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25.5.20

मनरेगा में फैला भ्रष्टाचार तो कैसे मिलेगा प्रवासियों को रोजगार

सौरभ सिंह सोमवंशी
saurabh96961100@gmail.com


सरकारों के द्वारा लागू की  गई किसी भी योजना  की सफलता और असफलता इस बात से पता चलती है कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े हुए व्यक्ति को उसका कितना लाभ मिल रहा है 2005 में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के द्वारा लोगों को रोजगार दिलाने वाली योजना नरेगा लागू की गई 2009 में इसका नाम बदलकर के महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)कर दिया गया। गांधी जी कहां करते थे कि भारत गावों में बसता है।

 कोरोना महामारी के कारण आज पूरा देश अपने गांव की ओर अग्रसर है कई वर्षों से शहरों में रह रहे लोग आज गांव पहुंच चुके हैं सरकारों के पास इनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा ही सबसे अच्छी योजना है जिससे इन व्यक्तियों को तो रोजगार देने के साथ ही साथ  देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में इस योजना का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। यह योजना इस भयंकर महामारी में पीड़ित लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है, सरकारे भी इस चीज को समझ रही है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों के आर्थिक उत्थान और सामूहिक सशक्तिकरण का यह माध्यम इस समय देश का भला कर सकता है और बहुत बड़े वर्ग को भुखमरी के कगार पर पहुंचने से बचा सकता है परंतु पिछले 14 साल में तमाम सारे सर्कुलर और आदेश जारी किए गए परंतु मनरेगा योजना में आज तक बहुत सारी कमियां हैं इसी कारण यह योजना कभी-कभी अभिशाप भी बन जाती है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत लोगों को रोजगार दिया जाता है जिसका क्रियान्वयन ग्राम पंचायत के स्तर पर किया जाता है उसके ऊपर विकासखंड और जिला पंचायतें होती है परंतु जमीनी स्तर पर इसमें तमाम सारी खामियां उजागर होती है।

सबसे बड़ी समस्या इस योजना में ग्राम पंचायत के स्तर पर होती है जिसमें जिस व्यक्ति को रोजगार की अधिक आवश्यकता है उस व्यक्ति को रोजगार मिले या ना मिले ग्राम पंचायत स्तर पर उस व्यक्ति को रोजगार दे दिया जाता है जिस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति पूरी तरह से मजबूत है साथ ही साथ  उसके  द्वारा मजदूरों के साथ कार्य में भागीदारी भी नहीं की जाती परंतु लिस्ट में उसका नाम चलता रहता है। और उसे मजदूरी का पैसा भी मिलता रहता है जिसमें ग्राम प्रधान की भी एक बड़ी हिस्सेदारी होती है यह एक बड़ी विसंगति है इसके अलावा यह योजना निर्धन व वंचित वर्गों को समर्पित है और लोगों को गरीबी से उबारना इस योजना का मूल उद्देश्य है परंतु निर्धन व वंचित वर्ग जिसके लिए यह योजना बनाई गई है उस वर्ग की इतनी हैसियत नहीं होती कि इस योजना की जमीनी स्तर पर खामियों को वह उजागर कर सके और इसकी शिकायत कर सके ऐसा करने के लिए उसे ग्राम पंचायत स्तर पर बड़ी बगावत का सामना करना पड़ेगा जो गरीब निर्धन और वंचित के लिए कतई संभव नहीं है।

इसके अलावा इस योजना में सबसे बड़ी समस्या यह है कि मजदूरी करने वाले व्यक्ति एक तरह से ग्राम प्रधान के कृपा दृष्टि के पात्र हो जाते हैं ग्राम प्रधान को लगता है कि यह लोग हमारे दया पर निर्भर है। ग्रामीण स्तर पर राजनीति के चलते ग्राम प्रधान उन लोगों को इसमें शामिल नहीं करता अथवा निकाल देता है जो उसके विश्वासपत्र  नहीं होते भले ही यह योजना कागज में लोगों को रोजगार का अधिकार देती हो लेकिन यह अधिकार उनको प्रधान की कृपा दृष्टि के बाद ही प्राप्त हो पाता है  क्योंकि भले ही इस योजना में जिला पंचायत अथवा विकासखंड शामिल हो परंतु जमीनी स्तर पर इसका क्रियान्वयन ग्राम पंचायतें ही करती हैं। बहुत सारे मामलों में ऐसा देखा गया है कि ग्राम प्रधान के द्वारा मनरेगा मजदूरों के एटीएम, चेक बुक आदि भी रख लिए जाते हैं और उनके खाते में मजदूरी आने पर एक बड़ा हिस्सा ग्राम प्रधानों के द्वारा हजम कर लिया जाता है।कई मामले में तो यहां तक देखा गया है कि मजदूरों के साथ ग्राम प्रधान बैंक शाखाओं तक जाते हैं और स्वयं पैसा निकाल कर के मजदूरों को देते हैं इस तरह की परिस्थितियां यदि बनी रहेगी तो दिल्ली मुंबई या अन्य शहरों में नौकरी करने वाले लोग जो समय पूरा होने के बाद अपना पूरा वेतन पा जाते थे उन लोगों के लिए महात्मा गांधी को समर्पित यह योजना कैसे वरदान बन पाएगी यह सोचने का विषय है।

 उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जिला अधिकारी डीके सिंह के द्वारा और आजमगढ़ जिले में जिला अधिकारी नागेंद्र प्रसाद सिंह के द्वारा और तमाम जिलों में बहुत सारे ग्राम प्रधानों को इस तरह के भ्रष्टाचार में जेल भेजा गया है इस तरह की विसंगतियों का सामना मनरेगा के मजदूरों को करना पड़ता है और अब जब हिंदुस्तान का एक बहुत बड़ा वर्ग शहर से गांव की तरफ पलायन कर चुका है और उन लोगों को रोजगार दिलाने का संकट सरकार के सामने हैं इस परिस्थिति में सरकार को महात्मा गांधी के नाम को समर्पित इस योजना में अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि मनरेगा एक ऐसी योजना बन गई है जो ग्राम प्रधानों के पैसा कमाने का एक सशक्त माध्यम देखी जा रही है।।


सौरभ सिंह सोमवंशी
 पत्रकार
 प्रयागराज
9696110069

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