इमाम ने किस मानसिकता का परिचय दिया था ?
नरेंद्र मोदी के सद्भावना मिशन में इमाम ने किस मानसिकता का परिचय दिया ? अगर इमाम अपने मजहब पर
गर्व करते हैं तो क्या वे यह नहीं जानते थे की हिन्दू भी ठीक आप की तरह अपने धर्म पर ,धर्म के प्रतिक चिन्हों पर गर्व करता है .
नरेंद्र मोदी को अपने मजहब की टोपी पहना कर इमाम क्या सिद्ध करना चाहते थे ?एक हिन्दू के साथ यह ध्रष्टता क्यों करनी चाही थी उन्होंने ? क्या यह इमाम की सद्भावना थी? क्या किसी मुस्लिम मंत्री को भगवान राम की मूर्ति माथे पर चढाने को सरे आम मंच से कहा जाता तो क्या वो इस प्रकार की प्रतिकूल बात पर मोदी जितने नम्र और सयंत खुद को रख पाता?
देश का बड़ा सियासी दल जो तथाकथित रूप से अपने को धर्म निरपेक्ष मानता है, और टोपी नहीं पहनने पर कटाक्ष करता है ,अल्पसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण के लिए ,उनके वोट के लिए वो दंभ से मुस्लिम टोपी तो क्या दरगाह में नमाज भी अदा कर सकता है लेकिन अगर कोई हिन्दू जाती का नेता इस तरह से बहरूपिया नहीं बनना पसंद करते तो क्या इसका भावार्थ यही निकाला जाएगा की अमुक हिन्दू नेता ने मुस्लिम टोपी नहीं पहनी इसलिए वह सांप्रदायिक है अमुक हिन्दू नेता ने अजमेर जाकर भी दरगाह में चादर नहीं चढ़ायी इसलिए वह सांप्रदायिक है ,अमुक हिन्दू नेता हज करने नहीं गया इसलिए वह सांप्रदायिक है .अगर इस देश में सियासी लोग हिन्दू =सांप्रदायिक की परिभाषा में जीना चाहते हैं तो उनके लिए हिन्दुस्तान की भूमि सियासत करने के लिए अनुपयुक्त सिद्ध हो जाएगी
इमाम में यदि सद्भावना होती तो उन्हें नरेंद्र मोदी के धर्म के अनुकूल प्रतिक चिन्ह भेंट में करना चाहिए था ,उन्हें
चाहिए था कि वे भगवत गीता मोदी को भेंट करते ,उन्हें चाहिए था कि वे भारत माता की फोटो उन्हें भेंट करते
और उस समय मोदी स्वीकार करने से मना कर देते तो भारतवासी उन्हें कोमवादी नेता समझते लेकिन मेरे विचार से उन्होंने यह समझ कर मुस्लिम टोपी पहनानी चाही कि अगर मोदी ये टोपी पहन लेते हैं तो ही वे संतोष करेंगे की अब शायद वे अल्पसंख्यक वर्ग के हितेषी हैं .मेरी यह काल्पनिक सोच अगर सही है तो इस सोच में अल्पसंख्यक वर्ग का भला नहीं है ,यह तुष्टिकरण अल्पसंख्यक वर्ग को बरगलाने वाले लोग करते हैं ,जिसके चलते यह वर्ग ६० वर्ष बाद भी पिछड़ा है ,अशिक्षित है,आर्थिक रूप से कमजोर है ,मुख्यधारा से दूर अलग थलग है .
मुस्लिम टोपी नहीं पहन कर और विनम्र भाव से टोपी को अस्वीकार कर मोदी ने छद्म धर्मनिरपेक्षता को पुरे देश के सामने करारा चांटा मारा है !! मोदी ने इमाम के हाथो हरा दुपट्टा पहन कर यह संकेत दे दिया है की वे गुजरात और देश में मुस्लिम वर्ग को हराभरा ,खुश हाल देखना पसंद करते हैं .
4 comments:
मोदी टोपी पहनते, क्या खो जाता तोर ??
सेक्युलर का काला हृदय, खिट-पिट करता और |
खिट-पिट करता और, उतरती उनकी टोपी |
वोट बैंक की नीत, बघेला बेहद कोपी |
कटते हिन्दू वोट, देख कर हरकत भोंदी |
घंटा पाते और, समर्थक मुस्लिम मोदी ||
नाम से ही सिद्ध है कि मुस्लिम टोपी। तो आप एक हिन्दु को मुस्लिम टोपी क्यों पहनाना चाहते हैं? कल तो कोई महिला आए और कहे कि मैं आपको शाल के स्थान पर साड़ी उडाना चाहती हूँ तो क्या पुरुष वर्ग स्वीकार कर लेगा? रामदेव जी ने महिलाओं के कपड़े संत भावना से स्वीकार कर लिए थे तो इन्हीं सेकुलरवादियों ने कितना मजाक उडाया था। पता नहीं क्यों एक होड़ सी लगी है कि आप हमारी मस्जिद में आओ या धार्मिक स्थान पर आओ। यह व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है, उसे क्यों सार्वजनिक प्रदर्शन की वस्तु बनाया जाता है?
कट्टर हिन्दू-मुसल्मा, हैं औरन से नीक |
इंसानियत उसूल है, नहीं छोड़ते लीक |
नहीं छोड़ते लीक, नहीं थाली के बैगन |
लुढ़क गए उस ओर, जिधर जो जमते जन-गन |
मोदी तुझे सलाम, कहीं न तेरा टक्कर |
मूरत अस्वीकार, करे मुस्लिम भी कट्टर ||
पहन मुक़द्दस टोपियाँ, बड़ी-बड़ी सरकार |
लालू शरद मुलायमी, काँग्रेस - आधार |
काँग्रेस - आधार , पहन कर टोपी सुन्दर |
बेडा अपना पार, करें ये मस्त कलन्दर |
पर मौलाना सोच, बड़े ये भारी सरकस |
कितना की उपकार, टोपियाँ पहन मुक़द्दस ||
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