महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील के बारे में घटिया टिप्पणी करने पर पदच्युत हुए पंचायतीराज व वक्फ राज्य मंत्री अमीन खां की चहुंओर आलोचना स्वाभाविक है। देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठीं श्रीमती पाटील के बारे इस प्रकार की टिप्पणी से हर भारतीय का उद्वेलित होना जायज ही है।
सच्चाई कुछ भी हो। भले ही अमीन खां की जुबान फिसली हो या उनका मकसद दुर्भाग्यपूर्ण न रहा हो और उन्होंने केवल उदाहरण के बतौर ऐसा कहा हो, मगर अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ ये भी नहीं कि पद की मर्यादा का ख्याल ही न रखा जाए। कम से कम ऐसे व्यक्ति से तो यह अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो खुद भी एक जिम्मेदार पद पर बैठा हो और संवैधानिक मर्यादाओं के बारे में अच्छी तरह से जानता हो। अगर उन्हें जानकारी नहीं है, तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। चाहे जानकारी के अभाव में बयान दिया हो या समझदारी के अभाव में, उससे अपराध कम नहीं हो जाता। कांग्रेस ने तो उनसे मंत्री पद छीन ही लिया, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सहित अन्य भाजपा नेताओं ने भी उनकी जमकर मजामत की। असल में उनसे केवल इस्तीफा मांग लेना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दर्ज होना चाहिए, ताकि पूरे देश में एक संदेश जाए और भविष्य में कोई ऐसी हरकत न करे। यहां तक सब कुछ ठीक है, लेकिन यदि हम वर्ग विशेष के तहत विरोध प्रदर्शन करते हैं तो उससे राष्ट्रपति महोदया की गरिमा में कोई इजाफा नहीं होता।
अमीन खां ने पूर्णत: व्यक्तिगत टिप्पणी की थी। उन्होंने न जो जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था और न ही जाति को ध्यान में रख कर ही बयान दिया था। इसके बावजूद अगर हम वर्ग के आधार विरोध दर्शाते हैं तो ऐसे प्रयास से हम महामहिम राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष रूप से दायरे में ही बांधने की कोशिश कर रहे हैं। जो शख्सियत देश के सर्वाेच्च पद पर विराजमान हो, उसके प्रति सभी धर्म, जाति, वर्ग और राजनीतिक दल सम्मान रखते हैं। वे अब एक व्यक्ति नहीं रह गई, बल्कि एक संस्था हो गई हैं। वे पूरे देश की आदरणीय हैं और पूरा देश उनका है। यही वजह है कि छटांग भर जुबान पर काबू में न रखने पर अमीन खां को एक झटके में राज्य मंत्रीमंडल से बाहर होना पड़ा।
हालांकि संविधान में धर्म व जाति निरपेक्षता का प्रावधान है, फिर भी हमारी सामाजिक व राजनीतिक संरचना ऐसी है कि धर्म व जाति व्यवस्था ही प्रभावी भूमिका में है। इस सच्चाई को नहीं नकारा जा सकता। ग्राम पंचायत के वार्ड मेंबर से लेकर सांसद के चुनाव में जाति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कारण टिकट वितरण के वक्त जातीय समीकरण को ख्याल में रखा जाता है। मंत्रीमंडल के गठन तक में सभी को प्रतिनिधित्व देने की खातिर जातीय नजरिया ध्यान में रखा जाता है। मगर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ऐसे पद हैं, जिनके चुनाव में जातीय समीकरण लगभग डाइल्यूट हो जाते हैं। महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटील के चुनाव में भी कदाचित राजनीतिक समीकरण जरूर इस्तेमाल हुए होंगे, मगर इसमें कम से कम जाति को तो आधार नहीं बनाया गया। उनके पूरे राजनीतिक कैरियर, कार्य क्षमता, योग्यता आदि का ध्यान रखा गया है। न तो अमीन खां की ओर से उल्लेखित कारण से उनहें राष्ट्रपति चुना गया और न ही जाति को ख्याल में रख कर। एक जाति के परिवार में उन्होंने जन्म जरूर लिया है, मगर वे एक जाति विशेष की राष्ट्रपति नहीं हैं, पूरे देश की सम्माननीय राष्ट्रपति हैं। यह एक संयोग ही है कि वे एक जाति से हैं और उनके राष्ट्रपति पद पर पहुंचने पर उनकी जाति के लोग गौरवान्वित हुए होंगे। हर समाज अपनी जाति के व्यक्ति के ऊंचे पर पहुंचने पर खुश होता है। श्रीमती प्रतिभा पाटील के प्रति घटिया टिप्पणी किए जाने पर बेशक जातीय लोगों को भी बुरा भी लगा, मगर केवल उसी आधार पर विरोध का प्रदर्शन करना राष्ट्रपति महोदया के लिए सम्मान अभिव्यक्त करने की बजाय उनको एक दायरे में सीमित करने के समान कहलाएगा।
सच्चाई कुछ भी हो। भले ही अमीन खां की जुबान फिसली हो या उनका मकसद दुर्भाग्यपूर्ण न रहा हो और उन्होंने केवल उदाहरण के बतौर ऐसा कहा हो, मगर अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ ये भी नहीं कि पद की मर्यादा का ख्याल ही न रखा जाए। कम से कम ऐसे व्यक्ति से तो यह अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो खुद भी एक जिम्मेदार पद पर बैठा हो और संवैधानिक मर्यादाओं के बारे में अच्छी तरह से जानता हो। अगर उन्हें जानकारी नहीं है, तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। चाहे जानकारी के अभाव में बयान दिया हो या समझदारी के अभाव में, उससे अपराध कम नहीं हो जाता। कांग्रेस ने तो उनसे मंत्री पद छीन ही लिया, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सहित अन्य भाजपा नेताओं ने भी उनकी जमकर मजामत की। असल में उनसे केवल इस्तीफा मांग लेना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दर्ज होना चाहिए, ताकि पूरे देश में एक संदेश जाए और भविष्य में कोई ऐसी हरकत न करे। यहां तक सब कुछ ठीक है, लेकिन यदि हम वर्ग विशेष के तहत विरोध प्रदर्शन करते हैं तो उससे राष्ट्रपति महोदया की गरिमा में कोई इजाफा नहीं होता।
अमीन खां ने पूर्णत: व्यक्तिगत टिप्पणी की थी। उन्होंने न जो जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था और न ही जाति को ध्यान में रख कर ही बयान दिया था। इसके बावजूद अगर हम वर्ग के आधार विरोध दर्शाते हैं तो ऐसे प्रयास से हम महामहिम राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष रूप से दायरे में ही बांधने की कोशिश कर रहे हैं। जो शख्सियत देश के सर्वाेच्च पद पर विराजमान हो, उसके प्रति सभी धर्म, जाति, वर्ग और राजनीतिक दल सम्मान रखते हैं। वे अब एक व्यक्ति नहीं रह गई, बल्कि एक संस्था हो गई हैं। वे पूरे देश की आदरणीय हैं और पूरा देश उनका है। यही वजह है कि छटांग भर जुबान पर काबू में न रखने पर अमीन खां को एक झटके में राज्य मंत्रीमंडल से बाहर होना पड़ा।
हालांकि संविधान में धर्म व जाति निरपेक्षता का प्रावधान है, फिर भी हमारी सामाजिक व राजनीतिक संरचना ऐसी है कि धर्म व जाति व्यवस्था ही प्रभावी भूमिका में है। इस सच्चाई को नहीं नकारा जा सकता। ग्राम पंचायत के वार्ड मेंबर से लेकर सांसद के चुनाव में जाति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कारण टिकट वितरण के वक्त जातीय समीकरण को ख्याल में रखा जाता है। मंत्रीमंडल के गठन तक में सभी को प्रतिनिधित्व देने की खातिर जातीय नजरिया ध्यान में रखा जाता है। मगर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ऐसे पद हैं, जिनके चुनाव में जातीय समीकरण लगभग डाइल्यूट हो जाते हैं। महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटील के चुनाव में भी कदाचित राजनीतिक समीकरण जरूर इस्तेमाल हुए होंगे, मगर इसमें कम से कम जाति को तो आधार नहीं बनाया गया। उनके पूरे राजनीतिक कैरियर, कार्य क्षमता, योग्यता आदि का ध्यान रखा गया है। न तो अमीन खां की ओर से उल्लेखित कारण से उनहें राष्ट्रपति चुना गया और न ही जाति को ख्याल में रख कर। एक जाति के परिवार में उन्होंने जन्म जरूर लिया है, मगर वे एक जाति विशेष की राष्ट्रपति नहीं हैं, पूरे देश की सम्माननीय राष्ट्रपति हैं। यह एक संयोग ही है कि वे एक जाति से हैं और उनके राष्ट्रपति पद पर पहुंचने पर उनकी जाति के लोग गौरवान्वित हुए होंगे। हर समाज अपनी जाति के व्यक्ति के ऊंचे पर पहुंचने पर खुश होता है। श्रीमती प्रतिभा पाटील के प्रति घटिया टिप्पणी किए जाने पर बेशक जातीय लोगों को भी बुरा भी लगा, मगर केवल उसी आधार पर विरोध का प्रदर्शन करना राष्ट्रपति महोदया के लिए सम्मान अभिव्यक्त करने की बजाय उनको एक दायरे में सीमित करने के समान कहलाएगा।
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