तारकेश कुमार ओझा
आज का अखबार पढ़ा तो दो परस्पर विरोधाभासी खबरें मानों एक दूसरे को मुंह चिढ़ा रही थी। पहली खबर में एक बड़ा राजनेता अपनी बिरादरी का दुख – दर्द बयां कर रहा था। उसे दुख था कि जनता के लिए रात – दिन खटने वाले राजनेताओं को लोग धूर्त और बेईमान समझते हैं। उनका वेतन , भत्ता या पेंशन आदि बढ़ने पर शोर – शराबा शुरू हो जाता है। लेकिन उनके खर्चे नहीं देखे जाते। उनका त्याग – बलिदान नहीं देखा जाता। उक्त राजनेता के अनुसार एक डॉक्टर अपने बेटे को डॉक्टर और वकील बेटे को वकील बनाए तो कोई कुछ नहीं कहता, लेकिन एक राजनेता जब अपने बेटे को इस क्षेत्र में लाना चाहता है तो झट उस पर परिवारवाद का आरोप लगा दिया जाता है। मैं उक्त राजनेता के दुख – दर्द को अभी समझने की कोशिश कर ही रहा था कि नजर दूसरी खबर पर पड़ी। जो एक सब असिस्टेंड इंजीनियर साहब से संबंधित थी। जनाब पश्चिम बंगाल के एक छोटे से कस्बे की नगरपालिका में पदास्थापित हैं। लेकिन कमाल ऐसा कि दुनिया की आंखें चौंधिया जाए।
दरअसल निर्दिष्ट शिकायत पर जब उनके मकान में छापेमारी हुई तो रसोई से लेकर टॉयलट तक हर तरफ नोटों के बंडल ही बंडल मिले। श्रीमान पर लक्ष्मीजी की कृपा ऐसी कि उन्हें कमोड तक में नोटों के बंडल छिपा कर रखने पड़े। हैरान – परेशान जांच अधिकारियों की अंगुलियां नोटों को गिनने से जवाब देनी लगी तो नोट गिनने वाली दो मशीनें मंगवाई गई। इससे भी बात नहीं बनी तो कैशियर को बुलाया गया। नोट गिनते – गिनते थक कर निढाल हो चुके जांच अधिकारियों के सामने जब बरामद नोटों को जब्त करने की कार्रवाई शुरू करने की नौबत आई तब भी मुसीबत। नोटों के बंडल लादने के लिए दो ट्रक मंगवाए गए लेकिन वे छोटे पड़ गए। लिहाजा बड़े – बड़े ट्रक मंगवाए गए। कहते हैं कि नोटों के बंडल बांधने के लिए जांच अधिकारियों को किलो भर रस्सी और तकरीबन 15 बोरे भी मंगवाने पड़े। सब असिस्टेंड इंजीनियर साहब की अमीरी के बारे में जो नई जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक घर – मकान का नक्शा पास करवाने के लिए जनाब हर किसी से मोटी रकम घूस के तौर पर लेते थे।
यह प्रक्रिया कई सालों तक चलने की वजह से उनके घर पर नोटों का पहाड़ खड़ा हो गया। जिसे देख कर बड़े – बड़े धनकुबेर भी शर्मा जाएं। दरअसल विशाल आबादी वाले अपने देश में डॉक्टर – इंजीनियर का क्रेज तो शुरू से था। बचपन से लेकर आज तक फिल्मों में तरह – तरह के किरदारों को अपने नौनिहालों को डॉक्टर – इंजीनियर बनाने का ख्बाब देखते - सुनते उम्र की इस पड़ाव तक पहुंचा हूं। किसी परीक्षा का रिजल्ट निकलने के बाद जितने भी मेधावी छात्रों की फोटो अखबारों में छपती है उनमें से 99 फीसद डॉक्टर या इंजीनियर बनने की इच्छा ही जाहिर करते हैं। हालांकि इस क्षेत्र के बारे में अपना इतना ज्ञान बस इतना है कि कार्यालयों में ये अक्सर एक छोटे से केबिन में बैठे नजर आते हैं। लेकिन कमाल ऐसा कि सचमुच घर पर धनवर्षा शुरु हो जाए।
अखबार के एक ही पन्ने पर छपी दो अलग – अलग किस्म की खबरें सचमुच हैरान करने वाली थी। बेहद ताकतवर समझा जाने वाला एक राजनेता अपना दुखड़ा रो रहा था तो सरकारी महकमे में सामान्य से कुछ ऊपर पद पर बैठा व्यक्ति नोटों के पहाड़ पर बैठा मिला। इससे भी चोट पहुंचाने वाली बात यह है कि इंजीनियर साहब के घर से बरामदगी की इस घटना के बाद से हर शहर – कस्बे के उनके जैसों के घरों से नोटों बरामदगी की खबरें आनी शुरू हो गई है। क्या करें अपने यहां का चलन ही ऐसा है। लेकिन इंजीनियर साहबों को धैर्य रखने की जरूरत है। यह तो खरबूजा को देख खरबूजा के रंग बदलने वाली बात है। किसी शहर में कोई आतंकवादी वारदात हो जाए तो टेलीविजन से लेकर अखबार के पन्ने तक सुरक्षा कवायद की फोटो व खबरों से रंगे नजर आते हैं। एक अस्पताल में आग लगी और शुरू हो गया अस्पताल दर अस्पताल की सुरक्षा – व्यवस्था खंगालने का सिलसिला। लेकिन कितने दिन... कुछ दिन बाद तो .... । इसलिए दुनिया चाहे कुछ भी कहे, लेकिन अपनी तो सरकार से मांग है कि वे ऐसे लक्ष्मी पुत्रों की प्रतिभा का सदुपयोग जनता की गरीबी दूर करने में करें तो इससे देश – समाज का भला अपने – आप हो जाएगा।
लेखक तारकेश कुमार ओझा पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। संपर्कः 09434453934 , 9635221463
20.8.15
सर का शौर्य, साहब का शोक....!!
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