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11.9.11

 आपको भी जानकारी रखनी चाहिए क़ि इस्लाम क्या है?
  प्यारे नबी सल्ल. ने कहा है: वह हमारे में से नहीं है जो केवल पक्षापात के आधार पर लड़ाई-झगरा करे ,वह हमारे में से नहीं जिसकी मौत किसी पक्चपात और दुराग्रह पर हो .(अबू सईद)............सच्चा मुस्लमान बनने के लिए पक्षपातों और हर प्रकार के दुराग्रहों से अपने को दूर रखना होगा.वही सच्चा मुस्लमान है जो बिना किसी भेदभाव के मित्रता , प्रेम और हितैसी का सम्बन्ध जोड सके,और उसके साथ पूरी प्रसन्नता और दिलचस्पी के साथ सेवा और भलाई के काम अंजाम दे. हजरत मुहम्मद कहते है....कसम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है,तुम में सेकोई मोमिन (आस्थावान) नहीं जब तक क़ि ऐसा न हो क़ि वह अपने भाई के लिए वही पसंद करे जोअपने लिए पसंद करता है.(मुस्लिम बुखारी)अल्लाहअपने बन्दों को ईमान के पुकारता है:अपने आल्लाह पर ईमान लाओ / जो भले स्वभाव के होते है,बुद्धि से काम लेते है,दिल में सच की चाह होती है.अल-क्रसस:७७ में फ़रमाते है अल्लाह ने जो कुछ तुझे दिया है उसे आखिरत के घर की प्राप्ति का साधना बना /और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल /और लोगों के साथ अच्छा व्यवहार कर,जैसे अल्लाह ने तेरे साथ अच्छा व्यवहार किया है  और धरती में बिगाढ़ न पैदा कर,बिगाढ़ पैदा करने वालों को अल्लाह पसंद नहीं करता.एक बार प्यारे नबी ने सहाबा रज़ी० से पूछा कि बताओ दरिद्र कौन है? लोगों ने बताया जिसके पास न धन हो न सामग्री /तो आपने कहा...मेरे समुदाय का दरिद्र वह शख्श है जो कयामत के दिन नमाज़ ,रोज़े ,ज़कात वैगेरह बहुत सारी नेकियाँ लेकर आएगा ,लेकिन इसी के साथ बन्दों के हकों को मार करके आया होगा,उसने किसी को मारा होगा,किसी को गाली दी होगी ,किसी का नाहक माल छिना होगा,किसी का नाहक खून किया होगा,किसी पर लांछन लगाया होगा,वहा उसकी सारी नेकियाँ उन लोगों को दे दी जाएँगी, जिन पर जुल्म हुआ होगा,और उनके गुनाह उसके सिर पड़ेंगें और वह औंधे मुह दोजख में डाल दिया जायेगा/कितना ऊँचा  दर्जा है अल्लाह का/ जिस प्रकार वह हमारे साथ एहसान किया इसको अपने पास सामने रखो और इसको कभी न भूलो /हम भी दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें /वहीं अल्लाह धरती में बिगाढ़ पैदा करने वालों को पसंद नहीं करता ,हर मोमिन कोमालूम हो क़ि अमुक काम रब को पसंद नहीं है या अमुक प्रकार के लोग हमारे रब को पसंद नहीं,तो वह ऐसा भोगेगा जैसे कोई काला नाग आग से भागता है/हर हाल में अपने को उपद्रवी बनने से बचाएं ,इसलिए क़ि अल्लाह को बिगाढ़ पसंद नहीं है/  किसी भूखे को एक रोटी दे दे,किसी एक नंगे को उतरा हुआ पुराना क़परा दे दे,किसी लाचार के हाथ पर चार पैसे रख दे,यह सेवा जरुर है/लेकिन इतना तो जालिम भी करते है.कुरआनमें जिक्र है:..अल्लाह की बन्दगी करो ,मगर माँ-बाप के साथ,नातेदारों ,अनाथों ,मुह्ताज़ों,पड़ोसी ,साथी ,मुसाफिर ,दास-दासिओं से अच्छे व्यवहार रखो .हमारे नबीं फरमाते है कि वह हमारे में से नहीं है जो केवल पक्षपात के आधार पर लड़ाई-झगरा करे / अगर कोई आदमी अपने को मुसलमान तो कहता है ,लेकिन उसे खबर ही नहीं कि मुसलमान कहते किसे है?और उसका मालिक उससे चाहता क्या है?और उसकी मर्जी क्या है?उसे मुसलमान होने की हैसियत से क्या करना चाहिए ?और क्या न करना चाहिए? तो क्या सिर्फ नाम ,लिबास और खाने-पीने के फर्क की वजह से वह अल्लाह का फरमाबरदार मान लिया जायेगा ? नहीं,उसे नबीं के बताये रास्ते पर ही चलना होगा /अल्लाह की फरमाबरदारी के मायने यह नहीं है कि पांच वक्त हम उसके सामने सजदा कर लें ,बल्कि उसकी फरमाबरदारी वह है कि हम उसकी इबादत करें,जिस चीज से रोका है उसे हरगिज न करें/
   (सभी अंश मरकजी मकतब इस्लामी के मलिक हबीबुल्लाह ,मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी से लिए गये है)

3 comments:

Mirchi Namak said...

आप हमे सिर्फ इक बात का जवाब दे कि यदि इस्लाम
बुत परस्ती के खिलाफ है तो हज के समय जियारत करते वक्त काबा शरीफ के पत्थर के पैबोशी (चूमना )क्यों जरुरी है क्या ये इस्लाम के खिलाफ नही है अगर इक पत्थर चूमा जा सक्ता है तो बाकी दुनिया के लोगो पर काफिर होने का कहर जारी है हजरत मो०
साहेब के समय अरब मे कितने बुतखाने थे और वि सब क्यों तोडे गये अमन की बात करने वाले इस्लाम ने क्या हकीकत मे विश्व को अमन का संदेश दिया है ?

EARNING HUB said...

SAB BAATO KI JANKARI DENE WALA HU.ARUB KE US DAURAN JO HALAAT THE USKI BHI JANKARI RKHENGE TAB ,KABA KA SAHI HAKIKAT JAN SAKENGE ,DHAIRZ RKHIYE JITNA HO SAKEGA JANKARION KO SITE PER DETA CHLUNGA.
KYA VEDON ME BUT YA MURTI PUJA KO MNA NHI KIYA GYA? VEDON KI LAUTO KA ABHIYAN VIVEKANAND NE SAHI TARIKE KE LIYE NHI CHLAYA?

Mirchi Namak said...

धर्म का मूल जानने के लिये उसका गहन अध्ययन नितान्त आवश्यक है स्वामी दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानन्द जी उसी धर्म रुपी पेड की शाखायें
पर वे पेड की मूल संरचना को परिवर्तित नही कर सकते इक बात और आज के दौर मे सस्ते एवं टिकाऊ सामान की आशा रखना अपने हित मे नही हो सकता है जिस साहित्य का आप अध्ययन करे वो मूल न हो के परिवर्तित हो वैसे सभी धर्मों का मूल उद्देश्य मानव मात्र की सेवा ही है और मानवता से बडा कोई धर्म नही होता इसके बावजूद देशहित सर्वोपरि होता है जब बात देश की हो सारे धर्म गौड हो जाते है..