श्रीगंगानगर-बरसाती पानी से बेहाल शहर की हालत सुधारने के लिए प्रशासन के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे स्थिति में सुधार हो सके। अगर उनके बस में कुछ भी होता तो वह सेना के अधिकारियों को शहर का "भ्रमण"ना करवाता। शुक्रवार को दोपहर बाद एडीएम प्रशासन रतन सिंह लाम्बा के साथ सेना के अधिकारियों ने शहर की बिगड़ी हालत देखी। सेना के दो अधिकारियों में से एक इंजीनियर था। प्रशासन ने उनके साथ बरसाती पानी के निकासी के बारे में विचार विमर्श किया। इस बारे में भी चर्चा हुई कि आखिर शहर में पसरे बरसाती पानी को कहाँ डाला जाये? प्रशासन का सुझाव था कि सुखाडिया सर्किल से पानी को नहर में डाला जाये। किन्तु यह सेना के अधिकारियों को व्यावहारिक नहीं लगा। क्योंकि इतनी दूर तक पानी ले जाना मुश्किल था। प्रशासन के पास बस यही एक सुझाव था। उधर गंदे पानी के खड्डे पहले से ही ओवर फ्लो हो चुके हैं। खेतों के मालिक पानी अपने खेतों में डलवाने को तैयार नहीं है। तो पानी की निकासी कैसे हो? इस प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं है। प्रशासन ऑन
रिकॉर्ड कुछ भी कहे। मगर वे दबी जुबां में स्वीकार करते हैं कि उनके पास आपदा प्रबंधन के नाम पर कोई ऐसा इंतजाम नहीं जिससे शहर को इस मुसीबत से छुटकारा मिल सके। अगर बरसात का सिलसिला नहीं रुका तो ना केवल मकान गिरेंगे बल्कि इसके साथ साथ इस पानी से बीमारियाँ भी फैलेंगी। तब हालत पर काबू पाना और भी मुश्किल हो जायेगा। पर्दे के पीछे की बात तो ये कि प्रशासन अब भगवान,प्रकृति के आसरे ही है।
9.9.11
सेना के अधिकारियों ने देखा शहर, किसी के बस में कुछ नहीं
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