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1.9.11

अब तो ये स्पष्ट है, जो इनके साथ में है वो दुष्ट हैं.

रामलीला मैदान में १२ दिन की नौटंकी आखिरकार ख़त्म हुई। 'नेता विरोधी' आन्दोलन अंततः समाप्त हुआ और दरुए-बेवडे और फुरसतिये वापस अपने अपने घरों को लौट गए। ऐसा नहीं है कि इस आन्दोलन में सिर्फ यही लोग शामिल थे।बल्कि इस आन्दोलन को कुछ ऐसे पढ़े लिखे लोगों का समर्थन मिला जो सरकारी सेवा से या तो रिटायर हो गए हैं,निलंबित हो गए हैं अथवा अपने मन की न होने के कारण इस्तीफ़ा दे चुके हैं अर्थात इस मेले के बहाने चूहे खाकर ये भूतपूर्व सरकारी बिल्लियाँ हज हो आयीं। इस आन्दोलन को मीडिया ने अभूतपूर्व कवरेज दिया और इस दौरान मानो उन्होंने कसम खा ली कि 'नेता' इस देश के लिए प्राकृतिक आपदा,विदेशी घुसपैठ से बड़ा खतरा हैं। मीडिया में शोर है कि हमारी संसद चोर है। बहुत बढ़िया! राडिया काण्ड में फंसे अपने बड़े बड़े जोधाओं के जुर्म छुपाने वाली मीडिया के 'नेता विरोध' के कारणों की समीक्षा आवश्यक है।




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1 comment:

seema prakash said...

जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित हो रहा है.

आपको सादर आमंत्रण, कि आप अपनी कोई एक रचना जिसे आप प्रकाशन योग्य मानते हों हमें भेजें ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी किसी एक सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
यदि संभव हो सके तो इस प्रयास मे आपका सार्थक साथ पाकर, आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर, हमें प्रसन्नता होगी.

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