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28.7.08

अब जर्नलिस्टों की क्लास बदल गई है, खबर समझने के लिए इन्हें खुद को डी-क्लास करना होगा- पुण्य प्रसून वाजपेयी

मशहूर पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी का इंटरव्यू करते भड़ास4मीडिया के एडीटर यशवंत सिंह


''एनडीए शासनकाल ने ढेरों ऐसे जर्नलिस्ट पैदा किए जिनका खबर या समाज से कोई सरोकार ही नहीं है। इन दिनों में फेक जर्नलिस्टों की पूरी फौज तैयार हो गई। पैसे का भी आसपेक्ट है। चैनलों में एक लाख रुपये महीने सेलरी पाने वालों की फौज है। ये लोग शीशे से देखते हैं दुनिया को। इन्हें भीड़ से डर लगता है। आम जनता के बीच जाना नहीं चाहते। अब उनको आप बोलोगे कि काम करो तो वो कैसे काम करेंगे। मुझे याद है एक जमाने में 10 हजार रुपये गोल्डेन फीगर थी। हर महीने 10 हजार रुपये पाना बड़ी बात हुआ करती थी। ज्यादा नहीं, यह स्थिति सन 2000 तक थी। 10 हजार से छलांग लगाकर एक लाख तक पहुंच गई। इससे जर्नलिस्टों की क्लास बदल गई। उनको अगर वाकई असली खबरों को समझना है तो खुद को डी-क्लास करना होगा। वरना ये एक लाख महीने बचाने के लिए सब कुछ करेंगे पर पत्रकारिता नहीं कर पाएंगे क्योंकि इनका वो क्लास ही नहीं रह गया है।''

पुण्य प्रसून वाजपेयी ने कई खुलासे किए। कई विचारोत्तेजक बातें कहीं। सहारा प्रकरण से लेकर आधुनिक पत्रकारिता के हाल पर अपने स्पष्ट विचार रखे।

संपूर्ण साक्षात्कार पढ़ने के लिए क्लिक करें भड़ास4मीडिया डाट काम

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा, पी.पी.भाई एकदम ठीक कह रहे हैं...

Anonymous said...

दद्दा,
ये बेबाकी और पत्रकारिता के प्रति निष्ठां ही तो पी पी को एक अलग सख्सियत बनता है, इस बेबाकी के लिए बड़ी भैया को साधुवाद.
जय जय भड़ास

Anonymous said...

वाजपेयी जी का कहना कि जर्नलिस्ट भीड को भीड से डर लगता है। मेरा मानना है कि जर्नलिस्ट से ज्यादा अपने आपको तीसरा स्थम कहलाने वाले चैनलों और प्रिन्ट मीडिया के मालिकों को टीआरपी बढाने और अधिक से अधिक विज्ञापन दिखाने की होड लगी रहती है, मात्र एक राजनैतिक पार्टी या कुछ पुंजीपतियों की बात दिखाने के अलावा बचा ही क्या है आज के मीडिया में ? यही कारण है जो पत्रकार सही सच्ची खबर देता भी है तो क्या उसे दिखाया जाता है। प्रसुन जी दो छात्रों को स्कूल से निकाल दिया, तो आपके चेनल पर खबर बनी क्यों की वह पैसेवालों के थे, और 70 छात्राओं को स्कूल से निकाल दिया तो आपके चैनल और आप कहां थे, दो की खबर भीड वाली थी या 70 की खबर ? अभी भी देख सकते हैं, बेलगाम ब्लागस्पोट पर यह टेप ! खबर देने की हिम्मत है इसमें, चैनलों में है क्या ? कहने का मतलब केवल खबर देने वाले ही दोषी नहीं है दिखाने वाले ज्यादा दोषी हैं