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4.8.11

मैं हूँ ना........

बात उन दिनों की है जब पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था .......हम लोग पटियाला में रहते थे उन दिनों .......शाम 6 बजे curfew जैसी स्थिति हो जाती थी .......बसें बंद हो जाती थीं ........सिख आतंकवादी सरे आम हिन्दुओं को बसों से उतार कर गोलियों से भून दिया करते थे .......कानून व्यवस्था एवं प्रशासन नाम की चीज़ नहीं रह गयी थी .....अदालतों ने आतंकवादियों के मुक़दमे सुनने बंद कर दिए थे क्योंकि न्यायाधीशों की कोई सुरक्षा नहीं रह गयी थी ......अखबारों ने आतंकियों के निर्देश पर उन्हें आतंकवादी न लिख कर खाड़कू लिखना शुरू कर दिया था ..........स्थिति बेहद निराशाजनक थी .......सो उन दिनों की बात है ........मेरी नई नई शादी हुई थी .......तभी खबर आयी की ज्योति के पिता जी को कल रात उठा के ले गए ......ज्योति यानी मेरी बहनों और पत्नी की एक अत्यंत घनिष्ठ सहेली जिनसे हमारा बहुत नजदीकी पारिवारिक सम्बन्ध भी था .........बड़ी बुरी खबर थी .......अब ये घटना थी मेहता चौक की .....मेहता चौक अमृतसर जिले का एक अंदरूनी इलाका था और भिंडरावाले का गढ़ था .......वहां का नाम सुन के ही रूह कांप जाती थी उन दिनों ...........खैर ,हम दोनों पति पत्नी चल पड़े बस से ......4 -5 घंटे का सफ़र था ......पूरी बस में सब सिख थे सिर्फ हम 4 -6 लोग हिन्दू थे ...वैसे उन दिनों हिन्दुओं ने भी बाल दाढ़ी बढ़ा कर पगड़ी बांधनी शुरू कर दी थी .........पूरे रास्ते सड़क के दोनों तरफ सुरक्षा बालों ने पिकेट बना रखे थे और मशीन गन ले के बैठे थे .......माहौल में दहशत और आतंक था ........सर्दियों के दिन थे ........वहां पहुँचते पहुँचते शाम हो गयी .....जब हम बस अड्डे पर उतरे तो बाज़ार बंद हो चुके थे .....अड्डा सुनसान था ....बस से कोई 8 -10 सवारियां उतरीं और न जाने कहाँ गायब हो गयीं ...........कोई रिक्शा नहीं था सड़क पर ....हम दोनों पैदल ही चल पड़े .........सुनसान सड़क पर अभी कुछ ही दूर गए होंगे की एक जिप्सी हमारे बगल में आ कर रुकी और उसमें से एक कड़कती हुई आवाज़ आयी .....कौन हो तुम लोग और इस समय सड़क पर क्या कर रहे हो ........पुलिस की जिप्सी थी और उसमें एक डिप्टी एस पी बैठा था ...हमने उसे पूरी बात बताई ........उसने हमसे कहा अन्दर बैठो और हमें घर तक छोड़ दिया ........एक बड़ी सी राइस मिल की चार दीवारी पे बड़ा सा गेट था .....हम उसे खटखटाने लगे .....बहुत देर तक कोई हलचल न हुई .....अन्दर जीवन का कोई चिन्ह नहीं था ........अब हमें काटो तो खून नहीं ........जाएँ तो जाएँ कहाँ ??????? वो जिप्सी भी जा चुकी थी ....खैर एक बार और गेट खटखटाया .........तो हलकी सी एक आवाज़ आयी ....कौन है ???? हमारी जान में जान आयी ........मेरी पत्नी चिल्लाई ........ज्योति .......फिर ज्योति गेट पर आयी और उसने गेट खोला ...हम अन्दर आये ........इतनी बड़ी सुनसान सी राईस मिल में ....अकेली लड़की .......मां पहले ही चल बसी थी ..अब बाप भी गया ........अन्दर पहुंचे तो एक आदमी बैठा था .........सरदार .....गन्दा सा .....ये कौन है .....मैंने धीरे से पूछा .........ओह ये सुखदेव अंकल है .......कौन सुखदेव ...कहाँ का अंकल ....ये कहाँ से प्रकट हो गया ......आज तक तो सुना नहीं था .......बहुत सारे प्रश्न ले कर हम अन्दर पहुंचे ...दुआ सलाम हुई .......रात भर रहे ......वो अजीब सा आदमी एक दम शांत ........कोई हरकत नहीं ......उसने हमें सिर्फ इतना कहा ...आप लोग चिंता न करें ......मैं हूँ न ......अब तो हमारी चिंता और बढ़ गयी ....सुनसान घर में अकेली जवान लड़की .........और ये गंदा सा सरदार ........और उन दिनों तो हम हिन्दुओं के मन में सरदारों के लिए एक स्वाभाविक सी नफरत तो थी ही ............अकेले में पूछा अरे भाई ये है कौन ...सो पता चला की किसान है कोई ........इसका धान आया करता था कभी राईस मिल पर .........तो अब यहाँ क्या कर रहा है .......पता चला की ये भी हमारी तरह खबर सुन कर आया है .....तो हमने कहा इस से कह दो अब ये जाए ....क्योंकि अब हम लोग आ गए हैं .....पर वो बोला ......आप लोगों के बस का कुछ नहीं है ....और आप लोगों का यहाँ रहना भी सुरक्षित नहीं है सो आप लोग अब जाओ .........जल्दी निकलो और टाइम से अपने घर पहुँचो........कल की तरह लेट नहीं होना .........जिस अधिकार से और रोब से उसने ये बात कही और ज्योति चुपचाप सुनती रही तो हमारे सामने अब कोई चारा भी नहीं था और हम हारे जुआरी की तरह चुप चाप निकल लिए ......
घर आये और सारी बात बतायी .......सब लोग चिंतित थे .......पर कोई कुछ कर नहीं सकता था .........खोज खबर लेते रहे ....ज्योति के पिता जी का कुछ पता न चला .....लाश तक न मिली .........बीच बीच में खबरें आती रहीं ........वो सरदार अब परमानेंट वहीं रहने लगा था ........मेरी माँ अक्सर परेशान होतीं .......बहनें चिंता करती .......सबका यही मत था की बेचारी अकेली अनाथ लड़की ....निरीह ,बेसहारा ....और उस अनजान सरदार के चंगुल में .....बाद में ये भी पता चला की वो किसी बैंक में काम करता है ...सो हम सब यही कहते ....अरे बैंक में है तो जा के अपनी नौकरी करे ...वहां क्या पड़ा है .........मां कहती ...लड़की वहां बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है .........देखना एक दिन मार देगा ...सब कुछ हड़प लेगा ........इतनी बड़ी राईस मिल है ......घर है ...इतनी ज़मीन है ........क्या उम्र है उसकी .........शादी ही क्यों नहीं कर लेता उससे ........अरे नहीं मम्मी अधेड़ है ...होगा कोई 45 एक साल का ...जवान लड़का है उसका ........अरे जवान लड़का है तो उसी से शादी करा दे ज्योति की ............ऐसी तमाम चर्चाएँ चला करती थीं हमारे घर में ......और सब लोग पानी पी पी कर ....."उस गंदे से सरदार "को गरियाते थे ..........खैर समय बीतता गया ........हम लोग भी अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए .........ज्योति को हमने उसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया ..........बीच बीच में उसकी खबर आ जाया करती थी ..............2 -1 साल बाद खबर मिली की वो ठीक है .......वो गन्दा सा सरदार अब भी वहीं रहता है ........फिर यह भी पता चला की ज्योति ने वो राईस मिल जो बंद हो गयी थी फिर शुरू कर दी है .....अब वो उसे चलाती है और वो सरदार उसकी मदद करता है ...........फिर एक दिन ये खबर आयी की वो चलती चलाती मिल और वो सारी ज़मीन जायदाद उस सरदार ने बेच दी ...........ज्योति का कहीं कोई पता नहीं था ........हम लोग मन मसोस कर रह गए .........मेरा भी ट्रान्सफर पटियाला से दिल्ली हो गया फिर कुछ महीनों बाद हम दिल्ली से अपने गाँव आ गए और सब कुछ पीछे छूट गया .........10 एक साल बाद एक बार हम दोनों जालंधर गए थे और तभी मेरी पत्नी मोनिका को उसकी कोई पुरानी सहेली मिल गयी .....हमने बस यूँ ही पूछ लिया .........ज्योति का कुछ पता चला ???? तो वो बोली हाँ ...अमृतसर में रहती है ....बहुत खुश है ....बहुत सुखी है ....एक बेटी है ..........सरकारी नौकरी करती है .........address ?????? एड्रेस का तो पता नहीं ...पर हाँ इतना पता है की अमृतसर में रहती है ......अब इतने बड़े शहर में बिना पते के उसे खोजना संभव न था और न इतना टाइम था हमारे पास सो हम लोग वापस गाँव चले गए ........हम तो उसे न ढूंढ पाए पर उसने हमें ढूंढ लिया कुछ साल बाद .......हुआ यूँ की मेरी बहन जो की एक नामी खिलाड़ी है सो किसी खिलाड़ी से उसने उसका पता ढूंढ कर फोन किया .........मेरी बहनें उस से मिलने गयीं ......फिर हम लोग भी गए ...........मिले जुले....... हाल चाल लिया .....उसके पति से मिले जो की एक बेहद खुशमिजाज़ .जिंदादिल आदमी है ...बेहद स्मार्ट ........सजीला जवान 6 फुटा .........उनकी बेटी बेहद ख़ूबसूरत ...एकदम अपने बाप पे थी ......सो एकांत में हमने उससे सारा किस्सा पूछा और ये की ये श्रीमान जी कौन हैं ?????? कहाँ से मिले .........वो सरदार कहाँ है .......अरे सुखदेव अंकल ...अरे वो ठीक हैं ...अभी कल ही तो आये थे ...आजकल अपने गाँव रहते हैं ......नौकरी से retire हो गए हैं ........और हम लोग सारी रात गप्पें मारते रहे ...सुख दुःख होता रहा ...और उस रात जो कहानी निकल के आयी वो कुछ इस तरह है .........
वो गन्दा सा सरदार......... कोई रिश्ता नहीं था उसका इस परिवार से .....मेहता चोक में एक बैंक में पोस्टेड था जहाँ ज्योति के पिता जी का खाता था ....सो हलकी फुलकी जान पहचान थी ....कभी कभी चाय पीने आ जाता था ...और गप्पें मारने ........फिर उसका वहां से ट्रान्सफर हो गया ....और जब ज्योति के पिता जी का अपहरण हो गया तो वो हाल चाल लेने आया .........लड़की अकेली थी ...कोई रिश्तेदार न था ...सो उसने छुट्टी ले ली ...और फिर वहीं रहने लगा ........मिल के जो भी लेन देन थे उसने पूरे किये ........लोगों से पैसा वसूला ....लोगों की देनदारियां निपटाईं .........सारा हिसाब किताब लड़की को समझाया .........बंद पड़ी मिल चालू कराई ......सारा धंधा लड़की को समझाया .......उन दिनों आतंकवाद से पीड़ित लोगों को सरकारी नौकरी दी जाती थी .....पर उसके लिए एड़ियाँ रगडनी पड़ती थीं ......सो तीन साल तक उसके लिए भाग दौड़ की....और अंत में ज्योति को सरकारी नौकरी स्कूल टीचर की दिलाई .......एक अच्छा सा लड़का ......बेहद शरीफ ....अच्छे परिवार का ......ढूंढ कर लड़की के हाथ पीले किये ........इस बीच कई बार आतंकियों की धमकी आयी पर वो टस से मस न हुआ .....फिर सबकी सलाह से वो मिल और सारी जायदाद वहां से बेच कर अमृतसर में एक अच्छा सा मकान खरीद कर दिया ....बाकी के पैसे कायदे से लड़की को सुपुर्द कर दिए ........उन दिनों को याद कर के ज्योति रोती रही और वो सारे किस्से सुनाती रही ........हम भी नाम आँखों से सुनते रहे ...........अब सुखदेव अंकल बैंक से retire हो गए हैं ...दो बेटे हैं उनके ....दोनों विदेश में रहते हैं ..........और वो अकेले फरीदकोट में अपने गाँव में रहते हैं ........अक्सर ज्योति से मिलने अमृतसर आते रहते हैं ......ज्योति उनसे कहती है की आप यहीं मेरे पास ही रह जाइए ....तो वो कहते है की नहीं बेटा .....बाप को बेटी के घर में नहीं रहना चाहिए ...........

3 comments:

Shikha Kaushik said...

very mind blowing post.

Roshi said...

man ko choo gayi rachna........

Arunesh c dave said...

वाह साहब नफ़रतो के बीच सौहाद्र और कर्तव्यपलन की यह कहानी काबिले तारीफ़ है।