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19.11.11

मौत = नयी ज़िंदगी । (गीत)




 मौत = नयी ज़िंदगी । (गीत)


मुर्दों   से  ज़िंदगी अब,माँगते हो क्यूँ  भला?
सोये   हैं  चैन  से,  सताते   हो क्यूँ  भला..!!


अंतरा-१.


उजाड़े   हैं   बहुतेरे  चमन, अभी   तक  तुने,
मुर्दों को फूलों से अब,सजाते हो क्यूँ भला..!!

सोये  हैं  चैन  से, सताते  हो क्यूँ  भला..!!


अंतरा-२.


ज़िंदगी  हँस - हँस  के  गुज़ारी  थी  जिसने,
मुर्दों पर अब अश्क तुम,बहाते हो क्यूँ भला?

सोये  हैं  चैन  से, सताते  हो क्यूँ  भला..!!


अंतरा-३.

ज़िंदगी  को  अक्सर,किया है नंगा तुने,
मुर्दों को कफ़न तुम,बाँटते हो क्यूँ भला?

सोये  हैं चैन से, सताते  हो क्यूँ  भला..!!


अंतरा-४.


फिरते  रहे  ज़िंदगीभर,बन  कर  काफ़िर,
ख़ुद  को  अब  ख़ुदा,मानते हो क्यूँ भला?

सोये हैं चैन से, सताते  हो क्यूँ  भला..!! 

मुर्दों से ज़िंदगी अब,माँगते हो क्यूँ  भला?
सोये   हैं  चैन  से, सताते  हो क्यूँ  भला..!!

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१९-११-२०११.

5 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बेहतरीन

Markand Dave said...

आदरणीय डॉ.नूतन जी,

आपका अनेकोनेक धन्यवाद ।

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर रचना , बधाई स्वीकार करें .

Markand Dave said...

आदरणीय सुश्रीवंदना जी, आदरणीय श्रीशुक्ला साहब,

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ।