Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

14.5.20

ओ दुनिया के रखवाले अब तू ही जान बचा ले


 कोविड 19 की भीषण महामारी से दुनिया मे हाहाकार मचा हूआ है विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस से सम्पूर्ण विश्व मे अब तक 44  लाख 28 हजार 236 संक्रमित हो गए है 3 लाख मौत हो गयी है वही भारत देश मे 78  हजार संक्रमित और 2549 की मौत इस बिच कोरोना वायरस को मात देने वालो की संख्या 26 हजार 234 है इस कठिन समय मे सभी अपने ईश्वर को याद कर रहे है।

    इस बिच फिल्म बैजू बावरा का सुन्दर गीत जो मोहम्मद रफी ने गाया है 'ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले,गीत के अंत मे जो पंक्तिया है वह तो कोरोना जनित पीडा से ग्रसित वर्तमान संदर्भो मे लिये बनी दिखाई पडती है अन्तिम पंक्तियां है 'महल उदास और गलियाँ  सुनी चुप चुप है दीवारे' ऐसा प्रतित होता है यह बेहद गमगीन गीत कोरोनाकाल के दौरान निर्मित स्थिति के मध्यनजर ही लिखा गया होगा।

    खैर विषय पर आते है दुनिया मे निर्मित वर्तमान स्थिति मे दुनिया दो मतो मे विभाजित दिखाई दे रही है एक मत पूरी तरह विज्ञान के भरोसे है और दूसरा मत धर्म ईश्वर और अपने आस्था केन्द्रो पर यह विश्वास रखते है की दुनिया का रखवाला ईश्वर अल्लाह इसा या वाहे गुरु उन्हे इस आपदा से निकाल देगा उनका विश्वास अडिग है  स्थिति को ईमानदारी से स्वीकार करने पर पाते है की 'विज्ञान कोरोना जनित परेशानियों को कम करने मे लगा हूआ है जबकी धर्म अभी अवकाश पर दिखाई दे रहा है' जिसका कारण दुनिया के तमाम धर्मो के शीर्ष स्थल चाहे वेटिकन  हो मक्का हो शिर्ड़ी या वैष्णोदैवी बन्द पडे है लोगो का संदेश ईश्वर तक पहूचाने वाले पादरी पुरोहित मौलवी स्वयं को कोरोना से बचाने मे लगे हुए है।

   देश के गरीब मजदूर और आमजन भी जब उन पर परेशानियो का पहाड टूट  पडा हो लाँकडाउन से निर्मित स्थिति मे भूखो मरने की स्थिति निर्मित हो गयी हो घर पहुचने की जद्दोजहद मे धूम गर्मी मे भूखे प्यासे मिलो पैदल चलने की परेशानी हो सरकार अनदेखी कर रही हो तो यह बेसहारा मजदूर गरीब और आमजन तो ईश्वर के भरोसे ही रह गए ऐसे मे रफी साहब का यह गीत ही तो एक मात्र सहारा है की 'ओ दुनिया के रखवाले' खैर अंत मे ईश्वर सबकी सुनता है ऐसा दुनिया मे हम भारतीयो का पूर्ण विश्वास है थक हार के मरते हुए पैरो मे जख्म और घाव के साथ घर तो पहुच ही जाएंगे।

   इस बिच एक खबर यह भी आ रही है की जौधपुर जेल मे बन्द सन्त आशाराम बापू को जेल मे कोरोना का भय सता रहा है और नेताओ ने उम्र की दुहाई देकर उनकी  रिहाई की मांग की है।

यह भी की बाग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने एक अखबार के कालम मे लिखा है की संकटकाल मे ईश्वर मनुष्य का साथ नही देता। यह विचार इस दौर मे इस लिये भी प्रबलता से उठ  रहे है की विज्ञान कोरोना के उपचार मे लगा दिखाई दे रहा है वह वैक्सीन के शोध मे लगा दिखाई दे रहा है दुनिया के लोग विज्ञान की और आशा पूर्ण दृष्टी से देख रहे है की कोरोना से विज्ञान हमे बचा सकता है।

   भारत एक विशाल देश है जँहा विभिन्न धर्म जाति सम्प्रदाय के लोग रहते है जिनका अपने धर्म मे गहरा विश्वास है इसी मान्यताओ के चक्कर मे आस्था विश्वास के प्रतिक धर्म को पुरोहितो मौलवीयों  पादरीयों ने अपने महत्व को बढाने मे अन्धविश्वास और आडम्बरो को बढाने का कार्य किया है इन आडम्बरो को हमने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है धर्म के वास्तविक दर्शन भी वर्तमान मे हो रहे है सच्ची सेवा ही सच्चा धर्म है लाचार मजबूर  श्रमिको को लाँकडाउन से उपजी विकट स्थितियों मे भोजन सहित आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति सामाजिक संस्थाए धार्मिक संगठन गरीबो मजदूरो जरुरतमंदो की निस्वार्थ सच्ची सेवा कर रहे है यह संस्थाएं सेवा के इस उपक्रम मे मजदूरो के घावो पर महलम भी लगा रही है सच्ची सेवा कर वे सच्चे धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे है कोरोना के इस मुसीबत भरे दौर मे यह शिक्षा तो हमे जरुर मिल गयी होगी की गरीबो मजलूमों की सच्ची सेवा ही धर्म है और सबक यह की धर्म का वैज्ञानिक होना जरुरी है भारत विज्ञान के महत्व को प्राचीन काल से स्वीकार करते आ रहा है धर्म भी विज्ञान के महत्व को स्वीकार करता है धर्म और विज्ञान ने मानव कल्याण के लिये मिल कर राह सुझाई है वर्तमान समय मे विज्ञान के साथ धर्म भी अपनी महती भुमिका निभाएगा और व्याप्त आडम्बरो अन्धविश्वासो को दुर कर अधिक परिष्कृत रुप से समाज को राह बताएगा भारत मे यह नारा भी बुलंद है 'जय जवान जय किसान जय विज्ञान'।
    -----
नरेंद्र तिवारी
7,शंकरगली मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी मप्र
मोबा-9425089251

No comments: