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5.7.08

क्या हो गया मेरे इंदूर

धर्मेंद्र चौहान
क्या हो गया मेरे इंदूर (इंदौर) को। अक्टूबर २००६ में ही तो मेरा ट्रांसफर पंजाब हुआ है। शायद ही ऐसा कोई दिन गया हो जब मैंने इसकी (इंदूर की) खैर खबर न ली हो। रोज अखबारों के जरिए इसकी गतिविधियों को जानता हूं, पिछले साल ही तो जवाहर मार्ग में कर्फ्यू लगाया गया था। टीवी चैनल पर पथराव की लाइव कवरेज देखकर याद आ गया कि यही वो रंगरेज की दुकान है जहां से मैंने दोस्त की जींस का कलर बदलने के लिए रंग खरीदा था। लेकिन अब वो रंगरेज की दुकान जल चुकी है। लोग पथराव कर रहे थे। हमेशा लोगों और वाहनों की भीड़ से भरा जवाहर मार्ग खाली था। शांति के दुश्मन पथराव कर रहे थे। दूसरे तरह के लोग पुलिस वाले थे जो कभी आंसू गैस छोड रहे थे। तो कभी कर्फ्यू की बात सुन साइकिल से घर जा रहे अधेड पर लाठियां बरपा रहे थे।

पिछले साल १२ मार्च २००७ को सुबह दोस्त से बात हुई थी तब उसने बताया कि साउथतोड़ा में लडक़ी को छेडऩे को लेकर फिर पथराव हुआ था। अब अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जमीनी मामले को लेकर मेरा इंदूर सुलग रहा है, माफ करना सुलग नहीं रहा, जल रहा है। पहले पंढरीनाथ, छत्रीपुरा, खजराना और मल्हारगंज में कफ्र्यू लगा था। अब पूरा शहर उसकी चपेट में आ गया है। सच कहता हूं मेरे इंदूर तू वहां जल रहा है यहां पंजाब में मेरा दिल बैठ रहा है। पिछले साल भी ऐसा ही दिल तेजी से धडक़ रहा था इसलिए कि कफ्र्यू न लग जाए पिछले साल तो शहर के समझदारों ने संभाल लिया था कर्फ्यू नहीं लगा था। लेकिन इस साल दिल रो पड़ा है। पत्नी बार-बार टीवी चैनल बदलती है कहती है स्टार न्यूज लगाओ वह देखो खजराना का रिलायंस फ्रैश फोड़ दिया। ये आईबीएन ७ वालों को फोन लगाओ थानो का नाम बद्रीनाथ नहीं पंढरीनाथ है। ये चत्रीपुरा नहीं छत्रीपुरा है। मलहारगंज का ल आधा आएगा शुक्र है खजराना तो ठीक लिखा है। क्यों कभी लड़कियों की छेडख़ानी से पथराव की शुरुआत होती है तो कभी खुदा और ईश्वर के नाम से। अमन चैन के दुश्मनों ने पेट्रोल बम तैयार कर रखे हैं। बस उन्हें किसी बंद या झगड़े का इंतजार होता है। क्यों लोग उन मुठ्ठीभर अमानुष जिनका न कोई धर्म न है न ईमान उनकी जमात में शामिल हो जाते हैं। अपने प्यारे इंदूर से तेरह सौ किमी दूर रह कर बस मन करता है लौट आऊं, लेकिन एक बार सोचने पर मजबूर हो जाता हूं। मेरे इंदूर में तो सिर्फ व्यवस्था बनाने के लिए झांकी निकलने पर लोगों का रास्ता रोका जाता है, कर्फ्यू लगने पर नहीं।

मेरे इंदूर में नई फिल्म रिलीज होने पर सिनेमा हॉल की टिकट खिडक़ी पर पुलिस उन मनचलों पर लाठी बरसाती है जो बिना नंबर के लाइन में लग कर टिकट लेते हैं। वहां भागवत यात्रा निकलने या किसी संतजन के आने पर स्वागत स्वरूप शोभायात्रा में बम (रस्सी बम) फोड़े जाते हैं। लोगों के घर जलाने के लिए नहीं। वहां एक दिन पेट्रोल पंप हड़ताल होने पर शहर में कई गाडिय़ां सडक़ पर नहीं आतीं। इंदूर में लोगों के घर जलाने के लिए पेट्रोल (पेट्रोल बम) का इस्तेमाल नहीं होता। क्या मेरा इंदूर इतना बदल गया कि मुझे घर लौटने के लिए एक बार सोचना पड़ता है। इंदूर तुम्हारे पास अस्सी बरस की मेरी दादी, मम्मी-पापा और एक प्यारी बहन को छोडक़र इस भरोसे पंजाब आया था कि मेरा इंदूर सबसे सुरक्षित है। इंदूर शहर नहीं संयुक्त परिवार है। जहां एक सदस्य के बाहर जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। शहर जहां कुछ दिन पहले शांति यात्रा निकली थी वहीं अब पत्थर बरस रहे हैं। मेरे अमन पसंद परिवार को क्या हो गया। कितना अच्छा लगा है जब सुना बिगबी आए हैं। खुद को इंदौर की मेजबानी का घायल बता गए हैं। जगजीत अपनी गजलों का जादू बरसा गए हैं। अब कफ्र्यू की खबर सुनकर अच्छा नहीं लगता। बार-बार दिल कहता है क्या हो गया मेरे इंदूर को।

धर्मेंद्र चौहान, इंदौर
(हाल मुकाम लुधियाना, पंजाब)

3 comments:

आलोक सिंह रघुंवंशी said...

धर्मेंद भाई आपका इंदौर से लगाव व प्यार देखकर मुझे अपना बनारस याद आ गया। वाकई दिल को झकझोर दिया आपकी लेखनी ने।

Unknown said...

धमेंद्र जी आप ने जो इंदौर में बवाल पर चिंता जाहिर की है, उस पर सभी चिंतित है । कुछ शरारती तत्व अपने निजी स्वाथॆ के लिए तोड़-फोड़ और आगजनी की घटनाओं को अंजाम देकर लोगों को जो पीड़ा पहुंचाते हैं, इसका उन्हें तभी समझ आएगा जब उस भीड़ में उनका कोई सगा-संबंधी फंसेगा । आप इंदौर के हैं, हम आपकी पीड़ा समझते हैं ।

Anonymous said...

dharmendraji namaskar, kaise hai aap.
indore me hui ghatna ka mujhe bhi bahut khed hai. aapki prtikriya padkar dil or paseej gaya. me abhi lokmat aurangabad me seba de raha hun.
aapka
rakesh chaturvedi