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17.7.20

राजस्थान में गजब की राजनीतिक रगड़ाई चल रही है !


राजस्थान की राजनीति में सबसे अधिक प्रचलित शब्द इन दिनों “रगड़ाई” बनता जा रहा है ,हालांकि यह हिंदी शब्द ‘रगड़’ के साथ आई लगाने से बनता है ,पर है एकदम देशज शब्द,जिसके बारे में अंग्रेजीदां लोग कम ही जानते हैं.

रगड़ाई शब्द को इस रूप में लोकप्रिय बनाने का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जाता है ,जिन्होंने न केवल इसका कईं बार उपयोग किया है बल्कि इसको क्रियान्वयन करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं .उन्होंने मिडिया से बातचीत और युवा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुये पहले भी एकाधिक बार इस शब्द का प्रयोग किया था , लेकिन अब बार बार कहकर उन्होंने इसे राज्य की राजनीति का अनिवार्य शब्द बना डाला है .

भाषा और बोली का यही फर्क है ,भाषाएँ पुस्तकीय सैद्धान्तिक विचार होती है जबकि बोलियाँ जनजीवन का सहज व्यवहार .लोग जिसे व्यवहार में लाते हैं ,वह बोली ही आगे जाकर जन भाषा बन जाती है ,कबीर साहब ने तो कहा भी है -‘भाखा बहता नीर’ .

रगड़ाई शब्द भी राजस्थानी अंचलों में अकसर प्रयुक्त होने वाला जनप्रिय अल्फाज़ है ,जो लोगों द्वारा गाँव की चौपाल ,खेत खलिहानों और अब चाय की थडियों पर सहजता से बोला जाता है ,यह आपके देशी होने का सुबूत भी देता है ,यह एलीट होने के दंभ से परे अपनी मिटटी से जुडाव को भी रेखांकित करता है। 

सार्वजनिक जीवन में इस तरह की व्यंजनाओ का इस्तेमाल जन जुडाव के लिए बेहद जरुरी है ,जो सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता इस जरुरत को समझ जाता है ,वह सफल व दीर्घकालिक साबित होता है .

राजस्थान के मुख्यमंत्री ने रगड़ाई शब्द का इस्तेमाल विशेष राजनीतिक प्रशिक्षण व सतत संघर्ष के संदर्भ में किया है ,उनका यह अभिकथन विरासत की राजनीति से सब कुछ सहजता से प्राप्त कर लेने वाले युवा नेताओं को लेकर रहा है ,वे कहते हैं कि उनको सब आराम से मिल गया ,राजनीति में रगड़ाई नहीं हुई ,इसलिये वे निष्ठावान नहीं रह पाये. 

वैसे तो यह राजनीतिक जीवन में संघर्षशील होने की अर्हता की ओर ईशारा करता है ,लेकिन यह अकेला शब्द नहीं है,इसके अलावा भी कुछ और वाक्यों के प्रयोग भी महत्वपूर्ण है ,जिनका प्रयोग अशोक़ गहलोत इन दिनों अकसर कर रहे है ,जयपुर में मीडिया से बातचीत करते हुये उन्होंने कहा कि सिर्फ अच्छी अंग्रेजी बोल लेने या बाईट बढ़िया देने से काम नहीं चलेगा ,आपकी निष्ठा क्या है ,यह भी देखी जायेगी.

जानने वाले लोग कहते हैं कि आम तौर पर अशोक गहलोत जल्दी प्रतिक्रिया नहीं करते है ,पर इन बरसों में उनकी राजनीतिक रणनीतियों में आये बदलाव में यह साफ़ देखा गया है कि वे अब बहुत ज्यादा डिफेंसिव रोल में नहीं रहते ,बल्कि आक्रामकता अब उनका नया हथियार है .राजनीतिक विज्ञान की भाषा में कहूँ तो शत्रु को अब बक्शते नहीं है ,बल्कि रगड़ कर रख देते हैं.यह जो मारकता है गहलोत की राजनीतिक कौशल की ,वह  काफी आश्चर्यचकित करनेवाली है .

राजस्थान में इन दिनों चल रहे सियासी घमासान में जिस तरह से अशोक गहलोत अपने प्रतिदंव्दियों की रगड़ाई पर तुले हुये हैं ,वो काबिले गौर है.जड़ें खोद कर उनमें मट्ठा डालने की तत्परता साफ परिलक्षित होती है .

उनका वर्तमान कार्यकाल प्रारम्भ ही चुनौती के साथ हुआ ,इस बार चुनौती कोई बाहर से नहीं थी ,पार्टी के भीतर मौजूद युवा जोश से थी.जो हर हाल में सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ होने की बिसात बिछा कर आया था ,जिसकी देश के अंग्रेजी भाषी आभिजात्य तबके में गहरी पैठ रही है ,जो दिल्ली के बुद्धिजीवियों और इंग्लिश मीडिया की आंख का तारा बन कर आया और आलाकमान का भी पसंदीदा चेहरा रहा ,जिसके पास सूबे में पार्टी की कमान भी थी ,कुल मिलाकर एक ग्रामीण किसान हिंदी भाषी कम संख्या वाली जाति आधार वाले पिछड़े समुदाय के जन नेता को दिल्ली के एलीट क्लास के राजनीतिक चक्रव्यूह को भेदना था .

बहुत सारे लोगों को चुनाव के पहले और नतीजे आने के बाद भी लगता था कि अशोक गहलोत इस बार सीएम नहीं बन पायेंगे क्योंकि दिल्ली में उनकी लॉबिंग बेहद कमजोर है ,वे राहुल गाँधी के प्रिय पात्र नहीं है ,लेकिन जल्द ही लोगों ने देखा कि विधायकों के बहुमत ने उनके पक्ष में अपनी राय देकर आलाकमान को झुका दिया कि राजस्थान की बागडोर अशोक गहलोत को ही सौंपी जाये ,इस तरह उन्हें सत्ता तो मिली पर वह निरापद नहीं थी.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने अपनी कड़ी मेहनत के तर्क और दिल्ली में अपनी मजबूत स्थितियों का लाभ लेते हुए उप मुख्यमंत्री पद,पांच महत्वपूर्ण विभागों के साथ प्राप्त करके पीसीसी प्रसीडेंट रहकर उनको बड़ी चुनौती पेश कर दी ,इसके बाद डेढ़ साल से सरकार के अन्दर खाने काफी रगड़ाई चलती रही ,जो कभी कभार छनकर बाहर भी आती रही ,लेकिन ज्यादातर तो दिल्ली जाती रही ,जिससे राज का काज काफी प्रभावित हुआ .

मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री के मध्य का सत्ता संघर्ष कोई ढका छिपा तथ्य नहीं है ,वह राज्य की राजनीति का ऐसा सत्य है ,जिसके बारे में आम इन्सान भी जानते है । हर किसी को मालूम है कि रस्साकस्सी जारी है ,सियासी शतरंज की बिसात पर शह और मात का खेल भीतर ही भीतर जारी था । कोई इससे अनभिज्ञ नहीं था ,न पार्टी आलाकमान ,न मीडिया ,न ब्यूरोक्रेसी न पब्लिक .सबको सब कुछ मालूम था ,बस कितना चल रहा ,उसका स्केल पता नहीं था ,पर चल रहा है ,यह पता था .

इस अंतर्द्वद का फायदा विपक्षी बीजेपी न उठाये ,यह तो क्यों होगा ? इसलिए आज चल रहे प्रहसन की पटकथा लिखने का काम कईं महीने पहले शुरू हो गया ,यह खेल मध्यप्रदेश और राजस्थान में एक साथ ही खेला जाना था , पर सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिन्धिया की तरह खुलकर बगावत करने के बजाय गोपन तरीके से स्मार्ट खेलना चाहते थे । दूर रहकर बिना खुद के दामन पर कोई दाग आने दिए उन्होंने तख्तापलट की कोशिश की ...और यहीं पर अनुभवी और राजनीतिक रगड़ाई पाठशाला के उस्ताद अशोक गहलोत की रगड़ की जद में आ गए .

सयाने लोगों का मत है कि अशोक़ गहलोत एक सीमा तक व्यक्ति को आगे बढ़ने देते हैं ,गलती करने देते है ,जब वे मुतमईन हो जाते हैं ,पक्के सबूत हाथ में ले लेते हैं ,तब अपना रगड़ाई वाला अंतिम अस्त्र चला देते है । जैसा कि आज राजस्थान में दिख रहा है .जहाँ उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिदव्न्दी को हर तरह से परास्त कर दिया है .अशोक गहलोत जिस रगड़ाई को अनुभवहीनता के अर्थों में प्रयोग कर रहे हैं ,उसे राज्य की जनता ‘रगड़ कर रख देने ‘ के संदर्भ में फलित होते देख रही है .

आज अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति में अजेय होकर सामने हैं और कांग्रेस में उनका कोई विकल्प या सानी नहीं होने की किंवदन्तियों को उन्होंने सही बना डाला है । उनके पास जरुरी बहुमत तो है ही ,आगे सरकार चलाने का निर्विघ्न अवसर भी है।

अभी तो वे प्रचंड विजय अभियान पर है ,अपने राजनीतिक रिपुओं को रोंदते हुये आगे बढ़ रहे है ,जो कल तक शहसवार थे वे अब पैदल और पस्त नजर आ रहे है ,खरीद फरोख्त की बात उन्होंने जनता को जचा ही दी है ,जाँच एजेंसियों को देने लायक सुबूत उनके तरकश में हैं ही । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर अपने विश्वसनीय व्यक्ति को आरूढ़ कर चुके हैं ,बागियों को नोटिस देकर क़ानूनी उलझनों में उलझा चुके हैं । स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और एंटी करप्शन ब्यूरों अपने काम पर लग चुके हैं ,जिनकी जद में संजय जैन जैसे मध्यस्थ से लेकर भंवर लाल शर्मा जैसे वरिष्ठ विधायक और केंदीय ,मंत्री गजेन्द्र सिंह तक आ चुके हैं .

फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि राजनीतिक रगड़ाई के अभाव में कच्चा खेल खेल गये लोग अशोक गहलोत की कूटनीतिक रगड़ाई के शिकार हो कर चारो खाने चित्त पड़े हैं .हर तरफ से यही आवाज़ है कि गजब की रगड़ाई करते हैं गहलोत .

-    भंवर मेघवंशी

( लेखक शून्यकाल डॉटकॉम के संपादक है )

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