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13.7.20

सूचना आयुक्त के रूप में वरिष्ठ पत्रकार की सराहनीय भूमिका

श्री आत्मदीप राजस्थान और मध्य प्रदेश में 40 सालों तक पूर्णकालिक पत्रकार रहे हैं . कोटा में राजस्थान पत्रिका के और उदयपुर में नवभारत टाइम्स के कार्यालय संवाददाता रहने के बाद, वे 25 वर्षों तक जयपुर और उसके बाद भोपाल में जनसत्ता के विशेष संवाददाता रहे हैं .किसी भी तरह के प्रलोभन में न आना और एक्सक्लूसिव स्टोरीज करना उनकी खासियत रही है .     उत्कृष्ट, रचनात्मक व खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए उन्हें राज्य के श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में "माणक अलंकरण" से विभूषित किया जा चुका है. जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती  ने उन्हें "गुणीजन सम्मान"  से अलंकृत  किया है .वे पत्रकारों के  श्रम आंदोलन के क्षेत्र में भी तीन दशक तक खासे सक्रिय रहे हैं . उन्होंने  इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (IFJ )द्वारा विभिन्न देशों  में आयोजित  अंतरराष्ट्रीय कार्यशालाओं भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है. 'जनसत्ता' से रिटायर होने के बाद वे मध्यप्रदेश में राज्य सूचना आयुक्त बने. इस पद पर उनका 5 वर्ष का उल्लेखनीय कार्यकाल फरवरी 2019 में पूरा हुआ. इस पद पर रहते उन्होंने राज्य सूचना आयोग में कई नवाचार किए और अनेक ऐसे  उल्लेखनीय फैसले सुनाए जो  न्याय दृष्टांत/नजीर बने. सूचना आयुक्त पद से निवृत्त होने के बाद भी वे सूचना के अधिकार के प्रति जन जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं .पेश है, उनकी इस भूमिका पर प्रकाश डालती विदिशा के पत्रकार दीपक तिवारी की संक्षिप्त रपट-


देश के पहले सूचना आयुक्त, जो रिटायर होने के बाद भी दे रहे हैं निःशुल्क जानकारियां

भोपाल। सूचना का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद, बीते 14 सालों में देश में कई सूचना आयुक्त बने, इनमें से कई ने ठीक-ठाक काम किया और कुछ ही ऐसे रहे जिन्होंने बेहतरीन ढंग से अपना कर्तव्य निभा कर जनता को काफी राहत दिलाई। यह गौरव मध्य प्रदेश को हासिल हुआ है कि उसके एक सूचना आयुक्त ने न केवल पद पर रहते हुए, बल्कि पद पर न रहने के बाद भी सूचना के अधिकार का लाभ अधिकाधिक लोगों को दिलाने के लिए अपनी निशुल्क सेवा देना सतत जारी रखा है।            

देश के बेहतरीन सूचना आयुक्तों में शुमार श्री आत्मदीप ने नया इतिहास रच कर अन्य सूचना आयुक्तों के लिए अनुकरणीय मिसाल पेश की है। उन्होंने मप्र के राज्य सूचना आयुक्त के रूप में 2014 से 2019 तक जनता व शासन के हित में, देश में पहली बार न केवल अनेक नवाचार किए, बल्कि आरटीआई एक्ट के तहत की जाने वाली अपीलों व शिकायतों के आसान व त्वरित निराकरण का नया ट्रेंड भी सेट किया। सरकारी अधिकारियों और नागरिकों का समय व खर्च बचाने के लिए उन्होंने सूचना आयोग को उसकी चारदीवारी से बाहर निकाल कर जिलों में ले जाने का जतन किया।

जिलों में जाकर कैंप कोर्ट लगाएं और जिलों की अपीलों की सुनवाई जिलों में ही करके वही फैसले सुनाने शुरू किए। जिलों में जाकर लोक सूचना अधिकारियों, अपीलीय अधिकारियों व आरटीआई के क्रियान्वयन से जुड़े अन्य लोक सेवकों की कार्यशाला आयोजित कर उनकी व्यावहारिक दिक्कतें सुनीं और उनका निराकरण करते हुए अधिकारियों कर्मचारियों को जनता को अधिकारिक जानकारी देने के लिए प्रेरित किया।

शिकायतों व अपीलों की सुनवाई के लिए नागरिकों व अधिकारियों कर्मचारियों को अपना कामकाज छोड़कर अपने गांव या नगर से भोपाल आने जाने की परेशानी ना उठानी पड़े और उनका रोजमर्रा का कामकाज प्रभावित ना हो, इसके लिए आत्मदीप ने   मप्र सूचना आयोग में पहली बार वीडियो कांफ्रेंसिंग से भी सुनवाई का श्रीगणेश किया। साथ ही देश में पहली बार फोन पर ही सुनवाई कर अपील व शिकायतों का निपटारा करने की नई पहल की।     

सबसे हटकर खास बात यह कि सूचना आयुक्त के रूप में आत्मदीप ने सोशल मीडिया का भरपूर सदुपयोग करने का आगाज किया। उन्होंने फोन फेसबुक व्हाट्सएप ईमेल मैसेंजर इंस्टाग्राम आदि के जरिए लोगों और अधिकारियों कर्मचारियों के आरटीआई संबंधी सवालों के जवाब देने का और उन्हें मांगा गया परामर्श देने का सिलसिला शुरू किया। सूचना आयुक्त पद पर अपना 5 साल का कार्यकाल श्रेयस्कर ढंग से पूरा करने के बाद भी, आत्मदीप ने यह जनहितकारी सिलसिला अब भी अनवरत जारी रखा है। घर बैठे आरटीआई संबंधी जानकारियां मुफ्त में हासिल करने के लिए देश विदेश के हजारों लोग इस सुविधा का लगातार लाभ ले रहे हैं।

एक और नई पहल करते हुए आत्मदीप ने सूचना आयुक्त के रूप में “राइट टू इनफार्मेशन (जर्नलिस्ट)” नाम से फेसबुक पेज भी शुरू किया। इस पेज पर कोई भी नागरिक व अधिकारी कर्मचारी आईटीआई संबंधी कोई भी जानकारी या सलाह निशुल्क प्राप्त कर सकता है। इस फेसबुक पेज को अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों के और भारत के विभिन्न राज्यों के करीब साढ़े तीन हजार लोग नियमित रूप से फॉलो कर रहे हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

संभवतः देश में यह पहला अवसर है, जब कोई सूचना आयुक्त सेवानिवृत्त होने के बाद भी जनहित में अपनी सेवाएं नियमित रूप से व निशुल्क दे रहे हैं। मिशनरी भावना से जनसेवा की अनूठी मिसाल है यह। काश, सार्वजनिक व संवैधानिक पदों पर बैठे अन्य महानुभाव भी इससे प्रेरणा लेकर, अपनी योग्यता व क्षमता का अधिकतम लाभ जनता को देने का सद्प्रयास करें।

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