ये कितने दुःख की बात है देश के राष्ट्रीय खेल और खिलाड़ी आज इस अपमान का हिस्सा बन रहे है |यही नहीं वो तो बस अपने पेट भरने के लिए अपने वेतन की मांग कर रहे है |उन्हें क्रिकेट जैसे आर्थिक खेल के खिलाडियों कों दी जा रही सुविधाओं और सम्मानों से कोई गुरेज नहीं, लेकिन उनका मेहनताना तो कम से कम समय पर मिल जाए ओलम्पिक जैसे खेलों में पदक दिलाने वाले खेलों की आज ये नौबत है कि एक साल पहले किये वादे भी पूरे नहीं किये गए | बात निलंबन तक पहुँच चुकी है ,क्या इनके द्वारा इनकी मांग गलत है ?भारत में फरवरी में जहां हॉकी का विश्व कप होने वाला है वहाँ इन खिलाडियों की तैयारी इनकी व्यथा से स्पष्ट मालूम पड़ती है |
खिलाडियों को दिया गया अल्टीमेटम हकीकत है, या एक बहाना ये तो जल्द ही सामने आ जाएगा |लेकिन राष्ट्रीय खेल की ऐसी स्थिति और खिलाडियों की बगावत ये स्पष्ट करती है कि वेतन और प्रोत्साहन राशि के रूप में उन्हें सिर्फ सांत्वना के शब्द सुनने कों मिलते है|देश खुद कों आर्थिक दृष्टिकोण से विश्व के मानस पटल पर उभरती हुई अर्थवयवस्था बताती है | क्या इनकी मजबूती चन्द खिलाड़ियों के पेट भरने का इंतजाम नहीं कर सकती है |
जहां एक तरफ शाहरुख खान ने इनकी मांग को जायज बताया वही दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान ने इस टीम के स्पोंशेर्शिप लेने की बात कही |देश का राष्ट्रीय खेल राजनितिक रंगों में डूबता दिख रहा है |ये तो लाजमी है कि बयानबाज़ी और सान्त्वाना से इनके पेट नहीं भर सकते है | वक्त की नजाकत को देखते हुए एक बात तो साफ़ है कि गेंहू के साथ घुन भी पिस जाते है |
2 comments:
hocky to ab hakki bakki rah gai. narayan narayan
तो उनको कई दूसरा काम शुरू कर देना चाहिए , अगर उनको हाकी से प्यार होता तो वो पैसें के लिए परेशान नहीं होते| अब अगर उनको प्यार हाकी या भारत के सम्मान से नहीं अपितु पैसों से है तो उनको कोई दूसरा काम मरना चाहिए | और हाँ बार बार क्रिकेट का रोना मत शुरू कर दिया करिए , उन्होंने अच्छा प्रदर्शन करके खेल प्रेमियों के दिल में जगह बने है | मालों के लफ्फाज कंगूरों से पहले एक गूंगी बुनियाद चाहिए | कोई बुनियाद बनाना नहीं चाहता हर किसी को कंगूरा बनना है !!!!!!!!!!
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