दिल की बात जब जुबां पर नही आ पाती
घुटते अहसासों के साथ जब अरमां सुलगते है जेठ मे चोटियों पर पिघलते बर्फ की तरह
बेचैनी जब इस कदर बढ़ जाए किख़ुद का चेहरा अजनबी बन जाए
तो जिंदगी गुनाह लगने लगती है।
पर यही घुटन तो मेरी जिंदगी है
अहसास मेरी सांसे है और
जुबान पर आकर पिघलते शब्द से मुझे मिलती है नमी
और कुछ कहने की कसमसाहट से ही
बनी रहती है दिल मे धड़कन
फिर मै कैसे छोड़ दूँ इन सब को
जो मेरी जिंदगी बन गई है
लो मैंने छोड़ दिया ख़ुद को
जहाँ को दे दिया पैगाम अपनी मौत का
और मै जिन्दा हूँ अब भी
क्यूंकि मेरे पास है कुछ यादें
जिनको मारे बिना मेरी मौत की हर पैगाम अधूरी है
अभिषेक आनंद
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