-सुरेश मिश्र -
साथियों , आजकल देश की संसद हमारे माननीयों के हंगामे की भेट चढ़ी हुई है। हंगामा के पीछे कुछ ख़ास बजह बताई जा रही है जिसे सरकार सुनना नहीं चाहती। उसके पीछे भी कुछ ख़ास बजह है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है। विपक्ष में रहते हुए एन डी ए ने यू पी ए सरकार के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाकर संसद में सरकार की जबरदस्त घेराबंदी की थी। दबाव में आकर तत्कालीन यू पी ए सरकार ने आरोपित मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया था। जनता में यह मैसेज गया की यू पी ए सरकार भ्रष्टाचारी है। एक के बाद एक कई मंत्रियों के इस्तीफे के बाद जनता में सरकार के खिलाफ ऐसा माहौल बना की 2014 में हुए आम चुनाव में उसे विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला। संख्या भी उसकी इतनी की उँगलियों में गिनती हो जाय। भाजपा उसी खेल से सत्ता में आई है। भाजपा और सत्ता में बैठे उसके चतुर धुरंधर यह जानते है कि यदि गंभीर आरोप झेल रहे मध्य प्रदेश के सी एम शिवराज सिंह चौहान , राजस्थान की सी एम वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज का इस्तीफा ले लिया गया तो जनता यह मान लेगी की भ्रष्टाचार हुआ है इसीलिए इन माननीयों का इस्तीफा हुआ है।
भाजपा अपने आरोपित मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों से इस्तीफा लेकर विपक्ष के आरोपों पर मुहर लगाकर अपने गले में मुसीबत नहीं बांधना चाहती है। यू पी ए शासनकाल में भ्रष्टाचार के आरोपी सुरेश कलमाड़ी , शीला दीक्षित , सलमान खुर्शीद , सोनिया के दामाद राबर्ट वाड्रा आदि आदि माननीय अपने महलों में शायद आराम कर रहे होंगे। जनता आज भी उन पर होने वाली कार्रवाई को पढने या सुनने के लिए अखबारों के हर कोनों में निगाह मारती है। टेलीविजन के न्यूज चैनलों की हेडलाइन भी देखती है। भोलीभाली जनता शायद माननीयों के कामकाज के चरित्र को भूल गई है। भाजपा का "काम" हो गया है वह सत्ता का सुख भोग रही है , लिहाजा ऐसी खबरें ढूढना हमारी आपकी बेवकूफी है।हमारी कमजोरी यह है की हम संसद में होने वाली चर्चाओं में भाग लेने वाले नेताओं के शब्दों का सही अर्थ निकालने की बजाय अपने अनुसार अर्थ निकालते हैं। 2014 के पूर्व जेटली जी हों या फिर सुषमा जी। राजनाथ जी हों या फिर वेंकैया जी। किरीट सोमैया को तो मैं भूला जा रहा हूँ। उनके हाथों में भ्रष्टाचार के आरोपों को सिद्ध करने के लिए कागज़ के एक दो पन्ने नहीं बल्कि इतने तथ्य होते थे जिसे रखने के लिए बैग की बजाय बोरों की जरूरत पड़ती थी। सत्ता उनके हाथ में है। पॉवर भी उन्ही की मुट्ठी में है। लेकिन अफसोस ! बोरों में बंद किरीट जी के कटु तथ्य खुल नहीं रहे हैं।
सोमैया जी ने भ्रष्टाचार के आरोपियों को उनके किये की सजा दिलाने के लिए मुट्ठी में बंद अपने पॉवर का इस्तेमाल अब तक कहाँ किया इसकी जानकारी लोगों को नहीं हो पाई है। इसीलिए मैंने इसी पैराग्राफ में ऊपर कहा था की हम नेताओं के शब्दों का अर्थ अपने अनुसार लगाते हैं। जो वह कहते हैं उसे हम समझना नहीं चाहते। संसद में एक नहीं अनेकों बार भाजपा के धुरंधरों ने कांग्रेस को बन्दर घुड़की दी। मुझे विस्वास है कि अब आप नेताओं के शब्दों का अर्थ अपने नहीं बल्कि उनके अनुसार लगायेंगे। संसद को चलाने के लिए भाजपा के मंत्री कांग्रेस से कहते हैं कि कांग्रेस उनका मुंह ना खुलवाये। मुंह खोल देंगे तो कांग्रेस की कई पीढ़ी बेनकाब हो जायेगी। आगे वह जो नहीं कहते हैं उसे समझना जरूरी है। भाजपा बिना कहे कांग्रेस को यह कहना चाहती है बिपक्ष में रहकर सड़क पर उसने बहुत पसीना बहाया है , बेचारी जनता ने अब उसे सत्ता का सुख भोगने का सुन्दर मौक़ा दिया है लिहाजा कांग्रेस या अन्य विपक्ष उसके आराम में दखल ना दे। दाल भात में बेमतलब मूसरचंद बनने की कोशिस वर्दास्त नहीं की जायेगी। मतलब साफ़ है की तू न कह मेरी , और मैं न कहूँ तेरी।।
सवाल यहीं खड़ा होता है की आखिर में जनता ने भाजपा को जनादेश क्यों दिया था ? जहां तक मेरी समझ है और जनता से जो मैंने सवाल पूंछे उसका एक ही उत्तर निकला। जनता ने भाजपा को जनादेश इसलिए दिया था की उसके द्वारा चुनी गई सरकार एक ईमानदार , जन हितैषी और युवाओं को रोजगार देने वाली साबित होगी और 56 इंच का असली सीना लेकर देश की सीमाओं की रखवाली करने वाले हमारे बहादुर सैनिकों से आँखे तरेरने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। देश की कैबिनेट में महत्वपूर्ण विभाग सम्हाल रहे एक माननीय के पुत्र हों या फिर हिमांचल वाले बड़े नेता के युवा सांसद पुत्र। वसुंधरा जी या फिर उनके सांसद पुत्र हों या फिर एम पी के सी एम और उनकी पत्नी। सभी पर गंभीर आरोप हैं। इन्ही आरोपों की ईमानदारी से जांच के लिए विपक्ष आरोपियों के इस्तीफे की मांग कर रहा है। आरोपियों के इस्तीफे से देश के चलने की गति क्या रुक जायेगी ? देश की संसद में इनसे ज्यादा काबिल भाजपा के पास अन्य सांसद क्या नहीं हैं ? जनता चाहती है की आरोपियों के इस्तीफे हों। ईमानदारीपूर्वक जांच हो। आरोप झूठे हों तो कांग्रेस को जनता के बीच बेनकाब करें और आरोपी दोषी साबित हों तो उन्हें देश की संसदीय राजनीति से दूर करें। देश के हर कोने की जनता ने एक राय होकर शायद इसीलिए जनादेश दिया है। लेकिन ऐसा होता प्रतीत नहीं दिख रहा है। भाजपा के चतुर खिलाड़ियों की रणनीति यही है की कांग्रेस ने आरोपी मंत्रियों से इस्तीफा लेकर जो गलती की थी उसे वह कदापि नहीं करेगी। कांग्रेस यही कराना चाहती है।
आज केंद्रीय वित्त मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील अरुण जेटली का बयान आया है। संसद के बाहर पत्रकारों ने यू पी के एक भ्रस्टतम कहे जाने वाले माननीयों की कृपा पर बड़े पद पर बैठाये गए एक मामूली से इंजीनियर से सम्बंधित सवाल पूंछ लिया। सवाल था डिग्री नहीं बल्कि डिप्लोमा के जरिये नौकरी में आये यादव सिंह के मामले का । नाम सुनकर लोग उसकी जाति पर धोखा खा जाएँ। और लोग धोखे में रहे भी । धोखे वाले नाम की बजह से एक जाति बेमतलब बदनाम होती रही। पढ़ाई मामूली सी और भ्रष्टाचार इतना बड़ा की पूरे देश में नाम कमा रहे हैं। देश के जाने माने संस्थानों से इंजीनियरिंग की उच्च डिग्रियाँ लेकर जिलों में तैनात कई काबिल इंजीनियरों के नाम जिले के कलेक्टरों को याद भी नहीं होगा। लेकिन एक डिप्लोमाधारी ने देश के जाने माने नेताओं की जुबान पर भ्रष्टाचार के जरिये अपना अमिट नाम लिखवाने में कामयाबी पा ली । यू पी के पूर्वी क्षेत्र में कठबैठी (मुहावरा ) का बड़ा चलन है। वर्तमान में सूबे की भाजपा के चीफ पश्चिम से हैं लेकिन विरोधियों को घेरने में वह कठबैठी का शानदार प्रयोग करते हैं।
ज्यादा वक्त नहीं हुआ है। डिप्लोमा वाले भ्रष्टाचारी को सजा दिलाने के लिए भाजपा ने नोएडा से लेकर लखनऊ तक में हल्ला मचाया था। सपा सरकार पर भ्रस्ट डिप्लोमाधारी को बचाने का भाजपा और कांग्रेस ने लगातार आरोप भी लगाया था। बेचारी बसपा इसलिए शांत रही क्योंकि मामूली से सुपरवाइजर जैसे डिप्लोमाधारी इंजीनियर को बड़े पद पर बैठाने का कार्य उसी के जमाने में हुआ था। यादव सिंह के साथ पढ़े हुए तमाम डिप्लोमाधारी आज भी कोनों में पड़े सुपरवाइजर (अब जूनियर इंजीनियर) के पद पर कार्य कर रहे होंगे। देश के इस बदनाम इंजीनियर की जांच अब सी बी आइ के हवाले है। सपा सरकार पर तथाकथित भ्रष्ट यादव सिंह को बचाने का आरोप लगाने वाली भाजपा के बड़े नेता अरुण जेटली की भाषा एक चतुर वकील जैसी नजर आई है । उन्होंने सपा प्रमुख का बचाव करते हुए कहा की यादव सिंह के मामले से मुलायम सिंह का क्या मतलब ? अखिलेश सरकार पर यादव सिंह को बचाने का आरोप लगाने वाली सूबे की भाजपा को अपने नेता अरुण जेटली के इस नए बयान से शायद जवाब मिल गया होगा। कहा जाता है की समझदार को इशारा ही काफी है।
भाजपा के नेता समझदार हैं जिसे हम ऊपर कई बार बता चुके हैं। संसद में नेता जी इस समय मोदी की नैया के खेवनहार हैं लिहाजा नेता जी पर उठने वाले सवाल कैसे सहन हो सकते हैं। पहले भले ही कम रहे हों लेकिन शायद अब दोनों के सीना की माप बराबर हो गई है। मैं भी जेटली जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। आखिर में यादव सिंह के मामले से नेताजी से क्या मतलब ? लेकिन यहां भी एक सवाल उठ रहा है। नेता जी बड़े समाजवादी विचारक हैं। कई मौकों पर वह अखिलेश की सरकार उनके मंत्रियों और उनके कामकाज को लेकर सवाल उठाते रहते हैं। गांवों की गलियों , खेतों के मेड़ों से गुजरते हुए गरीबों के चूल्हों की दशा देख चुके नेता जी को समाज की गैरबराबरी अखरती है। नेता जी मानते हैं की सत्ता का उपयोग गरीब की गरीबी दूर करने के लिए होना चाहिए। सत्ता में बैठे उनके दल के जो मंत्री अपनी अमीरी बढ़ाने में लगे हैं उनसे नेता जी नाराजगी जताते रहते हैं। सरकार को चेताते भी हैं की संगठन सरकार से बड़ा है। और मंत्रियों के कामकाज पर संगठन में बैठे हुए लोग निगाह रखेंगे। मामूली से डिप्लोमाधारी यादव सिंह के मामले में भाजपा अखिलेश सरकार पर उसे बचाने का लगातार आरोप लगाती रही है।
सूबे में तीन साल से लगातार समाजवादी पार्टी की सरकार है। यदि सपा सरकार पर भ्रष्ट इंजीनियर को बचाने का आरोप है तो सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव हैं जो स्वयं संगठन को सरकार से बड़ा मानते हैं। इसके अलावा भी वह उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं में से एक हैं। उत्तर प्रदेश की जनता नेता जी को पार्टी लाइन से ऊपर मानकर सम्मान देती है। इसीलिए तमाम लहरों में भी नेताजी जहां से चाहे जनता ने उन्हें वहाँ से भारी मतों से जिताया । अंत में जेटली से एक सवाल की उत्तर प्रदेश की जनता ने नेताजी को तीन बार मुख्यमंत्री और अनेकों बार सांसद चुना है। यू पी की सत्ता के शीर्ष के शीर्ष होने के साथ साथ एक सांसद के रूप में उत्तर प्रदेश में क्या अच्छा और क्या बुरा हो रहा है ? इसकी जवाबदेही तो उनकी है ही। और यदि यादव सिंह की जांच के मामले से उनका कोई लेना देना नहीं है तो फिर सपा पर भ्रष्टाचारियों को बचाने का आरोप लगाने का भाजपा को अधिकार किसने दिया। वकालत पेशे से जुड़े जेटली साहब को ध्यान देना चाहिए कि सबूतों के आधार पर मुकदमे को हमेशा जीता जा सकता है लेकिन जनता की अदालत में हमेशा जीत ही नहीं होती है। जनता के गुस्से का सामना उत्तर प्रदेश में 2012 में बी एस पी और 2014 में पूरे देश में कांग्रेस कर चुकी है। वक्त अभी बाकी है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश पर 2012 में और 2014 में देश भर में नरेंद्र मोदी पर जनता भरोषा जता चुकी है। सलाह यही है की काम ऐसा करें जिससे भरोषा टूटने न पावे। कथित डिप्लोमाधारी भ्रष्टाचारी जनता की आवाज कदापि नहीं हो सकता।
सुरेश मिश्र
पत्रकार
औरैया
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