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20.6.13

निर्णय क्षमता

निर्णय क्षमता 

शास्त्र कहते हैं कि संशय में फंसे रहने वाले मनुष्य विनाश को प्राप्त हो जाते हैं।हमें हाँ और
ना के बीच में फंसे नहीं रहना चाहिए।हम प्रतिदिन कुछ ना कुछ निर्णय अवश्य करते हैं ,क्या
हमारे द्वारा किये गए सभी फैसले सही होते हैं ?....अगर सही होते तो इस विषय पर लिखने
की आवश्यकता भी नहीं थी।

               निर्णय कैसे ले -- निर्णय लेना जीवन को गतिशील रखने के लिए आवश्यक है ,सभी
व्यक्ति निर्णय लेते हैं उसमे से ज्यादातर व्यक्ति अटूट निर्णय के स्तर को नहीं छू पाते ?ऐसा
इसलिए होता है कि उनके द्वारा लिया गया निर्णय तठस्थ होकर नहीं लिया जाता है।हम
निर्णय लेने से पहले सब कुछ अपने अनुकूल सोच कर फैसले पर पहुँच जाते हैं तब इसके
विपरीत परिणाम भोगने पड़ते हैं।

                  निर्णय लेने से पहले सवाल या समस्या के मूलरूप को जानने की कोशिश करे।
जब तक हम स्थिति को मूल रूप से सांगोपांग रूप से समझ नहीं लेते तब तक हमे अपना
समय चिंतन और मनन करने में बिताना चाहिए।जब भी कोई विषय हमारे समक्ष आता
है तब उसे समझे तथा समस्या को खुद से दूर रखकर देखे यदि हम अपनी समस्या में लिप्त
नहीं हिकार तटस्थ भाव से देखेंगे तो हम बात के मर्म को सही मायने में समझ पायेंगे।

                 निर्णय और उतावलापन ,यदि एक साथ किसी भी व्यक्ति में होता है तो वह सही
निर्णय ले ही नहीं पाता क्योंकि उतावलापन उस विषय पर पूरा चिंतन किये बिना ही फैसले
पर पहुंचा देता है। उतावला और जल्दबाज ना तो खुद सही निर्णय कर पाता है और ना ही
किसी को उचित सलाह देने की स्थिति में होता है।जब भी निर्णय करना हो तो उस विषय
के हानि लाभ और दीर्घकाल में पड़ सकने वाले प्रभाव पर शांत चित्त से सोचे।

                 क्रोध की अवस्था में कोई भी निर्णय ना करे क्योंकि क्रोध अविवेक से उत्पन्न
होता है और विवेकशुन्यता की अवस्था में सही निर्णय हो नहीं सकता है।यदि हम गुस्से में
है और निर्णय करना जरुरी भी है तब उस निर्णय को कुछ समय के लिए टालने की नीति
अपनाये,बहुत बार विषम परिस्थितियों में निर्णय ना करना भी एक निर्णय ही होता है।

               चिंता की अवस्था में दिमाग की क्षमता कम हो जाती है यदि हम चिंता में है और
उस समय निर्णय कर लेते हैं तो गलत परिणाम मिल जाते हैं।

             अकेले विचार करके निर्णय पर नहीं पहुंचे क्योंकि हम समस्या का आंकलन पूरी
तरह से करने में चुक गए तो काम बिगड़ भी जाता है और जग हँसाई भी होती है,परन्तु
इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने मन्त्र (योजना )को चोपट कर दे।हमे अपने विश्वनीय
मित्र के साथ बैठ कर मनन करना चाहिए।विश्वनीय का अर्थ जिस पर आप विश्वास करते
हैं ,जो आपकी योजना को खुद तक सिमित रख सकता हो ,जो उस विषय में योग्य हो ,जो
उस योजना की लाभ हानि से जुड़ा  हुआ ना हो।

            निर्णय से अटूट निर्णय की ओर - जब हम उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर
निर्णय लेते हैं तब भी फैसले को अधुरा ही माने क्योंकि अभी तक के मंथन से हमे जो कुछ
हासिल हुआ है वह निर्णय लेने के लिए काफी नहीं है।हमें उस निर्णय पर पुनर्विचार करना
चाहिए।उस निर्णय के हर अंश पर गौर करे ,निर्णय का सूक्ष्मतम अवलोकन करे।उसके हानि
लाभ और प्रभाव को फिर से जांच ले ,मन में यदि लेश मात्र शंका बची हो तो उसका निवारण
करे। निर्णय ही हमे अपने लक्ष्य तक पहुंचाता है इसलिए अटूट निर्णय करना आवश्यक
होता है। अटूट निर्णय का मतलब विकल्प रहित होना है मगर उपाय रहित होना नहीं है।
जब भी हम निर्णय करते हैं उसका अर्थ लक्ष्य को पाना ही होता है मगर हमारे द्वारा लिए
गए निर्णय के कारण लक्ष्य दूर नजर आता हो तो पहले से सोचे गए उपाय का भी उपयोग
कर ले क्योंकि हम सफल होने के लिए ही निर्णय करते हैं।

        पुरे मनोयोग से अमल करे - यदि हम इस स्थिति तक पहुँच पाते हैं तो हमारा अगला
और महत्वपूर्ण कार्य है निर्णय पर पुरे मन से काम करना।हम यदि पुरे मन से ,अटूट उत्साह
से, निर्णय पर सच्ची श्रद्धा रख कर लक्ष्य की ओर आगे बढ़ जाते हैं तो मंजिल भी पास आ
जाती है                         

1 comment:

Dr Om Prakash Pandey said...

a very useful post , thanks!