1 - If not his mind,Anna has lost his stature by poking his nose in every Tom,dick and Harry matters ,which are out of his course,untill he is not an independent party different from RSS or any ASS . He should understand that civil societies are bound to have limited and very little powers. Also that his anarchy in a village can not touch the apex of the nation. So, his lowdown stature.# २ - एक बात यह मेरी समझ में नहीं आई कि क्या अब दुनिया भर के देश wicked leaks द्वारा संचालित होंगें ? इनकी क्या मंशा , credibility, accountability है ? वैसे तो सब लोग विदेशी गुलामी के विरोधी रहे हैं , खासकर अमरीका के । अब इनको क्या हो गया है ,जो सूचनाओं के द्वारा विदेशी संजाल में फंस रहे हैं । होंगी कुछ गोपनीय सच्चाईयां । तमाम हैं और तमामों होंगी ,कटु से कटुसत्य । कुछ हम जानते हैं ,कुछ की कल्पना कर सकते हैं । हमें आपसे नहीं जानना अपना दिमाग ख़राब करने के लिए । We do not entertain FDI in journalism. . ## ३ - आदर बलपूर्वक नहीं पाया जाता, सत्कार डाट -डपट कर नहीं करवाया जा सकता । आचरण आदरनीय होगा तो सम्मान मिलेगा ही । हम सम्मानित लोग हैं , यदि हमें इसका भान और मान है , तो हमे ऐसे सु अवसर तलाशने चाहिए जिससे पता चले कि वास्तव में हम कितने पानी में हैं। आत्म निरीक्षण करते रहना चाहिए अपनी शुद्धि के लिए । वरना यह कैसे सिद्ध होगा कि हम बड़े हैं या बड़ा कहलाने योग्य बनना हमारा अभीष्ट है । इसलिए अन्ना के मंच से या कहीं से भी हमें आलोचना प्राप्त हुयी तो हमें उनका शुक्र गुज़ार होना चाहिए । संसद में भर्त्सना प्रस्ताव नहीं , धन्यवाद प्रस्ताव पारित होना चाहिए । निंदक नियरे राखिये ,आँगन कुटी छवाय । ### ४ - और , एक प्रस्ताव मैं अपनी ओर से लाना चाहता था , पर नहीं लाया कि मुझे पार्टी वाला न मान लिया जाय । नागरिक के लिए किसी पार्टी में होना कोई पाप नहीं है , पर मैं हूँ तो निष्पक्ष । या पक्षपाती हूँ तो सत्य का , तर्क का । बात मनमोहन सिंह की है । उन्हें एक कमज़ोर प्रधान मंत्री कहकर जिसे देखो वाही , जब - तब अपमानित करता रहता है । एक तो साधारण बात है कि हमें अपने संवैधानिक पदों क सम्मान करना सीखना चाहिए । वरना क्या अंतर हुआ अभिनेता ओम पुरी और सांसद अडवानी में ? दूसरे ख़ास बात यह कि क्या चाहते हैं आप , हमारे देश का नेता भी पाकिस्तान के तानाशाह शासकों जैसा हो ? इसमें क्या बुराई हो गयी यदि वह अपने पार्टी की सुने , अध्यक्ष की बात माने , विपक्ष को भी विनम्रता से सुने ? क्या इसमें आपको मनमोहन सिंह की कोई ताक़त नज़र नहीं आती ? मै उनकी संवैधानिक हैसियत कि बात नहीं करता , उसे केजरीवाल कह सकते हैं । वे विद्वान् हैं और और प्रतिष्ठित राजस्व सेवा के अधिकारी । थे, अब भी हैं ,या अब नहीं हैं मैं यह भी नहीं जानता । मैं तो केवल प्रधान मंत्री के व्यक्तित्व की चर्चा कर रहा था । उनका गुण सराहनीय है कि वह सबकी सहते - सुनते हैं ,और परिवार की तरह सबको साथ लेकर चलते हैं । #### ५ - कविता - एक :- बूढ़े ने कहा , आओ नौजवानो नौजवानो ने कहा , आगे चल बूढ़े । दरअसल, कहीं कोई जा नहीं रहा है । ##### ६ - कविता -दो :- तुम्हारे पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं है पर तुम्हारे आन्दोलन चलाने भर को तो संसाधन हैं , पैसा है ,पोस्टर है, पोजीशन और प्रबंधन है । हमारे पास तो कुछ भी नहीं है अन्ना ! मैं हूँ अकेला क्रांतिकारी और मेरे मुद्दे कुछ कम महत्त्व पूर्ण नहीं हैं । ###### ७ - हाइकु कविता :- अराजकता का व्याकरण , अन्ना का आन्दोलन । #######
6.9.11
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment