
जनता लाठी वाले संत को अपने जैसा मानती थी। उनके एक इशारे पर लाखो लोग निर्विकार भाव से अपने प्राणों की आहुति दे देते थे। ऐसे ही हजारों अन्य लक्षण महात्मा के अवतारी होने की पुष्टि करते हैं।
जहाँ तक मेरी संसारी दृष्टि देख पाती है, उससे तो लगता है कि, बापू श्रीकृष्ण के आधुनिक संस्करण थे, एक कालजयी फ़िल्मी गीत के अनुसार उन्होंने लीलाएं भी की थीं। भगवान् श्रीकृष्ण के परिवार और शुभचिंतकों की तरह बापू के परिवार का जीवन भी कष्टप्रद रहा हाँ सुदामा की तरह छुपकर खाने वालों को उन्होने अपना सारा राजपाट दे दिया। अपुष्ट इतिहास के अनुसार बापू की बा के बाद कई समर्पित गॊप और गोपियाँ थी जिन्हें चरखे की मधुर ध्वनी सम्मोहित किये रहती थी, बापू कृष्ण की तरह ही जितेन्द्रिय थे यह बात उनके स्वयं के ही कई प्रयोगों से प्रमाडित हो चुकी है।
भगवान श्री गाँधी जी के संपूर्ण जीवन का हर छन मेरी इस बात को बल देता है। वासुदेव की ही तरह उनके भी अनेकों नाम भक्तजनों में प्रचलित है। जहाँ उन्होने इस बार गीता के 'संघे शक्ति' को चरित्रार्थ करते हुए अँगरेज़ कंसों से छुटकारा दिलाया वहीँ अफ्रीकी आन्दोलन और बोवर युद्ध में निर्णायक भूमिका निबाही और भारतीय प्रतिभा को कृष्ण की तरह विश्वपटल पर स्थापित किया।
कालांतर में भी उनके द्वारा अनुग्रहित किये गए सुदामागण समस्त सुखों को प्राप्त करेंगे ऐसा वर देकर महात्मा गाँधी ने अपने पूर्व अवतार की भांति एक बहेलिये के बहाने अपनी लीला को विराम दे दिया, बोलो भगवान् श्री महात्मा गाँधी की जय.
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