CHARAN SINGH RAJPUT
कोरोना की लड़ाई में कितनी जन और धन की हानी होगी यह तो लड़ाई के बाद जब आंकलन होगा तब पता चलेगा। हां अब तक लड़ी गई लड़ाई में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों ने विभिन्न हादसों के साथ ही परेशानियों से जूझते हुए दम तोड़ा है। लोगों ने तंगहाली में आत्महत्याएं की हैं। कोरोना कहर में जो परिस्थितियां देश के सामने खड़ी हुई हैं। उन सबके आधार पर कहा जा सकता है कि देश में भुखमरी और बेरोजगारी का जो तांडव होने वाला है वह कोरोना से भी ज्यादा भयावह होगा। मेरा आंकलन यह है देश कोरोना कहर तो झेल लेगा पर भुखमरी, बेरोजगारी की जो मार पडऩे वाली है वह झेलना मुश्किल लग रहा है।
भले ही कोराना संक्रमण का कहर दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा हो पर देश में कोरोना से ज्यादा मरने वाले लोगों की संख्या इस लड़ाई में पैदा की गई समस्याओं से होने की आशंका है। देश में कितने बड़े बड़े दावे किये जा रहे हों पर लॉक डाउन के समय जो आम आदमी को आर्थिक नुकसान हुआ है या फिर उसे आने वाले समय में परेशानियां पडऩे वाली हैं उन पर सरकार जमीनी काम नहीं कर पा रही है। चाहे पीएम केयर फंड हो या फिर 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज, आंकड़ेबाजी ज्यादा हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्त पर भले ही केंद्र सरकार को सफालता मिली हो पर देश में हर मामले में सरकार की विफलता साबित हो रही है। कोरोना वारियर्स का लगातार संक्रमित होना, प्रवासी मजदूरोंं का लगातार पैदल अपने गांवों की ओर पलायन, लॉक डाउन के बावजूद सडक़ों पर दिखाई दे रहा लोगों का आक्रोश इसका जीता जागता प्रमाण है।
प्रधानमंत्री कैमरे के सामने आकर बड़ी बड़ी बातें बोलते हैं और निकल लेते हैं। जब उनकी कही गई बातों पर उंगली उठती है तो वे चुप्पी साध लेते हैं। प्रवासी मजदूरों के पैदल पलायन पर वह चुप्पी साधे हुए हैं। लॉक डाउन के समय के वेतन पर उन्होंने मौन धारण कर लिया है। उल्टे लॉक डाउन के समय का वेतन भी देने का निर्देश उन्होंने वापस ले लिया। स्कूलों की फीस मामले पर अब वह शांत हैं। यदि प्रधानमंत्री और उनके सिपेहसालारों को थोड़ी भी लोगों की चिंता होती तो कम से कम आरएसएस के स्कूलों में तो लॉक डाउन के समय की फीस माफ करा सकते थे। किसानों की फसल की बर्बादी अलग से।
किसानों और मजदूरों को राहत के नाम पर लोन का लालच दिया गया। मतलब उन्हें आत्महत्या करने के लिए धकेल देने की एक और योजना उनके सामने परोस दी गई । किसानों पर तो पहले से ही बहुत कर्ज है। कर्ज न चुकाने की वजह से आये दिन किसानों के आत्महत्या करने की खबरे आती रहती हैं और कर्ज लेने का मतलब उनकी परेशानी और बढऩा। जो राजनीति कभी देश और समाज के लिए होती थी वह पूरी तरह से गायब होती जा रही है। न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष की भी सारी रणनीति सत्ता को ध्यान रखते हुए बनती है। जनता तो बस इस्तेमाल होती है। जैसा कि कांग्रेस और योगी सरकार के बीच देखने को मिला । न कांग्रेस की बुलाई गई बसों में प्रवासी मजदूर भेजे गये और न ही योगी सरकार ने रोडवेज की या फिर प्राइवेट बसों में ये मजदूर भेजे। राजनीति हो रही है और मजदूर परेशानी से जूझ रहे हैं।
कोरोना की लड़ाई में कितनी जन और धन की हानी होगी यह तो लड़ाई के बाद जब आंकलन होगा तब पता चलेगा। हां अब तक लड़ी गई लड़ाई में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों ने विभिन्न हादसों के साथ ही परेशानियों से जूझते हुए दम तोड़ा है। लोगों ने तंगहाली में आत्महत्याएं की हैं। कोरोना कहर में जो परिस्थितियां देश के सामने खड़ी हुई हैं। उन सबके आधार पर कहा जा सकता है कि देश में भुखमरी और बेरोजगारी का जो तांडव होने वाला है वह कोरोना से भी ज्यादा भयावह होगा। मेरा आंकलन यह है देश कोरोना कहर तो झेल लेगा पर भुखमरी, बेरोजगारी की जो मार पडऩे वाली है वह झेलना मुश्किल लग रहा है।
भले ही कोराना संक्रमण का कहर दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा हो पर देश में कोरोना से ज्यादा मरने वाले लोगों की संख्या इस लड़ाई में पैदा की गई समस्याओं से होने की आशंका है। देश में कितने बड़े बड़े दावे किये जा रहे हों पर लॉक डाउन के समय जो आम आदमी को आर्थिक नुकसान हुआ है या फिर उसे आने वाले समय में परेशानियां पडऩे वाली हैं उन पर सरकार जमीनी काम नहीं कर पा रही है। चाहे पीएम केयर फंड हो या फिर 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज, आंकड़ेबाजी ज्यादा हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्त पर भले ही केंद्र सरकार को सफालता मिली हो पर देश में हर मामले में सरकार की विफलता साबित हो रही है। कोरोना वारियर्स का लगातार संक्रमित होना, प्रवासी मजदूरोंं का लगातार पैदल अपने गांवों की ओर पलायन, लॉक डाउन के बावजूद सडक़ों पर दिखाई दे रहा लोगों का आक्रोश इसका जीता जागता प्रमाण है।
प्रधानमंत्री कैमरे के सामने आकर बड़ी बड़ी बातें बोलते हैं और निकल लेते हैं। जब उनकी कही गई बातों पर उंगली उठती है तो वे चुप्पी साध लेते हैं। प्रवासी मजदूरों के पैदल पलायन पर वह चुप्पी साधे हुए हैं। लॉक डाउन के समय के वेतन पर उन्होंने मौन धारण कर लिया है। उल्टे लॉक डाउन के समय का वेतन भी देने का निर्देश उन्होंने वापस ले लिया। स्कूलों की फीस मामले पर अब वह शांत हैं। यदि प्रधानमंत्री और उनके सिपेहसालारों को थोड़ी भी लोगों की चिंता होती तो कम से कम आरएसएस के स्कूलों में तो लॉक डाउन के समय की फीस माफ करा सकते थे। किसानों की फसल की बर्बादी अलग से।
किसानों और मजदूरों को राहत के नाम पर लोन का लालच दिया गया। मतलब उन्हें आत्महत्या करने के लिए धकेल देने की एक और योजना उनके सामने परोस दी गई । किसानों पर तो पहले से ही बहुत कर्ज है। कर्ज न चुकाने की वजह से आये दिन किसानों के आत्महत्या करने की खबरे आती रहती हैं और कर्ज लेने का मतलब उनकी परेशानी और बढऩा। जो राजनीति कभी देश और समाज के लिए होती थी वह पूरी तरह से गायब होती जा रही है। न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष की भी सारी रणनीति सत्ता को ध्यान रखते हुए बनती है। जनता तो बस इस्तेमाल होती है। जैसा कि कांग्रेस और योगी सरकार के बीच देखने को मिला । न कांग्रेस की बुलाई गई बसों में प्रवासी मजदूर भेजे गये और न ही योगी सरकार ने रोडवेज की या फिर प्राइवेट बसों में ये मजदूर भेजे। राजनीति हो रही है और मजदूर परेशानी से जूझ रहे हैं।
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