मध्य प्रदेश में लोकसेवा केंद्रों के माध्यम से हितग्राहियों को सेवाएं प्रदान करना 2012-13 से शुरू हुआ। तत्समय बहुत ही जल्दबाजी में शासन द्वारा निर्णय लिया गया आनन फानन में लोकसेवा केंद्रों को ठेकेदारों के माध्यम से संचालित करवाया गया जो कि आज भी बदस्तूर जारी है। लोकसेवा अधिनियम बनाया गया लेकिन कर्मचारियों का कोई अधिनियम नही बनाया गया। जिसके कारण लोकसेवा केंद्रों के ठेकेदार खुल्ले सांड की तरह केंद्रों में कार्य कर रहे कर्मचारियों का शोषण लंबे समय से करते आ रहे है। ये बात अलग है कि बीच मे ठेकेदार बदल गए लेकिन शोषण तो जस के तस है।
गौर किये जाने वाली बात है कि सरकारी तंत्र द्वारा ठेकेदारों को किस तरह लाभ पहुंचाया जा रहा है। मध्य प्रदेश में 414 लोकसेवा केंद्र है। यहां से एक लंबी राशी ठेकेदारों के चरणों में शासन द्वारा अर्पित करने की तैयारी की है। लोकसेवा केंद्रों में एक आवेदन का शुल्क 40 रुपये होता है (नये ठेके पर आवेदन शुल्क ₹40 पुराने ठेकों पर आवेदन शुल्क ₹30 ) जिसमे से 35 रुपये ठेकेदार को जाता है (पुराने ठेके पर ₹25 )अब आप यहां आंकड़ो का हेरफेर देखिये। शासन ने ठेकेदारों को ये तक सुविधा दी है कि अगर केंद्रों में किसी महीने निर्धारित मात्रा में आवेदन नही आते है तो ठेकेदार को शासन 75000 रुपये देगा। शासन का ये तर्क समझ से परे है।
बहुत से लोकसेवा केंद्रों में निर्धारित संख्या में आवेदन नही आते है जिसके कारण शासन को लंबी राशी का चूना लगता है। ये तो हुई शासन की बात अब गौर करते है लोकसेवा में कार्य कर रहे कर्मचारियों की तरफ। ठेकेदार को प्रति फॉर्म 35 रुपये मिलता है। प्रत्येक लोकसेवा केंद्र में 3 से 4 कर्मचारि लगे होते है जिनको ठेकेदार 3000 से 4000 के बीच भुगतान करता है। अब आप यहां ये देखिये कि श्रम विभाग की कौन सी गाइड लाइन यहाँ काम करती है। मतलब कि जो निर्धारित मजदूरी है वो भी नही मिल रही है। हम अगर मनरेगा में मजदूरी देखे तो 5700 से 6000 के बीच मजदूरों को मजदूरी मिलती है वो भी 10 बजे से 5 बजे तक मजदूर कार्य करते है लेकिन लोकसेवा केंद्रों में ये क्या हो रहा है। मजदूरी से भी आधी पेमेंट। तो यहां ठेकेदारों को खुल्ला सांड बोलना गलत नही होगा।
अब गौर करते है कि क्या हो अगर शासन समस्त लोकसेवा केंद्रों का खुद ही संचालन करे। शासन का इस पर तर्क होगा कि हमारे पास कर्मचारी उपलब्ध नही है जिसके कारण ये संभव नही है। चलिये इसका हल ढूंढने की कोशिश करते है।
समस्त लोकसेवा केंद्रों में वर्तमान में जो कर्मचारी कार्य कर रहे है वे यथावत रहे। शासन लोकसेवा केंद्रों का संचालन लोकल स्तर पर विभाग को दे यानी कि शहरी क्षेत्र में नगर पालिका और ग्रामीण क्षेत्रो में जनपद पंचायतों को। पहले से कार्य कर रहे लोकसेवा केंद्रों के कर्मचारियों से विभाग सीधे कॉन्ट्रेक्ट साइन कराये। कर्मचारियों की समस्या समाप्त होगी। यहाँ यह भी गौर करिये कि शासन के विभागों को ही समस्त योजना का लाभ देना होता है ना कि ठेकेदार को। तो शासन की योजना शासन को संभालने दिया जाए। ठेकेदार शब्द कहां फिट बैठता है समझ से परे है।
शासन अगर यह कदम उठाए तो हितग्राहियों को निशुल्क सेवा मिलेगी या फिर हितग्राहियों से थोड़ा बहुत शुल्क लेकर कर्मचारियों का वेतन सीधे कर सकते है। यहां ना सोशन होगा ना ही हितग्राहियों को परेशान होना होगा ना ही शासन को किसी प्रकार का नुकसान होगा। बल्कि उल्टा फायदा ही होगा। शासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
पूरे मध्यप्रदेश में एक साथ लोक सेवा केंद्रों के ठेके होते थे किंतु इस वर्ष लोक सेवा केन्द्रो के ठेके की डेट काई बार बढाई गई अपने लाभ को देखते हुये प्रदेश में कुछ जगह पर नए ठेके हो गए हैं और कुछ जगह पर पुराने ठेके ही चल रहे हैं यह साफ साफ यह प्रदर्शित करता है कि टेंडर घोटाला मध्यप्रदेश में हुआ है आप किसी लोभ के चलते अपने लोगों को नए टेंडर दे दिया गया बाकी को पुराना ही रहने के दिया।
श्रम कानून की अगर बात की जाए जो लोक सेवा केंद्र के ठेकेदारों द्वारा कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही थी और यह देखकर मध्यप्रदेश शासन भी मौन रहता है मैं पूछना चाहता हूं कि किस मानदेय से लोक सेवा केंद्र कर्मचारियों का वेतन दिया जाता है किस वर्ग में रखा जाता है लोक सेवा केंद्र के कर्मचारियों को अगर ठेकेदारों की और शासन की मिलीभगत ना होती तो क्या बार-बार आवाज उठाने के बावजूद भी शासन कोई कदम नहीं उठाता
कर्मचारी विगत कई वर्षो से अपनी समस्यों को लेकर आवाज उठाते रहे है ज्ञापन देकर तो कभी भिन्न भिन्न प्रयासों से पर लगता है हमारी आवाज सरकार तक नहीं पहुच पा रही है इसे में आपने हमें ये अवसर प्रदान किया इसके लिए आपा तहे दिल से शुक्रिया . महोदय जी 2010 में मध्य प्रदेश में जब बीजीपी कि सरकार थी उस समय यह लोक सेवा केंद्र का प्रोजेक्ट अस्तित्व में आया व् शासन ने इस ppp मोडल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया जिसके अंतर्गत प्रत्येक जिले व् तहसील में लोक सेवा केंद्र कि स्थापना ppp मोडल के तहत कि गई . जिसमे सरकार द्वारा टेंडर प्रक्रिया के जरिये लोक सेवा केंद्र के टेंडर निकाल कर चयनित उम्मीदवारों को लोक सेवा केंद्र का आवंटन किया गया जिसमें शर्तो के आधार पर टेंडर ठेकेदार को प्रदान किये गए . जिसमे ठेकेदार द्वार हम लोक सेवा केंद्र कर्मचारियों को कार्य हेतू रखा गया . किन्तु वह दिन है और आज का दिन जब कि शासन द्वारा निर्धारित कि गई शर्तों के अनुसार तो ठेकेदार हमारी जरूरतों को पूरा कर है न हमें शासन कि किसी योजनाओं का लाभ ही मिल पाता है . इस प्रकार इन्दिविसुअल टेंडर आवंटित करने से ठेकेदार का तो भला हो रहहै किन्तु हम लोगो का शोषण हो रहा है .
कुशल कर्मचारी होने पर भी न्यूनतम 2000, 3000 के वेतन पर कार्यरत है
न हमें वेतन समय पर मिलती है
न बीमा मिलाता है
न मेडिकल सुविधा है
न हम शासन कि किसी योजनाओं का लाभ मिल रहा है
न ही हमारा भविष्य सुरक्षित है
हाँ बस जब किसी को किसी कार्य कि आवश्यकता पड़ती है तब लोक सेवा के कर्मचारियों को उस कार्य में लगा दिया जाता है.
mp lsk
mplsk51@gmail.com
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