विनय बिहारी सिंह
वैसे तो आप सभी यह पुराण कथा जानते ही हैं। लेकिन होली के मौके पर इसे फिर से याद करना, बुराई पर अच्छाई की जीत को व्याख्यातित करता है। कथा है-दानव राजा हिरण्यकश्यप को अहंकार था कि वही ईश्वर है। उसकी इच्छा के मुताबिक उसके राज्य में सभी उसी के नाम का जाप करते थे। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का अटल भक्त था। पहले तो हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत समझाया। तरह- तरह के प्रलोभन दिए। कहा कि मैं ही तुम्हारा ईश्वर हूं। ईश्वर- फिश्वर कुछ नहीं होता। जो दिखाई नहीं देता, उसकी परवाह क्या करना। जब भगवान को किसी ने देखा ही नहीं है तो तुम क्यों उसके भक्त बने हो। हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के अस्तित्व को ही नकार दिया। लेकिन प्रह्लाद तो अटल भक्त था। उसे इस बात की चिंता नहीं थी उसके पिता क्रोध से उबल रहे हैं। वह तो नारायण, नारायण जपता रहता था और अकेले में ध्यान में मग्न रहता था। जब हिरण्यकश्यप ने देखा कि उसका बेटा उसकी बात नहीं सुनने वाला तो उसने उसकी हत्या की ठान ली। उसने तरह- तरह से उसे मारने की कोशिश की। लेकिन हर बार प्रह्लाद बच जाता था। तब उसने एक अनोखा उपाय सोचा। उसकी बहन को वरदान मिला हुआ था कि वह आग मे नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने चिता की तरह बड़ी सी आग जलवाई और होलिका को कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर इस आग में बैठ जाए। होलिका खुश हो कर यह काम करने को तैयार हो गई। लेकिन आश्चर्य। होलिका जल कर राख हो गई और प्रह्लाद नारायण नारायण कहते हुए तब तक आग में बैठा रहा जब तक वह जलती रही। तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को एक खंभे में बांधा और तलवार उठा कर बोला- आज तुम्हारी हत्या हो कर रहेगी। बोलो क्या तुम्हारा विष्णु भगवान इस खंभे में है? प्रह्लाद बोला-
हममें, तुममें, खड्ग, खंभ में।घट, घट व्यापत राम।।
हिरण्यकश्यप अट्ठाहास कर हंसने लगा और उसने तलवार उठा कर अपने बेटे प्रह्लाद की गर्दन काटनी चाही। तभी भगवान विष्णु ने खंभे को फाड़ कर नृसिंहावतार लिया। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह वह न दिन में मर सकता है न रात में। न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में। न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी। इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नृसिंह अवतार। नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप की हत्या न जमीन पर की न आसमान पर, बल्कि अपनी गोद में लेकर की। इस तरह बुराई की हार हुई और अच्छाई की विजय। यह कथा होली पर बार बार याद करने लायक है।
हममें, तुममें, खड्ग, खंभ में।घट, घट व्यापत राम।।
हिरण्यकश्यप अट्ठाहास कर हंसने लगा और उसने तलवार उठा कर अपने बेटे प्रह्लाद की गर्दन काटनी चाही। तभी भगवान विष्णु ने खंभे को फाड़ कर नृसिंहावतार लिया। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह वह न दिन में मर सकता है न रात में। न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में। न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी। इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नृसिंह अवतार। नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप की हत्या न जमीन पर की न आसमान पर, बल्कि अपनी गोद में लेकर की। इस तरह बुराई की हार हुई और अच्छाई की विजय। यह कथा होली पर बार बार याद करने लायक है।
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