31.10.11
फॉर्मूला वन रेस .......पैसे का तमाशा
हमारे राष्ट्रिय खेल के लिए खिलाड़ियों के जूते का जुगाड़!,,,,,, नहीं कर सकते!! ......फिर भी जीत के आ
गये! ताज्जुब है!! .....मगर जीत के जश्न को पैसे नहीं है! ,........पैसे का धुँआ तो फॉर्मूला के लिए किया है .
एथलीट नहीं है! .....करना भी क्या है !!गाडी दोड़ा दो,नाम हो जाएगा .
सैकड़ो बच्चे अस्पतालों में दम तौड़ रहे हैं !ये ऊपर वाले की मर्जी पर छोड़ दे ,जिन्दगी की डोर तो खुदा के हाथ
में है मगर ट्रेक पर दौड़ती रेसिंग गाडियों की डोर तो हम अपने हाथ में रख सकते हैं .माया का मायावी संसार
लीला भी गजब की है! और रेस भी गजब की है!!
भूख और कुपोषण लाइलाज हो चुके हैं ,लड़ते-लड़ते थक चुके हैं ,कुछ मनोरंजन हो जाए ताकि दर्द को भुलाया
जा सके .भूख और गरीबी पर लच्छेदार भाषण रेस देखकर दे देंगे!!
क्या !! गरीब और गरीब हो गया ,कोई परवाह नहीं !!!ये तो हर दिन का रोना है .थोडा सुस्ता ले और फॉर्मूला
देख ले.गरीब का करम ही फूटा हुआ है ,अब पेबंद कैसे लगाये!!
स्कुल नहीं है!........अध्यापक नहीं है!! .......बच्चे पढ़ नहीं पाएंगे!!! ........कोई चिंता नहीं है .इन सबको
मनरेगा में काम दे देंगे मगर रेस का बढ़िया आयोजन हो जाए.नाम हो जाए!!
पीने का साफ मीठा जल भी नहीं है! .....गन्दा पिला दो!! कुछ लुढ़क गये तो क्या फर्क पड़ना १२१ करोड़ हैं
मगर फॉर्मूला रेस का सफल आयोजन ,पानी से ज्यादा मायने रखता है!!!
राम भरोसे प्रजा को छोड़ दो .सबका मालिक है वो ,ठीक ही करेगा .हमें तो वाहवाही लुटने दो कार रेस की .
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नागफनी और गुलाब - डॉ नूतन गैरोला
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डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति
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वक्त
बुरी आदत है,
अच्छे वक्त की,
वो जाने की जल्दी करता है?
अच्छी आदत है,
बुरे वक्त की,
वो बहुत कम ठहरता है करीब?
- रविकुमार बाबुल
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babul
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eye world
एक बार जरूर विजटि करें
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M. Afsar Khan
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भारत माता के सच्चे लाल थे श्रीलाल-ब्रज की दुनिया
मित्रों,बहुत जल्दी रुप्पन,रंगनाथ,वैद्यजी और छोटे पहलवान जैसे मेरे अपने गाँव के किरदार बन गए.शिवपालगंज का वर्णन जैसे मेरे गाँव जगन्नाथपुर का रोजनामचा था.कितना गहरा व्यंग्य है रागदरबारी में हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर?!अंततः पहले रेडियो पर यह उपन्यास समाप्त हुआ और बाद में लेखकों से परिचित करवानेवाले इस कार्यक्रम की आवृत्ति को घटाकर दैनिक से साप्ताहिक कर दिया गया.हालाँकि मुझे रेडियो पर राग दरबारी को पूरा-का-पूरा सुनाने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका था लेकिन मन जैसे अतृप्त-सा रह गया था.फिर मैंने २००२ में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान यह उपन्यास ख़रीदा और खाना-पीना और पेशाब के वेग तक को रोककर एक ही बैठक में पढ़ गया.मन को लगा जैसे उसने वर्षों बाद अमृत का स्वाद चखा हो.फिर तो इस उपन्यास को कई-कई बार पढ़ा.हालाँकि मैंने इससे पहले प्रेमचंद और रेणु को भी पढ़ा था.प्रेमचंद में तो व्यवस्था पर यह व्यंग्य सिरे से गायब था;रेणु के मैला आँचल में व्यंग्य था पर सिर्फ यथार्थ की सतह को छूता हुआ-सा.अपनी तरह का पहला उपन्यास राग दरबारी सिर्फ उपन्यास नहीं था भ्रष्ट तंत्र में तब्दील हो चुके भारतीय लोकतंत्र को आईना दिखाता एक अश्लील यथार्थ था,सत्य था.भारतीय लोकतंत्र का जो वर्णन इस उपन्यास में है,जिस तरह का वर्णन श्रीलाल जी ने इस उपन्यास में एक गाँव के बारे में किया है कमोबेश वही सब तो बड़े फलक पर प्रादेशिक और राष्ट्रीय राजनीति में इन दिनों घटित हो रहा है.बहुत-से गांवों में तब भी ऐसा हो रहा था और बहुत-से गांवों में ऐसा होने वाला था.इस दृष्टि से श्रीलाल जी साहित्यकार के अतिरिक्त एक भविष्यद्रष्टा भी थे.
मित्रों,मैंने जहाँ तक हिंदी साहित्य को पढ़ा है उसके आधार पर बेहिचक यह कह सकता हूँ कि श्रीलाल जी के उपन्यास राग दरबारी ने उस समय एक शून्य को भरने का काम किया था जो शून्य प्रेमचंद के गोदान के बाद से ही बना हुआ था.प्रेमचंद गोदान में भविष्य के भारतीय लोकतंत्र की जिस तस्वीर को देख सकने में असमर्थ रहे थे और रेणु ने जिसे मैला आँचल में थोड़ा-थोड़ा देखा था चाहे इसका कारण कुछ भी रहा हो;को श्रीलाल जी ने खूब देखा और उसका उतनी ही बखूबी के साथ वर्णन भी किया.रागदरबारी की एक-एक पंक्ति जैसे किसी माला का एक-एक मोती है.इसकी एक भी पंक्ति को आप हटा नहीं सकते;बदल भी नहीं सकते.इस उपन्यास को पढ़ते हुए मुझे ऐसा लगा कि जैसे श्रीलाल जी ने मेरे गाँव में चुपके से आकर नित्य-प्रतिदिन घटनेवाली घटनाओं की वीडियो रिकार्डिंग कर ली है.एक-एक दृश्य सच से भी ज्यादा सच्चा.सत्य को देखता हर कोई है,महसूस भी हर कोई करता है लेकिन लिख हर कोई नहीं पता.हर किसी के पास न तो लिखने लायक सघन अनुभूति होती है और न ही उन अनुभूतियों को कोरे कागज पर उकेर सकनेवाले शब्द.
मित्रों,यूं तो तंत्र के खिलाफ लिखना ही बड़ी बात है परन्तु उससे भी बड़ी बात है भ्रष्ट हो चुके उस तंत्र का अहम हिस्सा रहते हुए उसके विरुद्ध लिखना.आज भी बहुत-से आई.ए.एस.-आई.पी.एस. अधिकारी ऐसे हैं जो व्यवस्था से क्षुब्ध हैं और जिनकी लेखनी में कशिश भी है लेकिन वो जिगर नहीं है जो श्रीलाल जी के पास था.बतौर मुक्तिबोध अभिव्यक्ति के खतरों को उठा सकनेवाला जिगर.आज श्रीलाल जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मेरा उनसे और भारतीय राजनीति की विद्रूपताओं से परिचय करवानेवाली पुस्तक राग दरबारी अब भी मौजूद है मेरी आलमारी में उनकी ही तरह एक अल्हड और मस्तमौला मुस्कराहट बिखेरती हुई.आश्चर्य होता है कि हिंदी साहित्याकाश में धवल नक्षत्र इस पुस्तक के लिए उन्हें पहले ज्ञानपीठ क्यों नहीं दिया गया?ज्ञानपीठ वालों को पुरस्कार देने की तब सूझी जब माता सरस्वती का यह मानस पुत्र विदाई की बेला में पहुँच चुका था?!आखिर हम भारतीयों को यूं ही लेटलतीफ तो नहीं कहा जाता!श्रीलाल जी आज हमारे बीच नहीं हैं.मेरे पास तो उनकी स्मृतियाँ भी शेष नहीं है.प्रत्यक्ष परिचय का अवसर ही जो नहीं मिला.लेकिन शेष हैं उनकी रचनाएँ,उनके शब्द जो चीख-चीखकर उनकी निडर रचनाधर्मिता से हमें परिचित करवा रही हैं.दुर्भाग्यवश राग दरबारी समय के गुजरने के साथ-साथ पहले से भी ज्यादा सामयिक बनता जा रहा है.भ्रष्टाचार और भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ इन दिनों जो जनाक्रोश उभर रहा है उसे देखते हुए मैं आप सभी भारतीयों के साथ आशा करता हूँ कि निकट-भविष्य में इसकी सामयिकता पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी और तब यह साहित्य की श्रेणी से हटकर इतिहास की पुस्तक बनकर रह जाएगी.आमीन!!!
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ब्रजकिशोर सिंह
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30.10.11
Flax Seeds (Linum usitatissimum) अलसी
- Increased Immune Function
- Reduced Cancer Risk
- Reduced Risk of Colon Cancer
- Protection Against Heart Disease
- Regulation of Blood Sugar and Insulin Dependence
- Slowing the progression of AIDS
- Slowing Aging
- DNA Repair and Protection
- Alleviation of Cardiovascular Disease
- Alleviation of Hypertension (High Blood Pressure)
- Promoted Eye Health
- Alzheimer's Protection
- Osteoporosis Protection
- Stroke Prevention
- Reduced Risk of Type II Diabetes
- Reduced Frequency of Migraine Headaches
- Alleviation of Premenstrual Syndrome (PMS)
- Antioxidant Protection
- Prevention of Epileptic Seizures
- Alleviation of the Common Cold
- Prevention of Alopecia (Spot Baldness)
- Flax seeds are a high fiber food, containing lignans which may help to lower cholesterol levels. The fiber in flax seeds also helps alleviate constipation.
- Flax seeds are high in Omega 3 fatty acids which are thought to help alleviate inflammation and reduce heart disease risk.
*Some of these health benefits are due to the nutrients highly concentrated in Flax Seeds, and may not necessarily be related to Flax Seeds.
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Shri Sitaram Rasoi
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शुभंकर: थ...
शुभंकर:.:थक जाओ तो हमें बुलाना.जीवन है हमको जीते जाना,रोना हँसना - हँसाना गाना ! ...
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योगेश वैष्णव "योगी"
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मौजों की रवानी है इस फुरसत के शहर में..
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Atul kushwah
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Labels: atul kushwah, gajal...
रचना आमंत्रित
आगामी अंक के लिए सुधि लेखकों के आलेख आमंत्रित है।
अपना आलेख 15 नवम्बर तक निम्न पते पर भेज सकते हैं।
या फिर ई-मेल कीजिए!
-----
सैनिक चेम्बर, जानकी प्लाजा,
जानकीपुरम, लखनउ-21
उत्तर प्रदेश
फोन- 0522-39191100
eyeworldpatrika@gmail.com
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M. Afsar Khan
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क्या कोई फरक है इनमें और एक आम हिन्दुस्तानी नागरिक में .
बुरका एक कनवास की जेल
बुरका एक कनवास की जेल, जिसे मुस्लिम औरतों ने , मर्दों ने, स्वीकार किया हुआ है .
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https://worldisahome.blogspot.com
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बारह महीनों मैं , बारह तरीके से , चीज़ों के रेट बढाऊंगा रे ,
ढिंगा चिका , ढिंगा चिका , ढिंगा चिका
बारह महीनों मैं , बारह तरीके से , चीज़ों के रेट बढाऊंगा रे ,
दिग्गी कहेगा , सिब्बी लडेगा , मैं तो चुप रह जाऊंगा रे ....
ढिंगा चिका , ढिंगा चिका , ढिंगा चिका ...अरे ओ ओ ओ ओ , अर ओ ओ ओ ..
आजकल पिरधान जी इहे कालर ट्यून फ़िट किए हुए हैं अपना पेजर में
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https://worldisahome.blogspot.com
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अंदाज ए मेरा: बडी हो रही है मेरी बिटिया
अंदाज ए मेरा: बडी हो रही है मेरी बिटिया: अभी कल ही की तो बात है। मेरे घर एक नन्ही परी का आना हुआ था। समय कितनी तेजी से बीतता है। कब गोद से उतरकर वो चलने लगी और कब बोलने लग...
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Atul Shrivastava
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प्रणाम तुम्हें करता हूं मां,जन्म दिया,इंसान बनाया
अपनी छाती से चिपकाकर मुझको अमृतपान कराया
छुटपन के दिन याद आते हैं,कितना कष्ट उठाया तुमने
मैंने लाख रुलाया,फिर भी तुमने मां भरपूर हंसाया
जीवन की हर सांसों पर मां तेरा ही है नाम लिक्खा
तुमको उपमा क्या दूं मैं मां, तुझमें है भगवान समाया
कुंवर प्रीतम
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KUNWAR PREETAM
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प्रणाम तुम्हें करता हूं मां,जन्म दिया,इंसान बनाया
अपनी छाती से चिपकाकर मुझको अमृतपान कराया
छुटपन के दिन याद आते हैं,कितना कष्ट उठाया तुमने
मैंने लाख रुलाया,फिर भी तुमने मां भरपूर हंसाया
जीवन की हर सांसों पर मां तेरा ही है नाम लिक्खा
तुमको उपमा क्या दूं मैं मां, तुझमें है भगवान समाया
कुंवर प्रीतम
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प्रणाम तुम्हें करता हूं मां,जन्म दिया,इंसान बनाया
अपनी छाती से चिपकाकर मुझको अमृतपान कराया
छुटपन के दिन याद आते हैं,कितना कष्ट उठाया तुमने
मैंने लाख रुलाया,फिर भी तुमने मां भरपूर हंसाया
जीवन की हर सांसों पर मां तेरा ही है नाम लिक्खा
तुमको उपमा क्या दूं मैं मां, तुझमें है भगवान समाया
कुंवर प्रीतम
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29.10.11
क्या होगा लोकपाल सीरीज का?
आखिरकार इंग्लैंड की टीम का भारत का दौरा ख़त्म हो गया और जिस तरीके से भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड को क्रिकेट के हर छेत्र में मात दी है। इससे उसने न सिर्फ इंग्लैंड मे मिली हार का बदला लिया बल्कि इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन और माइकल वॉन के लिए भी सवाल खड़ा कर दिया है की वो अब बताएं कि किस टीम मे गधे हैं?
ये उस क्रिकेट का हाल है जिसमे पहले भारत ने इंग्लैंड मे मुह की खायी और फिर इंग्लैंड ने भारत मे। इसी के साथ सीरीज और हिसाब दोनों बराबर।
लेकिन इसके विपरीत भारतीय राजनीती मे जो क्रिकेटरूपी लोकपाल सीरीज चल रही है उसका अंत शायद अभी हो। जिस तरीके से लोकपाल सीरीज चल रही है। उसमे दिन-प्रतिदिन रोमांच तो बढ़ रहा है लेकिन लोकपाल सीरीज का मुकाम क्या होगा इसके बारे मे न मीडिया के बरखा-प्रभु कुछ कह पा रहे हैं, न सरकार के वकील, न विपक्ष की रामसेना और न ही मार्क्स और लेनिन के भारतीय अनुयायी लेफ्ट। लेफ्ट-राईट दोनों चुप हैं। लेकिन सबसे बुरा हाल दर्शकों का का है जिनके लिए लडाई लड़ी जा रही है और जो इस सीरीज को चुपचाप देखते हुए और फेसबुक पर आत्मव्यथा छापते हुए इसके अंजाम का इंतज़ार या फिर इसे ड्रामा मानते हुए ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहे हैं। वो बोल तो रहे हैं लेकिन जितने मुह उतनी बातों के आधार पर यानि जितने चैनल उतनी बहस के आधार पर। लेकिन ये बेचारे अभी तक इसी दुविधा मे हैं की ५० रुपये देकर सरकारी लाइन से छुटकार पाना ठीक है या फिर ५० रुपये न देकर घंटों लाइन मे खड़ा रहना। क्योकि वो ये नहीं समझ पा रहे की भ्रष्टाचार की परिभाषा और सीमा क्या है?
जहाँ तक सीरीज का सवाल है पहले गेंदबाजी करते हुए जिस तरह से टीम अन्ना ने सरकार के सभी वकील बल्लेबाजों और मुह्बाज़ों को चित किया था उससे सरकारी टीम के कोच, मीडिया और विपक्ष सभी हैरान थे। लेफ्ट तो इस दुविधा मे दिख रहा था की भ्रष्टाचार देखें या बंगाल की कुर्सी। बाबा रामदेव की योग टीम भी ये सोचने लगी की जब ये मुट्ठीभर लोग इतनी लोकप्रियता पा सकते हैं तो मेरे पास तो अंधी भक्त सेना है। लेकिन बेचारे महिला के भेष मे ही अपने अन्दर के योगी को बचा सके। जहाँ तक जनता का प्रश्न है तो वह अन्ना की लोकपाल सीरीज को सर्वस्व मानते हुए उसके समर्थन मे सीधे मैदान मे पहुँच गए और जोश से भरी अन्ना टीम ने गैरराजनीतिक होते हुए राजनीतिक क्रिकेट के सभी छेत्र मे बाज़ी मार ली।
ये वो समय था जब मीडिया मे खासकर टीवी मे सिर्फ अन्ना छाए थे। कभी हीरो, कभी योद्धा के रूप मे और सरकार विलेन। विपक्ष तो सिर्फ कुछ मुह्बाज़ों के माध्यम से ही दीखता था। बीजेपी ये सोचते हुए लग रही थी की सिवाए प्रधानमन्त्री के इस्तीफे मांगने के कभी मुद्दों की बात की होती तो शायद जनता उनके साथ होती। मीडिया का बस चलता तो जहन-जहन गांधीजी की तस्वीर है वहां अन्ना की तस्वीर लगा देती।
लेकिन समय के साथ स्थिति बदली तो लय मे दिख रही टीम अन्ना के सारे खिलाडी खुद ही हिटविकेट और रन आउट होने लगे। अरविन्द केजरीवाल, किरण वेदी और कुमार विश्वास जैसे टीम अन्ना के दिग्गज खिलाडी सरकारी फिरकी और फरेब मे फंसने लगे और क्या बोलूं की स्थिति मे अन्ना ने मौन धारण कर लिया।
मीडिया जो पहले टीम अन्ना की हिमायती थी उसी ने टीम अन्ना को सवालों के घेरे मे खड़ा करना शुरू कर दिया। सारे सगे-सम्बन्धी बोरिया-बिस्तर लेकर चलते बने। बेचारे फेसबुकिये भी हवा के साथ चलते हुए टीम अन्ना पर कमेन्ट पोअस्त करने लगे। कुलमिलाकर टीम अन्ना बेकफुट पर आ गयी और डिफेंसिव होकर खेलना शुरू कर दिया।
बेचारे दर्शक दुविधा की स्थिति मे आ गए। बेचारे समझ नहीं पा रहे की किसका साथ दे। कौन देशभक्त है और कौन गद्दार? मीडिया के प्रचार और सरकारी भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए तो वो टीम अन्ना के समर्थन मे सड़कों पर आ गए थे अब टीम अन्ना भी भ्रष्टाचार के घेरे मे आ गयी है तो क्या करे? फिर सडको पर आ जाये? या फिर वो भी सरकारी लाइन से छुटकारा पाने के लिए ५० रुपये सरकारी नौकर को दे दे।
कुल मिलाकर लोकपाल सीरीज अभी अधर मे है। जिसके बारे मे तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन दर्शकों को बर्गालेने की कोशिश होती रहेगी ये सुनिश्चित है। कहीं ऐसा न हो कि जो जनता कुछ समय पहले ये सोच रही थी कि ५० रुपये देकर लाइन से छुटकारा पाना सही है या घंटों लाइन मे खड़ा रहना, अब ये सोचना भी छोड़ दे और कहे कि सब साले चोर हैं।
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Unknown
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शुभंकर: कौन बनेगा करोडपति
शुभंकर: कौन बनेगा करोडपतिरोजाना की तरह जब होने लगी शाम । तो टी वी पे आने लगा एक प्रोग्राम ... ॥ KBC -KBC यानि कौ...
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योगेश वैष्णव "योगी"
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शुभंकर ::कौन बनेगा करोडपति
रोजाना की तरह जब होने लगी शाम । तो टी वी पे आने लगा एक प्रोग्राम ... ॥ KBC -KBC यानि ..
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योगेश वैष्णव "योगी"
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क्या यही है श्री श्री के जीने की कला-ब्रज की दुनिया
मित्रों,इन्हीं एक से ज्यादा श्री धारण करनेवाले सन्यासियों में से एक हैं श्री श्री रविशंकर जी.इन्होने अपने नाम में बस एक ही फालतू श्री लगा रखा है.ये श्रीमान ज़िन्दगी जीने को एक कला मानते हैं और लोगों को उसी की शिक्षा देने का दावा भी करते हैं.ये श्रीमान खुद तो गृहस्थाश्रम से भाग खड़े हुए और ये बताते हैं कि गृहस्थों को कैसे जीना चाहिए.इनके द्वारा दीक्षित गृहस्थ भी कोई आम गृहस्थ नहीं होए.वे होते हैं बड़े-बड़े धनपति जो इनको मोटी दक्षिणा दे सकने में सक्षम होते हैं.पूछना चाहें तो आप भी मेरी तरह इनसे पूछ सकते हैं कि इन्होंने कलात्मकता से जी गयी पूरी जिंदगी में कितने गरीबों को जीना सिखाया?क्या गरीबों की ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती?क्या वे जीवन को जीते नहीं है?बस किसी तरह झेल लेते हैं जबरदस्ती लाद दी गयी जिम्मेदारी की तरह?मैं तो समझता हूँ कि अगर श्री श्री अपने कलात्मक ज्ञान द्वारा गरीबों को बताते कि इस महंगाई में दाल-सब्जी कैसे थाली में लाई जाए या फिर कैसे भूखे रहकर भी शरीर को स्वस्थ रखा जाए तो उनका हम गरीबों पर बड़ा उपकार होता.लेकिन वे साधारण संत तो हैं नहीं कि आम आदमी को जीना सिखाएंगे.वे तो हाई-फाई संत हैं जिनके शिष्यों में देश के बड़े-बड़े नेता और अमीर होते हैं जो अक्सर अपच के रोगी भी होते हैं.
मित्रों,आप भी मेरे साथ जरा सोंचिए कि कोई किसी को अगर जीना सिखाएगा तो क्या सिखाएगा?यही न कि गिलास के भरे हुए भाग को देखो खाली को नहीं.कठिनाइयों,विसंगतियों से युद्ध करो,मैदान छोड़कर भागो नहीं.लेकिन श्री श्री स्वयं क्या कर रहे हैं?वे भारतवासियों को बता रहे हैं कि लोकपाल आने से भ्रष्टाचार मिटनेवाला नहीं है इसलिए अपने तत्संबंधी प्रयासों को बीच मंझधार में ही छोड़ दो.खुद तो श्री श्री भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आन्दोलन छेड़ते नहीं परन्तु पहुँच जरुर जाते हैं चंद मिनटों के लिए मंच साझा करने के लिए और अब श्रीमान गन्दी हवा छोड़कर बनी बनाई हवा को ख़राब करने में लग गए हैं.ऐसा करने से उनको क्या लाभ हो जाएगा या हुआ है या भ्रष्टाचार से आजिज जनता को जीने में क्या प्रेरणा मिलेगी;वही जानें?क्या किसी आन्दोलन से लकड़बग्घे की तरह लाभ उठाकर उसकी पीठ में छुरा घोंप देना उनके जीने की कला के अंतर्गत आता है?
मित्रों,मुझे जहाँ तक लगता है कि संस्था या ट्रस्ट चलनेवाले श्री श्री सहित लगभग सारे सफेदपोश इस बात की आशंका से डर रहे हैं कि केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर सरकार कहीं उनकी संस्था के खातों की जाँच न शुरू कर दे और जो नहीं डरे हैं;आप भी देख ही रहे हैं कि वे कैसे फजीहत झेल रहे हैं.गलती किससे नहीं होती?चाहे आर्ट ऑफ़ लिविंग सिखानेवाला श्वेतवस्त्रधारी हो या योग सिखानेवाला केसरिया कपड़ाधारी या और कोई;गलती सभी करते हैं.अच्छा होगा कि जिन्होंने आर्थिक अपराध या करवंचना की हो खुद जनता के समक्ष आकर अपनी गलती मान लें और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज बुलंद कर या न्यायालय द्वारा दी गयी सजा काटकर प्रायश्चित करें.धृष्टता के लिए कृपया क्षमा कर दीजिएगा श्री श्री जी यहाँ मैं आपको जीना नहीं सिखा रहा हूँ.वो तो शायद आप मुझसे बेहतर जानते हैं.मैं तो आपको केवल यह बता रहा हूँ कि जीना सिखाया कैसे जाता है.जो बात दूसरों को सिखाईए पहले खुद उस पर अमल करिए तभी बातों में तासीर पैदा होती है वरना बात पर उपदेश कुशल बहुतेरे तक ही जाकर अटक जाती है.
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ब्रजकिशोर सिंह
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28.10.11
नेता जी की शुभ-दीपावली !
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Shikha Kaushik
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Labels: politician
क्षीण मन
गीत -
अब वे जैसा भी सोचें , लेकिन मैं तो सोचूंगा ;
उनका कोई बुरा न हो , हो भला सदा सोचूंगा ।
#
गीत -
फिर लगा मन क्षीण होने
जीर्ण होते , शीर्ण होने ।
फिर लगा - - - =
#
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Ugra Nagrik
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Labels: Citizens' blog
पाठक हूँ मैं
* न विचार की तरफ , न सरकार की तरफ ;
सब काम मुखातिब हैं पुरस्कार की तरफ |
#
* मेरे ऊपर
कहानियाँ लिखोगे
कवितायेँ बनाओगे
लेकिन जियोगे नहीं
तुम मेरा जीवन .
योग्यता ही नहीं तुममे
विषम जीवन जीने की
साहस ही नहीं विषम
परिस्थितियाँ का
सामना करने का |
#
* पाठक था मैं
पाठक ही हूँ
पाठक ही रहूँगा मैं
अपने मूल में ।
#
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Ugra Nagrik
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नेताजी मत्सुदा के छद्म नाम से ज़ापानी नौसेना के एक अड्डे पर ठहरे
नेताजी मत्सुदा के छद्म नाम से ज़ापानी नौसेना के एक अड्डे पर ठहरे।वहांसे पेनांग,सैगोन,मनीला,ताइपे,हमामात्सु मे एक-एक रात रूकते हुए१६ मई १९४३ को टोकियो पहुंचे।१०जून १९४३ को ज़ापान के प्रधानमंत्री तोज़ो से सुभाष की मुलाकात करायी गयी।१४ जून को उनकी तोजो से दूसरी बार मुलाकात हुई।१६ जून को सुभाष को ज़ापानी संसद में आमंत्रित किया गया।१८ जून को सुभाष के टोकियो पहुंचने की घोषणा की गयी।१८ जून १९४३ को टोकियो रेडियो से नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने टोकियो रेडियो सरे भारतवासियों के नाम अपील प्रसारित की।
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Arvind pathik
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श्रीलाल शुक्ल का निधन
अरविंद पथिक
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Arvind pathik
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अमिताभ बच्चनजी ये बात कुछ हजम नही हुई
अमिताभ जी का नया शगूफा कि भारत मे ५० करोड लोग बोरोप्लस का इस्तेमाल करते है अमिताभ जी इस देश मे ५० करोड लोग दो वक्त की रोटी का इस्तेमाल तो कर नही सकते बोरोप्लस क्रीम का इस्तेमाल क्या खाक करेंगे आप इस भारत देश के इक जिम्मेदार नागरिक है आप के श्री मुख से इस प्रकार की बाते शोभा नही देती माना की पैसा बहुत बडी चीज होती है पर इतनी बडी चीज भी नही कि आप देश की जनता को धोखा दे पता नही आप कितनी वस्तुओं का प्रचार करते है और उनमे से कित्नो का प्रयोग करते है पर इस देश की जनता बडी भोली है जो आप कहते हो वो झट से मान लेती है ...........आपसे निवेदन है कि इस देश की गरीब जनता पे तरस खाये और उसे काला टीका ही लगाने दे और सफेदी (बोरोप्ल्स) टीका आप ही लगाये ...
अधिक जानकारी के लिये नीचे लिंक पे चट्काये
http://www.campaignindia.in/Article/238045,new-emami-boroplus-tvc-draws-on-traditional-indian-belief.aspx
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Mirchi Namak
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ममता, माओवाद और मोहल्लत
शंकर जालान
जंगलमहल का नाम जुवान पर आते ही पश्चिम बंगाल के तीन जिलों की याद आती है, जो बीते कई सालों से माओवादी प्रभावित हैं। पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ा में सक्रिय माओवादियों ने न केवल वहां की जनता बल्कि प्रशासन तक की नाम पर दम कर रखा है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख व राज्य की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ महीनों (विधानसभा चुनाव से पूर्व) सरेआम कहती थी कि माओवादियों का कोई अस्तित्व नहीं है। 33 सालों से राज्य में सत्ता पर काबिज वाममोर्चा सरकार की गलत नीतियों के कारण माओवादियों को बढ़ावा मिल रहा है। अब ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें (ममता) लग रहा है कि माओवाद एक समस्या ही नहीं, बल्कि एक जटिल पहेली भी है।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी ने तीस दिन के भीतर ही जितनी बुलंद आवाज में कहा था कि उन्होंने माओवादी समस्या से निजात पा ली है अब वे उतनी ही धीमी आवाज में कह रही हैं कि माओवादियों की सक्रियता बढ़ी है। जानकारों के मुताबिक कई बार माओवादी प्रभावित जिलों का दौरा के बावजूद ममता ने तो पहेली का हल निकालने में कामयाब हुई हैं और न ही माओवादियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में।
इस साल मई में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा को करारी मात देने और भारी जीत के बाद ममता बनर्जी 90 दिन यानी महीने के भीतर माओवाद के साथ-साथ पहाड़ (दार्जिलिंग) की समस्या के समाधान का दावा किया था। पहाड़ की समस्या तो कुछ हद तक गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) नामक एक स्वायत्त परिषद के गठन पर हुए तितरफा करार के बाद हल हो गई, लेकिन माओवादी की समस्या मुंह बाएं खड़ी है।
राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में माओवादी प्रभावित जिलों की समस्या बजाए सुलझने और उलझी है। विभिन्न राजनीति दलों के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि हाल में जंगलमहल के दौरे पर गई ममता ने माओवादियों को सात दिनों की मोहल्लत दी है। इस मोहल्लत का कोई औचित्य नहीं है। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहा कि माओवादियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए उन्हें मोहल्लत नहीं मौका देना होगा। साथ-साथ उनके भीतर भय भी पैदा करना होगा। सिन्हा ने कहा कि चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने जंगलमहल में संयुक्त अभियान (अर्द्ध सैनिक बल व राज्य पुलिस) पर विराम लगाकर बहुत बड़ी भूल की है। वहीं, वाममोर्चा के चेयरमैन व माकपा के राज्य सचिव विमान बसु का कहना है कि माओवादी समस्या के मुद्दे पर ममता लोगों को धोखे में रख रही है। बसु ने कहा कि अजीब विडंबना है कि राज्य सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है और ममता बनर्जी हथियार डालने वाले माओवादियों को पेंशन देने की बात कह रही है।
राज्य सरकार और बुद्धिजीवियों के बीच माओवाद को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। एक ओर बुद्धिजीवियों का कहना है कि सरकार को माओवादियों के साथ शांति प्रक्रिया की पहल शुरू करनी चाहिए। दूसरी ओर सरकार यह नहीं सूझ पा रही है कि अंतत: माओवादियों की मंशा क्या है।
हालांकि माओवादियों ने एक महीने के सशर्त युद्धविराम का एलान किया है, लेकिन ममता के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा कि क्या माओवादी ईमानदारी से समस्या का समाधान चाहते हैं या फिर इस अवधि का इस्तेमाल ताकत बढ़ाने के लिए। बनर्जी को माओवाद के मुद्दे पर केंद्र सरकार से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। केंद्र चाहता है कि जंगलमहल में साझा अभियान जारी रहे, जबकि ममता बनर्जी इसके पक्ष में नहीं दिखती। इस बाबत केंद्र के कड़े रवैए ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है। राजनीतिक पयर्वेक्षकों का कहना है कि सत्ता हाथ में आने के बाद अधिकतर मामले में कामयाबी हासिल करने वाली ममता बनर्जी के लिए माओवाद की समस्या गले की हड्डी बनी हुई है। तत्काल ममता इस समस्या से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।
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anjuman
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Pizza Burger is killing us not lowki
भारत सरकार लौकी को बदनाम कर रही है, कड़वी तो कोई भी सब्जी हो सकती है जो नुकसान पहुंचा सकती है। बदनाम करना है तो जंक फूड, पिज्जा, बर्गर को करो।
सावधान ! जंक फूड खाने से बाप बनने के चांसेस कम
इस शोध के लिए उन्होंने 18 से 20 वर्ष की आयु के 188 युवकों के वीर्य की जांच की। इन्हें दो समूहों में बांटा गया। एक ग्रुप को खाने के लिए सलाद, फल, दूध और ऐसी अन्य पौष्टिक चीजें दी गईं। जबकि दूसरे ग्रुप को केवल जंक फूड। इसके बाद वीर्य की जांच में पता चला कि जिन लोगों ने पौष्टिक खाना खाया था उनकी संतान उत्पति की क्षमता दूसरों से कई गुणा ज्यादा थी।
अमरीका में हुई शोध पत्र को स्टडी के प्रमुख ऑड्रे गास्किन ने इसी सप्ताह अमेरिकन सोसायटी फॉर रीप्रोडक्टिव मेडिसन की वार्षिक मीटिंग में पढ़ा। उन्होंने बताया कि इस शोध से यही सामने आया है कि अच्छी खुराक से वीर्य की गुणवत्ता बढ़ती है। रेड मीट, एनर्जी ड्रिंक, मिठाई के बजाय ताजा फल, अलसी, अंकुरित अनाज आदि फायदा पहुंचाते हैं।
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अमरीका भी तोड़ रहा है मेकडोनाल्ड |
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सबसे अच्छा आहार अलसी |
शोधकर्ताओं ने कहा कि हॉटडॉग को भी चेतावनी के साथ बेचा जाना चाहिए, क्योंकि इसके भी वही खतरे हैं, जैसे सिगरेट पीने से होते हैं। गौरतलब है कि जुलाई का महीना हॉटडॉग महीने के रूप में मनाया जाता है। अनुमान है कि पिछले साल इस दौरान 11 लाख हॉटडॉग बिके थे। अमेरिकी कैंसर सोसाइटी ने अपने दिशा निर्देश में कहा, रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं लगया जा सकता
न ही इन्हें खाने से रोका जा सकता है। लेकिन हम लोगों से यह अपील जरूर करेंगे कि इसे खाने का मुख्य आधार न बनाएं।
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Shri Sitaram Rasoi
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व्यस्तताएं दोस्ती में बीज कैसे बो गयीं
चाहतें मिलने-मिलाने की भी जैसे खो गयीं
वक्त के इस दांव को समझ नहीं पाए हमीं
आंधियां ऐसी चलीं कि दोस्ती भी धो गयीं
कुंवर प्रीतम
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KUNWAR PREETAM
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नरेगा या मनरेगा से देश ने क्या खोया ?
नरेगा या मनरेगा से देश ने क्या खोया ?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जब से शुरू हुयी है तब से जनता के कर के रूप में दिए गए धन की खुली लूट हुयी है .कांग्रेस सरकार का यह कानून देश के पैसे की भयंकर बर्बादी कर रहा है फिर भी सरकार इस तिलिस्म को चालू रख रही है.क्यों ? इस देश ने मनरेगा से क्या खोया है ?
१. २०११-२०१२ के बजट में ४०००० करोड़ रूपये इस योजना के लिए मंजूर किये गये .यह इतनी बड़ी रकम है जिसे देश के २०००० गाँवों पर खर्च किया जाता तो हर गाँव में उच्च शिक्षा के लिए आधुनिक सुविधाओ से युक्त भवन और अस्पताल बन सकते थे क्योंकि देश के हर गाँव पर २ करोड़ रूपये खर्च किये जाते .
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Anonymous
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