Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

17.1.10

ज्योति बसु की मृत्यु - भारतीय साम्यवाद के स्वर्णयुग का अंत

प्रसिध्द मार्क्सवादी नेता और पश्चिम बंगाल के भू.पू. मुख्यमंत्री ज्योति बसु का आज लंबी बीमारी के बाद देहान्त हो गया। वे 95 वर्ष के थे। साम्यवाद के ग्लोबल प्रयोग की बजाय उन्होंने लोकल प्रयोगों को महत्ता दी। उनका व्यक्तित्व स्वभाव और कर्म से पूरी तरह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए समर्पित था। वह माकपा की मौजूदा कार्यशैली से एकदम भिन्न गैर पार्टीजान लोकतांत्रिक कार्यशैली के आदर्श थे। आज यह कार्यशैली सीपीआईएम में दुर्लभ होती जा रही है।

ज्योति बाबू ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जो काम किए वैसे मुश्किल काम सिर्फ समाजवाद में संभव माने जाते थे। मसलन् पश्चिम बंगाल में व्यापक स्तर पर भूमिसुधार कार्यक्रम लागू किया गया। पश्चिम बंगाल के अलावा जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला और केरल में ईएमएस नम्बूदिरीपाद को भूमिसुधार राज्यस्तर पर लागू करने का श्रेय जाता है।

ज्योति बाबू के व्यक्तित्व में बंगाली अभिजन और मार्क्सवादी कॉमरेड के संस्कारों का विलक्षण मिश्रण था। उनका व्यक्तित्व जन और अभिजन के साझा रसायन से बना था। इसके कारण उनकी जन-अभिजन दोनों के प्रति लोचदार और सामंजस्यवादी समझ थी। अपने इसी लचीले स्वभाव को उन्होंने राजनीति के नए संसदीय मार्क्सवाद में रुपान्तरित कर लिया था। उन्हें संसदीय मार्क्सवाद का दादागुरु माना जाता था। संभवत: सारी दुनिया में ज्योति बाबू अकेले कम्युनिस्ट थे जिनसे संकट की घड़ी में सभी रंगत के पूंजीवादी नेता सलाह लेते थे।

ज्योति बाबू की इमेज के निर्माण में उनकी सादगीपूर्ण जीवनशैली की केन्द्रीय भूमिका थी। अमीर खानदान में पैदा होने और शानदार अभिजन सुलभ उच्च शिक्षा पाने के बावजूद उन्होंने अमीरों के भवनों में रहने और अमीरों की राजनीतिक सेवा करने की बजाय कम्युनिस्ट पार्टी का होल टाइमर होना पसंद किया। संपत्ति और पूंजी के सभी प्रपंचों से दूर रखा। दूसरों के दुख और खासकर गरीबों के दुखों को अपने जीवन संघर्ष का अभिन्न हिस्सा बना लिया। इस प्रक्रिया में ज्योति बाबू का व्यक्तित्वान्तरण तो हुआ साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी का भी चरित्र बदला, खासकर पश्चिम बंगाल में पार्टी का चरित्र बदलने में भी सफलता मिली। उन्होंने किसान की मुक्ति को प्रधान राजनीतिक एजेण्डा बनाया।

ज्योति बाबू ने सन् 1977 में पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री पद की जब कमान संभाली तो पार्टी पूरी तरह पूंजी और उद्योग के प्रति नफरत से भरी थी। इस मनोदशा को बदलने में उन्हें कठिन विचारधारात्मक संघर्ष से गुजरना पड़ा और आज समूची माकपा तमाम राजनीतिक दबाबों के बावजूद उद्योग के एजेण्डे पर सक्रिय है।

ज्योति बाबू ने भारत के कम्युनिस्टों को लोकतंत्र के दो प्रमुख मंत्र सिखाए किसान और उद्योग की सेवा करो। देशहित और जनहित को पार्टी हितों के ऊपर रखो। पार्टी अनुशासन को मानो और विकल्पों पर नजर रखो, कभी विकल्पहीनता में मत रहो, विकल्प जहां से भी मिलें उन्हें सामूहिक फैसले के जरिए लागू करो।

1 comment:

Randhir Singh Suman said...

कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम