भड़ास के इस भड़भड़ाते प्रयास और उसकी सफलता के साझीदार ही नहीं उसकी चेतना के अंग बन चुके हम सभी अभिषेक, राघवेंद्र और मैं स्वयं योगेश जादौन, सोच रहे हैं कि काश कल हम भी दिल्ली हो सकते। करुणाकर की खुशियां बांटने। उसके दर्द को कम करने में। फिर भी हमारी ढेरों बधाइयां जन्मदिन पर और हां.....हवाओं से टूट कर बिखर जाएं वो पत्ते हम नहींआंधियों से कह दो औकात में रहे।।
3.7.08
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2 comments:
Hawa magroor hai darakhton ko patak jaati hai, Shakh bachati wohi hai jo lachak ke rah jaati hai.
आमीन
भड़ासी नहीं हूं लेकिन विजिट करता रहता हूं। पिछले दिनों जो भी हुआ उससे आहत था क्योंकि भड़ास की पहचान अब गरियाने वाले ब्लॉग नही बुद्धजीवी ब्लॉग के रूप में होने लग थी। खैर जाने तो दिन है रात भी होगी ही। करुणाकर को बचाने की जो मुहीम चला रहे हैं। वहां काबिलेतारीफ है। यह सिर्फ एक मुहिम मिशन है। करुणाकर जैसे कई करुणाकरों को बचाने की।
ऐसे कामों को करने के लिए खुदा आपके कंधों में बल और झोली में बरकत बख्शे।
आमीन
खबरीलाल
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