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7.7.20

तरुण सिसोदिया प्रकरण : टूट गई कलम, बिखर गया परिवार




थक गया पत्रकार
हार गया पत्रकार 
टूट गई कलम
बिखर गया परिवार।


नौकरी जाने की आशंका में एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार  तरुण सिसोदिया ने एम्स अस्पताल की चौथी मंजिल से कूद कर अपनी जान दे दी। बहुत ही दुखद और आत्मा को झकझोर देने वाली घटना है।

दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल की चौथी मंज़िल से तरुण सिसोदिया पत्रकार सुसाइड के मकसद से कूद गया । वह एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र के दिल्ली आफिस में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे । तरुण को कोरोना से डर कम नौकरी जाने का डर ज्यादा था, वह दिल्ली में प्रतिष्ठित समाचार पत्र की मेडिकल बीट देखते थे और रोज कोरोना का कवरेज करते थे, कुछ दिन पहले उन्होंने कोरोना पर एक लेख लिखा था जिसको पढ़ कर कई कोरोना पीड़ितों का मनोबल बड़ा था ।

नौकरी जाने के डर से तरुण सिसोदिया डिप्रेशन का शिकार हो गए थे।  आत्महत्या से पहले  तरुण को  बेटियों की मुस्कुराहट नजरों के सामने नहीं आई, पत्नी का ख्याल नहीं आया। सुबह जब तरुण घर से निकलता था तो उसकी बेटियां झूम जाती थी और मुस्कुराते हुए कहती- पापा घर जल्दी आ जाना, पत्नी हाथ में खाने का डब्बा लेकर मुस्कुराते हुए तरुण को बाहर तक छोड़ने जाती थी। एक बार भी तुमको अपनी  बेटियां और पत्नी का ख्याल नहीं आया। तुम्हारे लिए बस यही लिखूंगा कुछ तो मजबूरियां रही होंगी तुम्हारी, तुम इतना बड़ा कदम नहीं उठाते, तुम एक जांबाज पत्रकार थे। तुम्हारी कोरोना के खिलाफ लेखनी से लोगों को हौसला मिलता था। तुम कोरोना के वजह से आत्महत्या जैसा घिनौना कार्य नहीं कर सकते।

इस दौर में पत्रकार अपना जीवन यापन किस कठिनाई से कर रहा है ,इसका जीता जागता उदाहरण तरुण सिसोदिया से मिलता है ।  बड़े  समाचार पत्रों के मालिक पत्रकारों को बंधुआ मजदूर समझते हैं ,चंद सिक्कों की खनक से पत्रकारों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने में भी कोई गुरेज नहीं करते हैं । पत्रकार का जीवन चुनौतियों का ही दूसरा नाम हैं , पत्रकार का जीवन थकी दोपहर, जलता सूरज, जलती सड़कें ,गर्म  हवाओं में गुजरता है , और अखबारों के मालिक आलीशान दफ्तरों में  एयर कंडीशनर चलाकर यह देखते हैं, किस पत्रकार से कितनी कमाई हो रही है ,जिस दिन कमाई का ग्राफ कम होने लगता है, उस दिन से पत्रकार की नौकरी पर तलवार लटक जाती है । उसको मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है ,ऐसे में बहुत सारे पत्रकार डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं , उनको ऐसा लगता है, उनका जीवन ढलता सूरज ,डूबती दुनिया, लाल समंदर ,गीली आंखें और चारों तरफ निराशा ही निराशा । ऐसा ही कुछ तरुण सिसोदिया के साथ हुआ होगा ।

एक आम इंसान पत्रकार को हर मर्ज की दवा समझता है ,उसको यह लगता है, पत्रकार बहुत बलवान होता है, नेताओं से लेकर पुलिस तक अस्पताल से लेकर स्कूल तक पत्रकार के सब से संबंध होते हैं, उसके पास लोग समस्याएं लेकर आते हैं और उनको लगता है, पत्रकार मेरा काम चुटकी बजाते ही करवा देगा। अंदर से पत्रकार अपनी समस्याओं से जूझता रहता है दूसरों की समस्याएं सुलझाते सुलझाते अपनी समस्याओं में उलझता जाता है। यह बात अलग है, एक पत्रकार समाज सुधारने का दम रखता है, अपने कामों के लिए दीवानगी के  हदों को पार करता है ,कलम से प्रहार करता है ।

वाक़िफ़ कहाँ ज़माना
पत्रकारों की उड़ान से।
वो और थे जो हार
गए आसमान से।

मोहम्मद जावेद खान
संपादक
भोपाल मेट्रो न्यूज़
9009626191

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