आज फिर से वो दिन याद आ गया। वही दिन जब मैंने पहली दफा दिल्ली में कदम रखा था। तब मैं सूर्या फाउंडेशन के सौजन्य से दिल्ली दर्शन कर रहा था। दिल्ली दर्शन के दौरान हम पहुंचे त्रिमूर्ती म्यूजियम में। जहां जवाहरलाल नेहरू जी से संबंधित सामग्रियों का संग्रह किया गया था। हम करीब पचासएक लोग होंगे। हमने देखा कि म्यूजियम अलग-अलग सेक्शन में बंटा हुआ है। किसी सेक्शन में उनके द्वारा उपयोग में लाईं गईं कटोरी, चम्मच, कप और प्लेट सजाकर रखे हुए थे। मस्त! ठंडी हवा में। नेहरू जी ने चीन में कहीं खाना खाया हो या फिर रूस और इंग्लैंड में, वहां से वे या उनके शागिर्द चम्मच कटोरी लाना नहीं भूले। ये चम्मच कटोरी बड़े शान से मुंह खोले भरी गर्मी में पंखे की ठंडी हवा में पडे थे। ऐसे ही अगल-अलग सेक्शन में अलग-अलग चीजें रखी हुईं हैं किसी में कपड़े-लत्ते और किसी में चिट्ठी-पत्री. सब बढिय़ा चमचमाते साफ-सुथरे कमरों में थे। अब हम आगे बड़े तो एक कोने में किचिननुमा छोटा सा कमरा दिखा। कमरे में पर्याप्त रोशनी नहीं थी। एक देशी लट्टू अंधकार से लड़ता दिख रहा था। मैंने देखा यहां पंखा नहीं है, दीवारें भी खुर्द-बुर्द हैं। आपको पता है इस कमरे में क्या था? इतना तो आप भी मन ही मन विचार कर चुके होंगे की इसमें नेहरू जी की कोई प्रिय वस्तु नहीं रखी होगी। अगर आप यह सोच रहे हैं तो आप सही हैं। हां इस कमरे में उनकी प्रिय वस्तु तो नहीं थी लेकिन, हमारे सबसे प्रिय और अनुकरणीय क्रांतिकारियों के फोटो थे वहां की टूटी-फूटी दीवारों पर। उनको शहादत के बाद भी यह स्थान नसीब हुआ क्यों? इतना ही नहीं उसमें नेहरूजी का एक पत्र भी लगा था जिसमें उन्होंने कांतिकारियों को आतंकवादी संबोधित किया है। हमारे क्रांतिकारियों के साथ ऐसा क्यों होता रहता है अपनी समझ से परे हैं? पिछले दो-चार वर्षों से लगातार पढ़ता आ रहा हूं कि क्रांतिकारियों को इस किताब में आतंवादी लिख दिया उस किताब में उग्रवादी लिख दिया। जब भी यह सब पढ़ा खून में उबाल आया। आज फिर उबाल आया और एक सकूंन भी हुआ कि उसके खिलाफ एक आम शिक्षक आवाज उठा रहा है। १६ जनवरी २०१० को दिल्ली से प्रकाशित हिन्दी के शीर्षस्थ दैनिक समाचार पत्र जनसत्ता के पृष्ठ क्रमांक ४ पर खबर पढ़ी दसवीं की किताब में शहीदों को लिखा गया आतंकवादी. आईसीएसई बोर्ड नई दिल्ली के अनुमोदित कक्षा १० की इतिहास की पुस्तक में चापेकर बंधुओं, वीर सावरकर, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, असफाक उल्ला खां और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को आतंकवादी के रूप में पढ़ाया जा रहा है। फतेहपुर जिले के शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद राहत अली ने पुस्तक की इस गलती को पकड़ा. मोहम्म अली ने दसवीं की हिस्ट्री एंड सिविक्स पार्ट-२ से इन शब्दों को हटाने की मुहिम छेड़ दी हैं। उन्होंने पुस्तक से टेररिस्ट शब्द हटाने की मांग की है। पुस्तक के पेज नंबर १२० के पहले पैरे में क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा गया है।
ऐसा क्यों होता है और कब तक होता रहेगा एक बड़ा सवाल है जो हमारे सामने फन उठाए खड़ा है..... यह दोष हमारी शिक्षा व्यवस्था का है या फिर प्रशासन का.
18.1.10
शहीदों को कब तक कहेंगे आतंकवादी...
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