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20.1.10

ज्योतिषी के फलादेश की कला और राजनीति

फलित ज्योतिष मासकल्चर का अंग है। देखने में अहिंसक किन्तु वैचारिक रूप से हिंसक विषय है। सामाजिक वैषम्य, उत्पीडन, लिंगभेद,स्त्री उत्पीडन और वर्णाश्रम व्यवस्था को बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।ग्रह और भाग्य के बहाने सामाजिक ग्रहों की सृष्टि में अग्रणी है। फलित ज्योतिष स्वभावत:लचीला एवं उदार है। 'जो मांगोगे वही मिलेगा' के जनप्रिय नारे के तहत प्रत्येक समस्या का समाधान सुझाने के नाम पर व्यापक पैमाने पर जनप्रियता हासिल करने में इसे सफलता मिली है।

सतह पर सबका दिखने वाले इस विषय का समाज के सबसे कमजोर लोगों से कम और समर्थ या ताकतवर लोगों की सत्ता को बनाए रखने से ज्यादा संबंध है।यह स्वभावत: समानता, बंधुत्व और जनतंत्र का विरोधी है। फलत: हमेशा से अधिनायकवाद का प्रभावशाली औजार रहा है।इसका सामाजिक आधार अर्ध्द-शिक्षित और शिक्षितवर्ग है।यही सामाजिकवर्ग फासीवादी और अधिनायकवादी ताकतों का भी सामाजिक आधार है।

फ्रैंकफुर्ट स्कूल के समाजशास्त्री एडोर्नो के मुताबिक समाज में भाग्य और फलित ज्योतिष के प्रति जितना आकर्षण बढ़ेगा प्रतिक्रियावादी और फासीवादी ताकतों का उतनी ही तेजी से वर्चस्व बढ़ेगा।अविवेकवादी परंपरा में एक ओर झाड़-फूंक करके जीने वालों का समूह है, कर्मकाण्ड, पौरोहित्य आदि की तर्कहीन परंपराएं हैं, दूसरी ओर व्यक्ति के निजी हितों की रक्षा के नाम पर प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र भी है।

निजी हितों की रक्षा कैसे करें ? इसका चरमोत्कर्ष हिटलर के उत्थान में देखा जा सकता है। हिटलर ने निजी हितों को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाकर समूची मानवता को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया था।निजी हितों पर जोर देने के कारण हम निजी हितों के परे देखने में असमर्थ होते हैं।और अंतत: अपने ही हितों के खिलाफ काम करने लगते हैं। अविवेकवाद जरूरी नहीं है कि विवेकवाद की सीमारेखा के बाहर मिले बल्कि यह भी संभव है कि वह स्व को संरक्षित करने की विवेकवादी प्रक्रिया में ही मौजूद हो।

फलित ज्योतिष में कर्मकाण्ड प्रमुख नहीं है।कर्मकाण्ड हाशिए पर है। भाग्य की धारणा में जिनका विश्वास है वे ज्योतिषशास्त्र के बहाने कही गई बातों को आंख मींचकर मानते हैं।उसका तर्क है कि ज्योतिषी की बातों का अस्तित्व है,फलितज्योतिष का अस्तित्व है,वह प्रचलन में है। लाखों लोगों का उस पर विश्वास है इसलिए हमें भी सहज ही विश्वास हो जाता है।

फलित ज्योतिषशास्त्र अपने तर्क का उन क्षेत्रों में इस्तेमाल करता है जहां व्यक्ति की बुध्दि प्रवेश नहीं करती।अथवा अखबारों में छपने वाले राशिफल हमेशा उन बातों पर रोशनी डालते हैं जहां पाठक सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। पाठक का इस तरह अनुभव से अलगाव सामने आता है।अनुभव से अलगाव के कारण पाठक अविश्वास और पलायनबोध में जीता है।

भविष्यफल में रोचक और विलक्षण भविष्यवाणियां होती हैं जिन पर पाठक संदेह करता है। यही संदेह आधुनिक अविवेकवाद की सबसे बड़ी पूंजी है।इसके ऐतिहासिक कारण हैं।इनमें सबसे प्रमुख कारण समाज में गंभीरता का अभाव।गंभीरता के अभाव के कारण ज्योतिष,तंत्र,मंत्र, कर्मकाण्ड आदि की तरफ ध्यान जाता है। फलित ज्योतिष आम तौर पर व्यक्ति के आलोचनात्मक विवेक के बाहर सक्रिय होता है और प्रामाणिक होने का दावा करता है। वह वास्तव जरूरतों के आधार पर कार्य करता है।

आम तौर पर ज्योतिषी के पास जब कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने जाता है तो वास्तव समस्या के बारे में पूछता है कि क्या होगा या क्या करें ?वह यह मानकर चलता है कि उसके जीवन को ग्रहों ने घेरा हुआ है और ग्रहों की चाल के बारे में ज्योतिषी अच्छी तरह से जानता है।इसके कारण अति-वास्तविकता पैदा हो जाती है।यह अति-वास्तविकता स्वयं में अविवेकपूर्ण है।ऐतिहासिक विकास क्रम में इसका अत्यधिक विकास हुआ है।यह स्व के हितों को नष्ट करती है।

जनमाध्यमों में व्यक्त फलादेश इस शैली में होता है जिससे यह आभास मिलता है कि ज्योतिष ही दैनन्दिन समस्याओं के समाधान का एकमात्र प्रामाणिक रास्ता है।साथ ही यह भी अर्थ व्यक्त होता है कि व्यक्ति के भविष्य के बारे में कोई अदृश्य शक्ति है जो जानती है। अर्थात् स्वयं के बारे में अन्य ज्यादा जानता है। राशिफल में ज्यादातर बातें सामाजिक मनोदशा को व्यक्त करती हैं। अमूमन फलादेश में जिज्ञासु की दिशाहीनता और अनिश्चियता का इस्तेमाल किया जाता है।

साधारण आदमी एक घड़ी के लिए धार्मिक होने से इंकार कर सकता है किन्तु भाग्य को लेकर ज्योतिषी के कहे हुए को अस्वीकार करने में उसे असुविधा होती है क्योंकि वह मानता है कि फलादेश का ग्रहों से संबंध है।फिर भी फलित ज्योतिष को अंधविश्वास की मनोवैज्ञानिक संरचना कहना मुश्किल है।फलित ज्योतिष पर विचार करते समय ध्यान रहे कि इसका समाज के बृहत्तम हिस्से से संबंध है अत: किसी भी किस्म का सरलीकरण असुविधा पैदा कर सकता है। इसका व्यक्ति के अहं(इगो) और सामाजिक हैसियत से गहरा संबंध है।इससे लोगों में आत्मविश्वास पैदा होता है।

1 comment:

Unknown said...

यह आलेख,तथ्यों से परे एक घुमावदार लेख है जो ज्योतिष को बदनाम करता है. यह बात सच है कि ज्योतिष के नाम पर नीम-हकीम बहुत पैदा हो गए है और वे आधी किताब पढकर पूरा ज्योतिषी बन जाते है. बेरोजगारी की समस्या भी इसका एक कारण है. इस बारे में मेरे दो ही मत है जो ठोस है आप सभी भी सहमत हो सकते है या नही भी. (1)- ज्योतिष एक शास्त्र है जो वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित है. यह कोई मूर्ख बनाने का साधन नही है. किन्तु यह भी सत्यं है कि सही ज्योतिष कुछ चंद विद्वान ही जानते है, बाकी सब अपनी दुकान चला रहे है. (2)- हम रिश्वत देते है तो लोग लेते है. इसी तरह हम ख़ुद ही मूर्ख बनने ज्योतिषी के पास जाते है तो मूर्ख बनाए जाते है.