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6.5.20

लघुकथा: यार ये कोरोना है....

यार ये कोरोना है....



"यार भाई! आप भी ग़ज़ब हो, क्या मुझे कोरोना है जो हाथ मिलाने से भी बच रहे हो, गले मिलना तो बहुत दूर! कमाल हो यार आप...",
कहते-कहते विश्वास सोनू से रूठ गया। फिर वही ऊटपटांग बोलना और न जाने क्या-क्या कहने लगा।
तभी सोनू ने कहा- "भाई! बात हाथ मिलाने या गले लगने की नहीं है, न ही हमारी दोस्ती इस हाथ मिलाने और गले लगने से कम या ज़्यादा होने वाली है। और यह विषय भी अपने अहम के टकराव का है। बल्कि ये सोच कि गलती से मैं किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आ चुका तो मेरी सज़ा तू क्यों भुगतेगा यार!
ईश्वर न करें ऐसा हो, पर मुझे तेरी ही चिन्ता है।"
विश्वास का स्वर मध्यम और आँखें झुकी हुई थीं, यकीनन यह कोरोना ऐसे ही फ़ैल रहा है। भावनात्मक से थोड़ा किनारा करना बेहतर है, क्योंकि जान है तो जहान है।

*डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'*
हिन्दीग्राम, इन्दौर

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