शांति की आरोग्य यात्रा – आह से अहा तक
इस महिला का नाम शांति उम्र 40 वर्ष है। यह डूँगरगंढ, बीकानेर के पास किसी गांव की रहने वाली है। डेढ़ साल पहले इसकी बच्चेदानी में लियोमायोसारकोमा नाम का कैंसर हुआ। बीकानेर के एक अच्छे अस्पताल में इसका आपरेशन और कीमोथैरपी कर दी गई। 6 महिने तक सब कुछ ठीक ठाक रहा, लेकिन उसके बाद स्थिती बिगडने लगी। उसकी कमर में बांई तरफ एक बहुत बड़ा मेटास्टेटिक ट्यूमर हो गया, जिसमें बहुत दर्द रहने लगा, खून की कमी हो गई और हिमोग्लोबिन 6 से नीचे आ गया। कमजोरी, उबकाई, अनिद्रा तथा कई परेशानियां होने लगी। भूख भी नही लगती थी। एलोपैथी से कोई फायदा नही हो रहा था, इसलिए उनकी दवाइयां बंद कर दी गई। कुछ महिने इधर-उधर भटकने के बाद, किसी ने उसे सही राह दिखाई। और तीन महीने पहले वह मुझसे परामर्श लेने आई। वह बहुत कमजोर, सुस्त और निढ़ाल हो चुकी थी, चेहरा पीला पड़ चुका था। वह कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, हिमोग्लोबिन 7 ग्राम के आस पास रहा होगा। बांईं तरफ कमर की गांठ में असहनीय दर्द और वेदना थी।यह पूरा परिवार अशिक्षित था और और ग्रामीण इलाके के एक खेत में रहता था। ये हिंदी भाषा भी नहीं बोल पाते थे। इन्हें बुडविग प्रोटोकोल की पूरी ट्रेनिंग देना हमें बड़ा कठिन काम लग रहा था। फिर भी हमने दिन भर इन्हें बुडविग प्रोटोकोल की ट्रेनिंग दी। मुझे तो लग ही नहीं रहा था कि यह मरीज चार दिन भी बुडविग प्रोटोकोल ले पाएगी। लेकिन डेढ़ महीने बाद उसके भाई का अचानक फोन आया, मुझसे कुछ सवाल पूछे और कहा कि शांति की हालत धीरे धीरे सुधर रही है। यह सब सुनने के बाद भी मुझे कोई खास उम्मीद नहीं थी। लेकिन जब 25 नवम्बर 2014 को शांति ने मेरे कमरे में कदम रखा तो मैं इसे देखकर स्तभ रह गया। मुझे विशवास नहीं हो पा रहा था कि क्या यह वही महिला है जो तीन महिने पहले मुझे दिखाने आई थी। वह बार-बार मुझसे अपना भाषा मे कुछ कहने व पूछने की कोशिश कर रही थी। वह खुश व प्रसन्न दिखाई दे रही थी। उसका चेहरा चमक उठा था। चेहरे के दाग धब्बे दूर हो चुके थे। चेहरे की लाली और चिकनापन देखते बनता था। उसकी रग-रग से ओमेगा-3 के अणु और ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स टपक रहे थे। उसकी उल्टियां बंद हो चुकी थी, भूख खुल गई थी, दर्द में भी आराम था। उसका हिमोग्लोबिन बढ़ कर 11.5 ग्राम हो चुका था। उसकी बड़ी सारी गांठ 84x78 से कम होकर 46x34 मि.मी. हो चुकी है। उसके लीवर का आकार सामान्य हो गया है। किडनी का स्टोन निकल चुका है। ये सारा चमत्कार बुडबिग प्रोटोकोल का है। अलसी का तेल अपना असर दिखा चुका है। संलग्न रिपोर्ट्स और तस्वीरें सारी कहानी बयां कर रही है। उसकी दोनों तस्वीरों में रात दिन का फर्क है। आज हमारा आत्म विश्वास शिखर को छू रहा है। शांति की आरोग्य यात्रा की खबरें जर्मनी तक पहुँची हैं। सभी दोस्त हमें बधाई दे रहे हैं। फेसबुक पर लाइक्स और कमेंट्स का अंबार लगा है। जर्मनी से विजुवलाइजेशन गुरू क्लॉस पर्टल ने भी बधाई का मेल भेजा है। ये हमारे लिए फक्र की बात है। हम ऐसा समझते थे कि बुडविग उपचार लेने वाले मरीज को कुछ तो पढ़ा लिखा और समझदार होना जरूरी है। लेकिन शांति ने हमारी इस भ्रांति का हमेशा के लिए चकनाचूर करके रख दिया तोड़ कर रख दिया। जुग जुग जियो शांति...
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