महानगरीय संस्कृति एवं ग्लैमर ने आज देह व्यापार के मायने ही बदल दिए हैं. काफी हाई टेक हो गया है यह व्यापार, देश में आज कुल ग्यारह सौ सत्तर रेड लाइट एरिया हैं. इसमें ब्यापारिक दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा धंधा वाला एरिया है कोलकता और मुंबई . कडोडो रूपये का साप्ताहिक आंकडा है अकेले रेडलाईट एरिया मुम्बई का .
राजस्थान,उत्तर प्रदेश और ओडीसा एक ऐसा छेत्र है जहाँ देह व्यापार की प्रथा का इतिहास है या यूँ कहें की यह एरिया देहव्यापार का इतिहास लिए अपनी खासियत छुपाये रक्खी है. चलिए हम यहाँ इतिहास नहीं वर्तमान की चर्चा करते हैं. जयपुर चम्पा मछरों की भांति विराट रूप सवारियों के खेल में काफी तरक्की कर रहा है. अपने निकटवर्ती इलाकों में भी जयपुर राजस्थान का एक ऐसा सवारियों वाला मंदी बनता जा रहा है जिससे गरम गोश्त के सौदाईओं की बांछे खिलती जा रही है. प्रशाशन या राज्य शाशन इस और इसलिए भी अपनी आँखें बंद कर रक्खी हैं क्योंकि उनका इससे करीबी का ताल्लुक है. आखिर नेता और अधिकारियों का मौज मस्ती का भी तो सवाल है!
राजस्थान का कोई भी शहर इस गरम गोश्त के कारोबार से अछूता नहीं हैं. इन इलाकों में ज्यादा तर सवारियों का धंधा होता है. या यूँ कहें की इधर इस व्यापार की खास क्वालिटी है जिसका नाम सवारीव का दिया गया है. यानी वो औरतें जिन्हें इस शहर से उस शहर में जिस्म के भिखारियों के आगे भेजा जाता है उस माल को सवारी और जिस माल(औरत) का इस्तेमाल स्थानीय स्तर पर ही किया जाता है उसे गाडी कहा जाता है. है न दिलचस्प तथ्य? राजस्थान में जहाँ सवारियों का ज्यादा कम होता है वो इलाके हैं जयपुर,कोटा,अलवर,डूंगरपुर,किशनगढ़,जोधपुर और गंगानगर,नागौर,जैसलमेर और सीकर , बाके इलाकों में गाडियाँ और सवारियां दोनों ही कारोबार होते हैं. यह तथ्य अभी हाल में देश के तमाम रेड लाइट एरियाओं में विगत सात सालों से शोधरत पत्रकार लेखक मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी के तजा तरीन आंकडों शोध आंकडों से प्राप्त हुए हैं.
सवारियों और गाड़ियों के इस नायब कारोबार से विश्वा विख्यात अजमेर शहर भी अब अछूता नहीं रहा है. बुजुर्गों के इस नैसर्गिक स्थल पर इन गर्म गोश्त के कारोबारी भी अपनी सवारियों और गाड़ियों के लिए मन्नतें मांगने आने लगे हैं क्योंकि यहाँ हर मुरादें पूरी होती हैं.
उक्त नायाब कारोबार में पिछले चार सालों से अख्तरी बेगम (परिवर्तित नाम) में केन्द्रित हैं ये सवारियों को लाने और उसे यात्रा पर भेजने तक का सारा कारोबार करती है, इसके पास दल्ले और भरवे मॉल लाकर बेचते हैं और ज्यादातर यह प्रशिक्छित सवारियों की डीलिंग करती है. अख्तर का कहना है की इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें सवारी पर जाती हैं, और गाड़ियों का काम प्रायः शौकिया और पार्ट टाइम कमानेवाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे सवारी का हो या गाडी का एक बार जो इस राह पर आ जाती हैं उसका अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुट पाथ पर पागलों की शकल में या कहीं दल्ले भरवों के साथ कमीशनखोर के स्तर पर जा कर होता है. यह न तो माँ रह पाते है न बीवी न बेटी न बहन, यानी अस्तित्वहीन औरत कैसी बिदंम्बना है यह?
अजमेर और जयपुर में अधिकतर सवारियों को विदेश भेजा जाता है. बिदेशों से आने वाले जिन्हें यहाँ का गरम गोश्त भा जाता है वो अपने वतन से हमारे हिंदुस्तान से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं. जाहिर है इस कारोबार का रुतबा भी कम आकर्षक नहीं होगा, इसमें अच्छी और खूब मोटी कमाई तो होती ही है ज्यादा खतरा भी नहीं होता. बस अच्छी सवारियों को इकठा करना और उन्हें विदेशी भूखों के हवाले कर देना बाकी वो जाने और उसका काम. उसे तो बस हवाई जहाज तक की जिम्मेदारी निभानी होती है.
एक सवारी से जो बिजनेस का ग्राफ बनता है जरा उस पर भी गौर करें,अमूमन देश के विभिन्न इलाकों से १२ से २१ सल् की उम्र की बालिकाओं को सवारी के लिए चुनकर लाया जाता है. आम तौर पर विदेशी गरम गोश्त के ग्राहक हिन्दुस्तानी सौदागरों को अपनी पसंद और बजट भेजते हैं और उन्हें उनकी पसंद की सवारियां उपलब्ध करा दी जाती हैं. उन सवारियों को बिदेशों में कम के बहाने भेजा जाता है. कुछ सवारियों जो पहली बार इस फेरे में आती हैं उन्हें सिर्फ विदेश जाकर मोटी कमाई की लालच इस धंधे की गर्त में उतार देती है. बस एक बार क्या विदेश गई सब कुछ या तो लुट जाता है या फिर मिजाज ही बस ऐसा बन जाता है की चाहत ही नहीं होती इस धंधे से बहार आने के. जब तक हुस्न का जलवा रहता है सवारियां उड़न छू होती रहती हैं फिर उम्र ढलने तक इतनी परिपक्वता उनमें आ जाती हैं कि उन्हें सब कुछ इस कारोबार की जानकारी हो जाती है और वो या तो इस कारोबार की रानी बन जाती है या अपना जीवन अलग-थलग काटने को बिवश हो जाती हैं.
सवारी यानि देह व्यापार के लिए विशेषकर खाड़ी देशों में जाने वाली औरतें. बताते चलें कि राजस्थान से जो सवारियां जाती हैं वो काफी सेक्सी और कम उम्र पहाडी गठीली बालाएं होती हैं जो सजती संवारती हैं तो सचमुच बेहोश कर देती हैं. उनका भाव भी सबसे ज्यादा और हमारे मुल्क में आने जाने वाले खाड़ीदेशी गरमगोश्त के भूखे देखते ही कुछ भी लुटाने को तैयार हो जाते हैं. जब पैसा होता है तो रुतबा भी बदल ही जाता है. उसमें भी विदेशी पैसे का हिन्दुस्तान में कुछ बात ही अलग है. सवारियों में कुआंरियों का होना ही जरूरी नहीं, इसमें शादी शुदा भी सवार हो जाती हैं जिनके मर्द इस बात से अनजान नहीं होते हैं कि उनकी पटरानी किसी गैरों की रात रंगीन करने विदेश यात्रा पर जा रही हैं . यानि शौहरों की पूरी रजामंदी होती हैं . रही बात बीजा की तो इसमें भी कोई मुश्किल नहीं होती है. औरतों को इन अंधी गलियों में धकेलने वाले कई देशों में फैले अंतर राष्ट्रीय गिरोह के लोगों के द्वारा इनकी सभी जरूरतों पूरी कर देते हैं.
आखिर कैसे खुली इस धंधे की डगर ?
11.2.09
देह व्यापार के मायने
Labels: 'काम विकृति
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