ऋषिकेश में एक मूर्ति बही तो देश का पूरा मीडिया ने आसमान सर
पर उठा लिया। खासकर तब जब वह न तो ऐतिहासिक थी, न पौराणिक।
2010 में भी मूर्ति ऐसे ही बही थी। जबकि राज्य के अन्य हिस्सों में
हजारों जिंदगियां दफन हो चुकी हैं। तब भी मीडिया के लिए मूर्ति का बहना बड़ी खबर बनी
हुई है। मजेदार बात कि यह क्लिप मीडिया को बिना प्रयास के ही मिल गए। आखिर कैसे..
जबकि ऋषिकेश में राष्ट्रीय मीडिया का एक भी प्रतिनिधि कार्यरत नहीं
है। एक स्थानीय मीडियाकर्मी की मानें तो यह सब मैनेजिंग मूर्ति के स्थापनाकारों की
ओर से ही हुई।
अब सवाल यह कि एक कृत्रिम मूर्ति के बहने मात्र की घटना को राष््ट्रीय आपदा बनाने के पीछे की सोच क्या है। इसके लाभ क्या हो सकते हैं.. कौन और कब पहचाना जाएगा, या कब कोई सच को सामने लाने की हिकमत जुटाएगा। क्या मीडिया की भांड परंपरा में यह संभव है।
किसी के पास यदि इसी स्थान की करीब डेढ़ दशक पुराना फोटोग्राफ्स हो तो काफी कुछ समझ आ जाएगा कि क्या गंगा इतनी रुष्ट हुई या उसे अतिक्रमण ने मजबूर कर दिया। अब एकबार फिर गंगा और मूर्ति के नाम पर आंसू बहेंगे, और कुछ समय बाद कोई राजनेता, सेलिब्रेटी तीसरी बार नई मूर्ति की स्थापना को पहुंचेगा। और आयोजित समारोह में निर्मल गंगा और पर्यावरण संरक्षण की लफ्फाजियां सामने आएंगी। जिसे स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया एक बड़ी कवायद और उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेगा।
धन्य हो ऐसे महानतम मीडिया का.....
अब सवाल यह कि एक कृत्रिम मूर्ति के बहने मात्र की घटना को राष््ट्रीय आपदा बनाने के पीछे की सोच क्या है। इसके लाभ क्या हो सकते हैं.. कौन और कब पहचाना जाएगा, या कब कोई सच को सामने लाने की हिकमत जुटाएगा। क्या मीडिया की भांड परंपरा में यह संभव है।
किसी के पास यदि इसी स्थान की करीब डेढ़ दशक पुराना फोटोग्राफ्स हो तो काफी कुछ समझ आ जाएगा कि क्या गंगा इतनी रुष्ट हुई या उसे अतिक्रमण ने मजबूर कर दिया। अब एकबार फिर गंगा और मूर्ति के नाम पर आंसू बहेंगे, और कुछ समय बाद कोई राजनेता, सेलिब्रेटी तीसरी बार नई मूर्ति की स्थापना को पहुंचेगा। और आयोजित समारोह में निर्मल गंगा और पर्यावरण संरक्षण की लफ्फाजियां सामने आएंगी। जिसे स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया एक बड़ी कवायद और उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेगा।
धन्य हो ऐसे महानतम मीडिया का.....
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