी रहेंगे।
स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक कौनसा चुनाव धर्म तथा जातिगत समीकरणों को अलग रख
कर भारतीयों के हितों को ध्यान में रख कर लड़ा गया।एक भी नहीं .......तो क्या इसका यह अर्थ
नहीं निकलता है कि केवल राजनीतिक दल ही साम्प्रदायिक है जो सत्ता के स्वार्थ में सभी
भारतीयों में धर्म का जहर फैलाते हैं और सत्ता सुख भोगते हैं।
सवाल यह है कि हम भारतीय इन राजनेतिक पार्टियों के नेताओं के बहकावे में आकर कब तक
इनका बोझ उठाये रहेंगे ?हम इनसे कब कहेंगे कि आप धर्म और जाती के मामलो से हटकर
इस देश के हित में क्या काम करेंगे इस पर अपने विचार खुल्ले कीजिये ,धर्म और जाती हम
भारतीयों का आस्था का मामला है जो एक दुसरे का पूरक ही है इसमें आप दखल मत कीजिये
आज करोड़ों भारतीय गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे हैं ....क्यों ?किसके पाप के कारण
कोई भी दल इसकी जिम्मेदारी लेगा ....?किसकी नीतियों के कारण करोड़ों भारतीय बदहाली
का जीवन जीने को मजबूर हैं ...क्या यह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सामूहिक जबाबदेही
नहीं निभा पाने के कारण हुआ
क्या अगला चुनाव भी राजनेतिक दल धर्म और जाती को मध्य में रख कर लड़ेंगे या विकास
और देश हित के मुद्दे पर।यह तय करोड़ों भारतीयों को करना है कि हम कब तक तकवादी
लोगो का बोझ ढ़ोते रहेंगे ............
यह देश सभी धर्मावलम्बियों को साथ लेकर चलता आया है और यही कारण है कि हम अपनी
संस्कृति पर गर्व करते आये हैं।जिस तरह अनेकों नदियाँ अलग-अलग भू भाग से बह कर सागर
में आकर एक हो जाती है उसी तरह संसार के अनेक धर्म भारत की भूमि पर आकर विश्व बंधुत्व
के सागर में एक होते आये हैं और होते रहेंगे ,क्योंकि हिंदुत्व प्राणी मात्र में समभाव समदृष्टि के
सिद्धांत पर ही बना है।
इस देश का दोहन अंग्रेजों ने किया और अपने स्वार्थ के लिए दौ धर्मो के बीच खाई भी बनाई ,
उन्होंने जो भी किया उसे उनके देश के हित के अनुकूल किया होगा लेकिन 1947 के बाद अब तक
हमारे ही नेताओं ने क्या किया ?
इस देश की सभी राजनैतिक पार्टियाँ भी भारतीयों के साथ वही खेल चला रही है जो आजादी के
पहले अंग्रेजों का था।सभी पार्टियाँ अल्पसंख्यक समाज को वोट बेंक मानती है और उन्हें
काल्पनिक भय बहुसंख्यकों का दिखाती है।यह एक कटु सच्चाई है कि इस देश में सभी अल्प
संख्यक धर्मावलम्बी किसी पार्टी विशेष की नीतियों के कारण सुरक्षित नहीं है ...नहीं है। वे इस
देश के बहुसंख्यकों की विश्व बंधुत्व और सब में एक ही तत्व ( एक ही ईश्वर )है इस मूल सिद्धांत
से ही सुरक्षित हैं और वे यह भावना जब तक जिन्दा है तब तक सुरक्षित भी रहेंगे।
स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक कौनसा चुनाव धर्म तथा जातिगत समीकरणों को अलग रख
कर भारतीयों के हितों को ध्यान में रख कर लड़ा गया।एक भी नहीं .......तो क्या इसका यह अर्थ
नहीं निकलता है कि केवल राजनीतिक दल ही साम्प्रदायिक है जो सत्ता के स्वार्थ में सभी
भारतीयों में धर्म का जहर फैलाते हैं और सत्ता सुख भोगते हैं।
सवाल यह है कि हम भारतीय इन राजनेतिक पार्टियों के नेताओं के बहकावे में आकर कब तक
इनका बोझ उठाये रहेंगे ?हम इनसे कब कहेंगे कि आप धर्म और जाती के मामलो से हटकर
इस देश के हित में क्या काम करेंगे इस पर अपने विचार खुल्ले कीजिये ,धर्म और जाती हम
भारतीयों का आस्था का मामला है जो एक दुसरे का पूरक ही है इसमें आप दखल मत कीजिये
आज करोड़ों भारतीय गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे हैं ....क्यों ?किसके पाप के कारण
कोई भी दल इसकी जिम्मेदारी लेगा ....?किसकी नीतियों के कारण करोड़ों भारतीय बदहाली
का जीवन जीने को मजबूर हैं ...क्या यह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सामूहिक जबाबदेही
नहीं निभा पाने के कारण हुआ
क्या अगला चुनाव भी राजनेतिक दल धर्म और जाती को मध्य में रख कर लड़ेंगे या विकास
और देश हित के मुद्दे पर।यह तय करोड़ों भारतीयों को करना है कि हम कब तक तकवादी
लोगो का बोझ ढ़ोते रहेंगे ............
No comments:
Post a Comment