प्रयाग पांडेय
"येन बद्धो बलि राजा, दान बिन्द्रो महाबला,
तेन त्वाम बदिष्यामि, रक्षेः मान चल, मान चला"॥
सभी सम्मानित मित्रो को श्रावण मास की जनेऊ पूर्णिमा अथार्त ‘जन्यो पुन्यू’ और रक्षा बंधन की अनेक - अनेक शुभ कामनाएं और ढेरों बधाइयाँ । मित्रो , पौराणिक दृष्टि से आज महत्वपूर्ण दिन है । इस मौके पर आदि काल से सत्ता के लिए खेले जाने वाले खेलों और अपनी उपलब्धियों पर गुमान के हश्र को भी बखूबी समझा जा सकता है । दरअसल सत्ता और वर्चस्व का संघर्ष हरेक युग और काल में रहा है । यह लड़ाई सतयुग से चली आ रही है । पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में जो कोई समर्थ राजा एक सौ अश्वमेव यज्ञ कर पाने में सफल हो जाता , वह भगवान इंद्र के समकक्ष हो जाता था । ऐसे में स्वाभाविक रूप से भगवान इंद्र के वर्चस्व को खतरा उत्पन्न होना तय था । पौराणिक कथानुसार उस दौर में एक महादानी राजा थे - बलि ।
वे निरानब्बे अश्वमेव यज्ञ करा चुके थे । राजा बलि द्वारा सौवे अश्वमेव यज्ञ की तैयारियाँ की जा रही थी । राजा बलि के सौंवे यज्ञ की तैयारियों के मद्देनजर भगवान इंद्र का सिंहासन ढोलने लगा था । इधर राजा बलि अपनी इस उपलब्धि से फूले नहीं समां रहे थे , उन्हें निरानब्बे अश्वमेव यज्ञ सम्पन्न करा लेने का गुमान होने लगा था , वे दंभी हो गए थे । उधर इंद्र देव अपने एकाधिकार और वर्चस्व को लेकर चिंतित थे । इंद्र देव ने अपनी सत्ता की सलामती के लिए भगवान विष्णु जी के दरबार में गुहार लगाई ।विष्णु भगवान को इंद्र देव की सहायता के साथ - साथ महादानी राजा बलि का घमंड भी तोडना था । कहा जाता है कि विष्णु भगवान बौने ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि के दरबार में जा पहुँचे । अपनी उपलब्धियों से गद - गद और दंभ से भरे राजा बलि ने ब्राह्मण स्वरूप भगवान विष्णु जी से कहा - "जो चाहो माँग लो " ।
इस पर भगवान विष्णु जी ने राजा बलि से तीन पाँव भूमि दान में माँगी । इंद्र देव के सिंहासन से खुद को महज एक बिलास्त दूर मान बैठे राजा बलि ने ब्राह्मण देव द्वारा माँगे गए दान को बहुत मामूली समझा । राजा बलि ने ब्राह्मण देव से कहा कि जहाँ भी आप चाहो चाही गई तीन पाँव जमीन ले लो । राजा बलि से बचन पाते ही भगवान विष्णु बौने ब्राह्मण का रूप त्याग कर अपने असल स्वरूप में आ गए । भगवान विष्णु ने विशाल रूप धारण कर अपना एक पाँव स्वर्ग लोक में और दूसरा पाँव मृत्यु लोक में रख दिया । समूचा स्वर्ग लोक और मृत्यु लोक भगवान विष्णु के दो पाँवों में समां गया । बचन के अनुसार तीसरा पाँव रखने के लिए जगह ही नहीं बची । इस पर भगवान विष्णु ने राजा बलि से पूछा कि अब तीसरा पाँव कहाँ रखूं ? अपने बचन की रक्षा की खातिर राजा बलि ने विष्णु भगवान से तीसरा पाँव अपने सिर में रखने की याचना की । ज्यूँ ही विष्णु भगवान ने अपना तीसरा पाँव राजा बलि के सिर पर रखा, विष्णु भगवान के पाँव के असीमित भार से राजा बलि पाताल पहुँच गए । विष्णु भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया । पाताल लोक में राक्षसों का वास था । राजा होने के बाद भी बलि का पाताल लोक की राक्षसी माया में रह पाना संभव नहीं था । उन्हें राक्षसों से अपनी जान को खतरे की आशंका थी । राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई । भगवान विष्णु ने राक्षसों से राजा बलि की सुरक्षा के लिए उनके हाथ में रक्षा सूत्र बांध दिया । तब ही से रक्षा बंधन के परंपरा की शुरुआत मानी जाती है । मान्यतानुसार चूँकि विष्णु भगवान ने ब्राह्मण का स्वरूप धारण किया था । इसलिए भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में ब्राह्मण/ पुरोहित द्वारा अपने यजमानों को उनकी रक्षा के लिए मंत्रों से अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बांधने का सिलसिला शुरू हुआ ।पुरोहित अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते समय इस मंत्र का उच्चारण करते हैं :-
" येन बद्धो बलि राजा,दान बिन्द्रो महाबला ,
तेन त्वाम बदिष्यामि ,रक्षेः मान चल ,मान चला "॥
कालांतर में रक्षा बंधन को भाई - बहिन के त्यौहार के रूप में भी मनाया जाने लगा । आज ही कुमाऊँ अंचल में जन्यो पुन्यू’ का पर्व मनाया जाता है । तिवारी लोगों को छोड़कर बाकी सभी जातियों के पुरुष , जिनका यज्ञोपवित्र हो चुका हो ,आज पुरोहित जी द्वारा पूरे विधि - विधान से तैयार और अभिमंत्रित/ प्रतिष्ठित नई जनेऊ धारण करते हैं ।
Prayag Pande
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29.8.15
रक्षा बंधन की पौराणिक कथा
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