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2.2.09

सब कुछ बदल जाएगा, सिवाय ईश्वर के

विनय बिहारी सिंह

बात अठारहवीं शताब्दी की है। बहुत दिनों से एक व्यक्ति को एक संत से मिलने की इच्छा थी। वे काफी दूर रहते थे। अपने कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त होने के कारण इस व्यक्ति को मौका ही नहीं मिल पाता था कि वह यात्रा का समय निकाले। संयोग से पांच साल बाद उसे यह मौका मिल ही गया। उसे व्यवसाय के सिलसिले में उसी इलाके में जाना था। वह संत से मिला। उसे बहुत सुकून मिला। जब वह चलने लगा तो संत ने उसे एक कागज पर कुछ लिख कर दिया औऱ कहा- जब भी तुम किसी अच्छे या बुरे अनुभव से गुजरो, इसे पढ़ लेना लेकिन इसके पहले इस कागज को मत पढ़ना। संत से ऐसा उपहार पाकर वह बहुत खुश हुआ। गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति देने की पहल के लिए एक बार उसका नगर में सम्मान हुआ। फूल- मालाओं उसे लाद दिया गया। उसकी तारीफ में बहुत कुछ कहा गया। वह तो आनंद में हिलोरें ले रहा था। तभी उसे संत की बात याद आई। वह उनका दिया कागज हमेशा रखता था। उसने कागज खोल कर देखा। उस पर लिखा था- यह भी बीत जाएगा। उसे लगा- अरे हां। यह सुख भी तो क्षणिक ही है। तब उसने अपने सम्मान को बहुत साधारण घटना माना और खुश हुआ कि उसे इस बात का चैतन्य हुआ। संत ने कहा था कि इस दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील है, बदलने वाला है. सिर्फ एक ही शक्ति अपरिवर्तनशील या स्थाई है- वह है हमारा परमपिता यानी ईश्वर। उस व्यक्ति को यह सब याद आया। कुछ दिन बीत गए। अचानक एक समारोह में भोजन करने के कारण उसे फूड प्वाइजनिंग हो गई। उसके पेट में भयानक दर्द हुआ। डाक्टरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी। घंटे भर बाद उसे कै हुई और तब उसे राहत मिली। वह अभी अस्पताल में ही था कि उसे खबर मिली कि उसके बेटे को अफीम रखने के जुर्म में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और डर है कि उस पर ऐसा मामला दर्ज होगा कि वह जीवन भर जेल में सड़ जाएगा। उसे बड़ा दुख हुआ। तभी फिर उसने संत का दिया हुआ कागज पढ़ा। उस पर वही लिखा हुआ था- यह भी बीत जाएगा। पढ़ कर उसे बड़ी राहत मिली। उसे लगा- हां, वह फिर स्वस्थ हो जाएगा और उसका बेटा अगर निर्दोष है तो छूट जाएगा। वही हुआ। यह व्यक्ति कुछ ही दिनों में पूरी तरह स्वस्थ हो गया और उसका बेटा भी छूट गया। जीवन में न सुख से अपने को भूल जाना चाहिए और दुख से बेहाल हो जाना चाहिए। गीता में तो कहा ही है- सुखदुखे समे कृत्वा...। सुख और दुख में संतुलित रहें। इसका मतलब यह नहीं कि हमें खुश नहीं होना चाहिए। खुश होना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यहां कहने का मतलब है कि हम लोग खुशी से तो फूले नहीं समाते औऱ दुख में तुरंत टूट जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। संतुलन जरूरी है।

4 comments:

आलोक सिंह said...

इस संसार में सब नश्वर है सिवाय ईश्वर के, लेकिन क्या करे हम ईश्वर को दुःख में याद करते है और सुख आते ही भूल जाते है लेकिन सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं आज सुख है तो कल दुःख आएगा ही लेकिन अगर भगवान को याद हमेशा याद करेगे तो सुख- दुःख दोने एक जैसे पार हो जायेगे .

नवीन पाण्डेय said...

sahi kaha satya ishvar hi hai. umeed karta hoon ki is satya se apke chithhe se punah kuch log avgat honge jo lobh vash satta au dhan ke peeche bhaag rahe hai. bahut hi badhiya likhte rahiye. aapka
saathi
http://likhoapnibaat.blogspot.com

नवीन पाण्डेय said...

sahi kaha satya ishvar hi hai. umeed karta hoon ki is satya se apke chithhe se punah kuch log avgat honge jo lobh vash satta au dhan ke peeche bhaag rahe hai. bahut hi badhiya likhte rahiye. aapka
saathi
http://likhoapnibaat.blogspot.com

नवीन पाण्डेय said...

sahi hai santulan to bahut jaroori hai achha lekh