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20.1.10

मीडिया और दुकान

मीडिया और दुकान


एक वो दौर था जब भारत में राजा महाराजाओं का राज हुआ करता था, और राजा महाराजा अपनी तलवारों से हथियारों से युद्ध जीता करते थे और उनके तलवारों से हर व्यक्ति डरा करता था.

फिर शुरुआत हुई लोकतंत्र की, ऐसा दौर जिससे भारत में भारत की जनता राज कर रही है और लोकतंत्र को मजबूत और ताकतवर बनाने में जिस हथियार ने अपनी अहम् भूमिका निभाई वो हथियार था कलम, कुछ बुद्धिजीवी और क्रन्तिकारी पत्रकारों ने कलम को अपना हथियार बनाकर ऐसी लड़ाई लड़ी की कलम किसी राजा की तलवार से ज्यादा तेज़ हो गयी. कलम, पत्रकार और समाचार पत्रों का रुतबा अलग ही हो चूका था.

जब पत्रकारिता और विकसित हुई, तब दौर आया इलेक्ट्रोनिक न्यूज़ चंनेल्स का मानो भारत के लोकतंत्र में नयी क्रांति आ जाएगी और ऐसा हुआ भी, इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने भारत के विकास में चाहे वो सामाजिक विकास हो, आर्थिक विकास हो या राजनितिक विकास सभी क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पर आज क्या हो रहा है? क्या न्यूज़ चैनलों में दिखाई जाने वाली खबरें सच में कोई खबर है? कोई ऐसी सच्चाई है जिसे आम जनता नहीं जानती? हाँ हम मानते हैं एक समय ऐसा होता था पर अब यह हालत अब ई -मीडिया की नहीं है, आपने भी महसूस किया होगा? आखिर ऐसा क्यूँ हो रहा है? मीडिया का रुतबा अब क्यूँ नहीं जो कुछ सालों पहले था. तो सुनिए MEDIA अब दुकान बन चुकी है. सुनकर ताज्जुब तो हुआ होगा पर ये सच है, रुपये कमाने की ख्वाहिश हर किसी को होती है, यह ख्वाहिश कुछ पत्रकारों के भी मनन में आ गयी तो कौन सी बड़ी बात है पर यही ख्वाहिश जब चैनल के मालिकों में ही आ गयी तब तो होना ही था बेडापार. रुपये कमाने के लिए पत्रकारों ने ब्लेकमेलिंग का रास्ता अपनाया है. न्यूज़ चैनलों ने विज्ञापन को कमी का जरिया छोड़कर कर ब्लेकमेलिंग को कमी जरिया बना लिया है. हाथ में मिक आईडी लेकर घूम रहे लोग क्या सच में रिपोर्टर हैं, हम हर चैनल के रिपोर्टर की बात तो नहीं कर रहे हिं पर उन चैनलों के रिपोर्टरों की बात कर रहे हैं जो सिर्फ रिपोर्टर बनकर कर कमाई करने के लिए चैनलों को अच्छी खासी रकम देते हैं, मतलब आज की तारिख में किसी के पास कुछ पैसे हैं तो वो पत्रकार बन सकता है भले ही उसके पास पत्रकार के गुण न हो. न्यूज़ चैनल रिपोर्टरों से हर महीने २०-३० हज़ार रुपये लेते हैं. है न बात हैरान करने वाली इससे मीडिया और उन लोगों पर क्या असर पड़ेगा जो मीडिया पर भरोसा करते हैं. रिपोर्टर भी सिर्फ वही खबर बनाते हैं जहाँ उन्हें पैसे मिले और वो पैसे वो चैनल को दे सके. इसलिए आजकल चैनलों में वि खबरें नहीं आती जो आम लोग देखना चाहते हैं. मैं और मेरे कुछ साथी छत्तीसगढ़ में मीडिया की छवि पहले जैसे बनाने की कोशिश कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसे चैनल काम कर रहे हैं जो रिपोर्टरों से अछि खासी रकम वसूल कर रहे हैं, ऐसे चैनल हैं, A2Z न्यूज़, आजाद न्यूज़, रफ़्तार. ऐसे चैनलों को छत्तीसगढ़ में काम नहीं करने देना चाहिए. शासन को इन चैनलों पर लगाम लगाने के लिए कोई कानून बनाना होगा या फिर ऐसे मीडिया के दलोलों का स्वागत जूते और डंडों से करना पड़ेगा. क्या आप हमारा साथ देंगे. जय जोहार, जय छत्तीसगढ़

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