प्रिय यह्श्वन्त्जी,
भड़ास का मैं नियमित पाठक और हिस्सेदार हूँ.अभी कुछ दिनों सीक सज्जन की रचनाये भड़ास के स्टार की नही लग रही क्योंकि मेरा मानना हे,गाली-गलौज किसीभी भाषा का साहित्य नही हो सकता.अभीतक भड़ास पर पंडित सुरेश नीरव सरीखे साहित्यकारों की रचनाये पढने को मिलती थी,परन्तु आजकल गाली-गलौज पढने को मिल रही है.भड़ास मैं संभ्रांत महिलाए भी सदस्य हैं,लिहाजा ऐसी रचनाओं से बचना ही चाहिए क्योंकि ऐसी रचनाये ब्लॉग की गरिमा को धूमिल करती है।
विश्वास हें कि आप मेरे सुझाव पर गौर करेगे।
शुभचिंतक
Maqbool
12.7.08
यशवंतजी के नाम sandesh
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2 comments:
दद्दा,
एक बार फिर से पुराना मुद्दा, डॉक्टर साहब क्या कहतें हैं हमारे मकबूल साब को.भाई हम तो भडासी हैं और हमें भडासी अंदाज ही पसंद है.
विचार डालिए और मकबूल साहब के शंका का समाधान कीजिये.
जय जय भड़ास
भाई,आपकी शंका बहुत लघु है भड़ास को जानिये समझिये और इसके लिये पेज के बांयी तरफ जो कुछ शाश्वत पोस्ट चिपका रखी हैं वो मात्र शोभा बढ़ाने के लिये नहीं हैं उन्हें पढ़ने से इन लघुशंकाओं का निवारण हो जाता है...
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