शीर्षक में निहित अनुप्रास पर मुग्ध होने की आवश्यकता नहीं है। लघुकथा दुखांत है। मैं स्वयं कभी क्यूल नहीं गया हूं । यह पटना और कटिहार के बीच का एक जंक्शन स्टेशन है। यह कथा मेरे कुछ मित्रों ने अलग अलग मौकों पर सुनाई है। उनके कथनानुसार यह आपबीती है और इतनी सच है कि गीता पर हाथ रखकर दोहरायी जा सकती है।
क्यूल स्टेशन में जब भी कोई यात्री भोजन करने बैठता है तो उसके साथ एक अजीब वाकया होता है। इधर मुसाफिर ने भोजन सामग्री खोली और उधर अचानक कुत्तों के एक झुण्ड के बीच कुकरहाव मच जाता है। कुत्ते बुरी तरह से एक दूसरे पर टूट पड़ते हैं। झपटते हैं। भौंकते हैं। एक दूसरे को नोंचते हैं। गरज यह कि मालूम पड़ता है कि आज इनमें से कोई एक वीर शहीद होकर ही दम लेगा। ये लड़ते लड़ते भोजन की तैयारी में जुटे मुसाफिर के इतने समीप पहुंच जाते हैं कि वह डरकर भोजन सामग्री वैसे ही छोडकर भाग जाता है। न भागे तो क्यूल के वीर कुत्ते अपनी सहज स्वाभाविक उग्र लड़ाई से खाना गिराकर ही दम लेते हैं।
उधर यात्री के चले जाने के बाद शांति व सद्भावना का माहौल स्थापित हो जाता है। जो कुत्ते थोड़ी देर पहले एक दूसरे की जान के दुश्मन मालूम पड़ते थे वे अचानक शांतिदूत बन जाते हैं और आपस में निहायत प्रेम व भाईचारे के साथ नीचे गिरे भोजन को ग्रहण करने के पुण्य कार्य में जुट जाते हैं।
अपने एकमात्र लक्ष्य को हासिल करने के लिये क्यूल के कुत्तों की इस राजनीतिक सूझ व परिपक्वता पर आप कुछ टिप्पणी करना चाहेंगे ०००००
दिनेश चौधरी
15.7.08
कथा क्यूल के कुत्तों की
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1 comment:
साधु... साधु...
आपकी इस कथा ने प्रमाणित कर दिया कि हिन्दुओं की पुनर्जन्म की धारणा सत्य है, मुझे पूरा यकीन है कि ये कुत्ते हमारे पूर्वराजनेता ही हैं जो न जाने किस कारण से वहां अवतरित हुए हैं...
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