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10.9.11

ज़िन्ना की मज़ार पर जाकर के जो शीश झुकाते हैं

ज़िन्ना की मज़ार पर जाकर के जो शीश झुकाते हैं
जन्मभूमि को आज बाबरी कहते नहीं लजाते हैं
कल तक वे ही घूम रहे थे रथ लेकर भारत भर मे
मुंह मे राम, बगल मे कुर्सी,तेज छुरी उनके कर मे
ज़िन्ना अगर इतना सेक्युलर था,सिंध छोडकर मत आते
सुन्नत कराकर,दाढी रखकर पाक मे ही तुम बस जाते
हतप्रभ स्वर्ग में होंगे मुखर्जी,हेडगेवार रोये होंगे
गोलवलकर जी आत्मलीन से चिंतन में खोये होंगे
लेकिन इस अंधी सुरंग का छोर नहीं मिल पायेगा
तुम से बडे तुम्हारे नेता बस मे कारगिल लाये थे
और दूसरे आतंकी को स्वयं छोडकर आये थे
आर-पार की करते-करते तार-तार हो जाते हो
कुछ दिन भाषण बाज़ी करके मुह ढककर सो जाते हो
कहते अमन चैन की नई सुबह हम लायेंगे
वार्ता की हम मेज शीघ्र ही फिर से यहां सजायेंगे
तो, कौआ चला हंस की चाल को अपनी चाल भी भूल गया
या फिरा रंगा सियार अंततः अपनी जाति कबूल गया
जनता विश्वास जला है अब यह तुम्हे जलायेगा
दगा राम के साथ किया है राम ही तुम्हे बचायेगा
मर्यादा पुरुषोत्तम का तुम लेकर के थे नाम चले
मंडल -मंदिर की ज्वाला में जनता के विश्वास जले
रिश्वत लेता चेहरा तुमने जबसे हमे दिखाया है
लोकतंत्र को सारे जग में तुमने बहुत लजया है
लालकिला हो या संसद हो,स्वाभिमान पर हमला था
भुला दिया सत्ता की खातिर ,जो अपमानी ज़ुमला था
अगर देश के और राम के भक्त यही कहलायेंगे
बिस्मिल ,रोशन ,भगत लाहिरी, कभी नहीं फिर आयेंगे
भारत भर का भाल सदा के लिए यहां झुक जायेगा
दगा राम के साथ किया है,राम ही तुम्हे बचायेगा।

4 comments:

Bharat Swabhiman Dal said...

राम के नाम पर वोट पाकर राम व हिन्दुत्व से छल करने वाले, गांधी के मानसिक वंशज और सत्ता के भूखे आडवाणी के चरित्र का निर्भीकता से निश्पक्ष विवेचन करने के लिए आपका आभार ।
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com

Maqbool said...

pathik ji
bahut damdaar rachna hai. badhaai
maqbool

रविकर said...

आँखे - माखू दूसता, संघ - हाथ बकवाद ||
अर्जुन का यह औपमिक, है औरस औलाद |
है औरस औलाद, कभी बाबा के पीछे ,
अन्ना की हरबार, करे यह निंदा छूछे |
सौ मिलियन का मद्य, नशे में अब भी राखे,
बड़का लीकर किंग, लाल रखता है आँखे ||
(२)
आतंकी की प्रशंसा , झेले साधु-सुबूत
जहल्लक्षणा जाजरा, महा-कुतर्की पूत |
महा-कुतर्की पूत, झाबुआ रेप केस में,
दोषी हिन्दू-संघ, बका था कहीं द्वेष में |
भागा भागा फिरा, किया भारी नौटंकी,
लिया जमानत जाय, चाट कर यह आतंकी ||
(३)
क्रूर तमीचर सा बके, साधु-जनों पर खीज ||
तम्साकृत चमचा गुरु, भूला समझ तमीज |
भूला समझ तमीज, बटाला मोहन शर्मा,
कातिल नहीं कसाब , बताता है बे-धर्मा |
कहे करकरे साब, मारता हिन्दू-लीचर ,
पागल करे प्रलाप, विलापे क्रूर-तमीचर ||
(४)
वो माया के फेर में, करे राम अपमान,
मिले राम-माया नहीं, व्यर्थ लड़ाए जान|
व्यर्थ लड़ाए जान, बुड़ाया अपनी गद्दी,
गले नहीं जब दाल, करे तरकीबें भद्दी |
बोला तब युवराज, अशुभ है इसका साया,
हूँ मुश्किल में माम, बड़ी टेढ़ी वो माया ||

seema prakash said...

जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित हो रहा है.

आपको सादर आमंत्रण, कि आप अपनी कोई एक रचना जिसे आप प्रकाशन योग्य मानते हों हमें भेजें ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी किसी एक सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
यदि संभव हो सके तो इस प्रयास मे आपका सार्थक साथ पाकर, आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर, हमें प्रसन्नता होगी.

अपनी टिपण्णी से हमारा मार्गदर्शन कीजिये.

जन सुनवाई jansunwai@in.com