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28.8.15

रक्षाबंधन दिवस पर विशेष आलेख : राखी एक धागा नहीं अपितु स्नेह सूत्र


-डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि

रक्षा का अर्थ है प्रेम, दया, सहयोग और सहानुभूति। रक्षा जीवन में मधुरता का संचार करती है, भाईचारे की भव्य भावना को उजागर करती है। दूसरों के दुःखों से द्रवित होकर उनकी रक्षा के लिए अपने सुःखों का बलिदान करना और कष्टों को स्वीकारना यह रक्षा के साथ जुड़ा है। रक्षा की भव्य भावना से उत्प्रेरित होकर ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धनुष उठाया, और कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने सुदर्षन चक्र धारा था।



इतिहास साक्षी है कि रक्षा के लिए महारानी कर्मावती ने एक रक्षा सूत्र हुमायूं के पास भेजा था उस समय हुमायूं विजय पताका फहराने वाला था, उसी समय रानी कर्मावती का वह रक्षा सूत्र उसके हाथों में पहुँचा और वह विजय पताका फहराने की भावना को छोड़कर अपनी सेना के साथ चित्तौड़ (राजस्थान) की ओर चल पड़ा। जी - जान से युद्ध में डटकर मुकाबला किया। इतिहास में उस समय एक नया अध्याय जुड़ गया जब एक हिन्दू रानी के लिए दोनों मुस्लिम राजाओं ने युद्ध किया। एक निर्जीव धागे में इतनी शक्ति थी कि गुजरात के शासक बादषाह बहादुरषाह को हुमायूं ने पराजित कर दिया, परन्तु रानी कर्मावती ने युद्ध के दौरान ही अग्नि स्नान कर लिया था। हुमायूं रानी कर्मावती से मिल नहीं सका पर उसकी चिता को नमस्कार कर चला गया।

आज राष्ट्र में हजारों बहनें है जिनका जीवन असुरक्षित है, उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। रक्षाबंधन का पर्व यह प्रेरणा दे रहा है कि हम उनकी रक्षा करें। नारी देह का व्यापार सिर्फ वेष्यावृत्ति के रूप में ही नहीं बल्कि विज्ञापनों के माध्मय से भी आज खुल्लमखुल्ला हो रहा है।

नारी के अंगों का उत्तेजक रुप से प्रदर्षन करके उत्पादनों का व्यापार बढ़ाना चाहते हैं और इसके लिए उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम दर्षकों के मन मस्तिष्क पर क्या होता है यह आज नारी के साथ होने वाले अत्याचारों, बलात्कारों की घटनाओं से स्पष्ट हो रहा है। जो कम्पनियां अपना माल बेचने के लिए नारी की शारीरिक सुंदरता का अवांछनीय उपयोग कर रही है, वे अपने विष बुझे तीर तरकस में बंद रखें, क्योकि उत्तेजनात्मक तीरों से राष्ट्र की धर्मप्रधान संस्कृति को, नीति, सदाचार की इस जीर्ण - षीर्ण काया को और अधिक घायल न करें।

यदि विज्ञापन, सिनेमा कला और आधुनिकता के नाम पर नारी की शालीनता, पवित्रता, उत्कृष्टता को इसी प्रकार नष्ट किया जाता रहा तो फिर इस धरती की रक्षा को कौन करेगा? धागा तो धागा ही रहता है, उस सामान्य धागे का कोई महŸव नहीं है, परन्तु राखी के रूप में जब वह धागा बंधता है तो वह धागा नहीं रहता अपितु स्नेह-सूत्र बन जाता है। जिसने आपके हाथों में राखी बांधी है, उसके जीवन का दायित्व आप पर है, केवल चन्द चांदी के टुकड़े देकर आप चाहे कि मैं उस उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाऊंगा, नहीं हो सकते। जो उच्च दायित्व आपने ग्रहण किया है उसे ईमानदारी के साथ निभायेंगे तभी रक्षा सूत्र की सार्थकता है। रक्षाबंधन के पवित्र दिवस पर नारी मात्र को बहन मानकर उसकी अस्मिता व पवित्रता की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प सभी भाइयों को लेना चाहिए।

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